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असम से वन भैसें लाने के मुद्दे पर सरकारों और अफसरों से छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का नोटिस

बिलासपुर। असम से वन भैसें लाने के मुद्दे पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने केंद्र व छत्तीसगढ़ शासन के साथ असम सरकार और दोनों राज्यों के वन विभाग के अफसरों को  नोटिस जारी कर 4 सप्ताह में जवाब मांगा है। एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए आज छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के  मुख्य न्यायाधीश  अरूप कुमार गोस्वामी एव न्यायाधीश नरेश कुमार चंद्रवंशी की युगल पीठ ने सरकारों और अफसरों को नोटिस जारी करने का आदेश दिया।

याचिकाकर्ता नितिन सिंघवी की तरफ से कोर्ट को बताया गया कि भारत सरकार ने 5 मादा  और एक नर भैंसा को असम के मानस नेशनल पार्क से पकड़ कर छत्तीसगढ़ के बारनवापारा अभ्यारण के जंगल में पुनर्वासित करने की अनुमति दी थी।  अप्रैल 2020 में मानस नेशनल पार्क असम से छत्तीसगढ़ वन विभाग, एक मादा वन भैंसा और एक नर वन भैंसा को लाकर बारनवापारा अभ्यारण के बाड़े में  रखा है।  छत्तीसगढ़ वन विभाग की योजना यह है कि इन वन भैंसों को बाड़े में रखकर उनसे प्रजनन कराया जाएगा।

वन्य जीव संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के अनुसार शेड्यूल 1 के वन्य प्राणी को ट्रांसलोकेट करने उपरांत वापस वन में छोड़ा जाना अनिवार्य है, जबकि छत्तीसगढ़ वन विभाग ने इन्हें बाड़े में कैद कर रखा है, यहाँ तक कि असम से लाए गए वन भैसों से पैदा हुए वन भैसों को भी जंगल में नहीं छोड़ा जायेगा, यानि कि बाड़े में ही संख्या बढाई जाएगी।  छत्तीसगढ़ वन विभाग ने होशियारी से वन में वापस वन भैसों को छोड़ने ने नाम से अनुमति  ली और उन्हें प्रजनन के नाम से बंधक बना रखा है जो कि वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम के तहत अपराध है।  बंधक बनाये रखने के कारण कुछ समय में वन भैसे अपना स्वाभिक गुण खोने लगते है।  वन विभाग ने शेष चार वन भैसों को लाने की योजना बना रखी है।

याचिकाकर्ता ने दोनों वन भैसों को वापस असम भेजने  की मांग कोर्ट से की और 4 शेष वन भैसों को छत्तीसगढ़ लाये जाने की अनुमति  निरस्त करने की मांग की, साथ ही दोषी अधिकारियों  की विरुद्ध कार्रवाई  की मांग की है। याचिकाकर्ता नितिन सिंघवी ने चर्चा में बताया कि पिछले डेढ़ वर्ष से वे असम से लाए गए वन भैसों की जानकारी प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) से मांग रहे थे परंतु उन्हें कभी कहा जाता था कि आवेदक ने बताया नहीं कि वन भैंसा पालतू है या जंगली है, कभी कहा जाता था कि यह नहीं बताया कि वह कहां पर है? शहर में है कि जंगल में है. एक आवेदन में तो यह तक कह दिया की असम के वन भैसों की जानकारी वन भैंसे के स्वामी से असम से मांग ले. जब मामला सूचना आयोग पहुंचा और 2 आई.एफ.एस. अधिकारियों को 25-25 हजार की पेनल्टी लगी तब वन विभाग ने सूचना मुहैया कराई. यह पूछे जाने पर कि कौन-कौन अधिकारी वन भैसों को लाने के लिए जिम्मेदार हैं तो सिंघवी ने बताया की वर्तमान प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) के साथ-साथ पूर्व में पदस्थ तीन अन्य प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) तथा पूर्व में पदस्थ एक अपर प्रधान मुख्य संरक्षक उनके अनुसार जिम्मेदार है।

नितिन सिंघवी ने कहा कि असम से जिस मानक नेशनल पार्क से वन भैसे लाए गए हैं वह टाइगर रिजर्व है अतः एनटीसीए की अनुमति अनिवार्य थी।  एनटीसीए की तकनिकी समिति ने असम के वन भैसों को छत्तीसगढ़ के बारनवापारा में पुनर्वासित करने के करने के पूर्व परिस्थितिकी अर्थात इकोलॉजिकल सूटेबिलिटी रिपोर्ट मंगवाई थी जिससे यह पता लगाया जा सके कि असम के वन भैसों छत्तीसगढ़ में रह सकते हैं कि नहीं. परन्तु छत्तीसगढ़ वन विभाग बिना इकोलॉजिकल सूटेबिलिटी अध्ययन  कराये और एनटीसीए को रिपोर्ट किये वन भैसों को ले कर आ गया है।

 

 

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