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एनजीटी के फैसले से पावर प्लांट और कोल इंडस्ट्री संकट में

समवेत सृजन ब्यूरो


एनजीटी ( राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल ) के तुगलकी फरमान से पावर प्लांट और कोल इंडस्ट्री पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। पिछले साल एनजीटी ने प्रदूषण को रोकने के लिए ट्रकों से कोयले के परिवहन पर रोक लगा दी थी। एनजीटी ने कोयला लाने और ले जाने के लिए कोल ब्लाक से पवार प्लांट, कोल वाशरी और रेलवे साइडिंग तक कन्वेयर बेल्ट लगाने अथवा रेलवे लाइन बिछाने का आदेश दिया था। उद्योगपतियों की गुहार पर एनजीटी ने अपने आदेश के अमल पर एक साल रोक लगा दी, पर यह मियाद फ़रवरी 2021 में पूरी हो जाएगी। इसके बाद ट्रकों से कोयले की ढुलाई किए जाने पर सजा और जुर्माने का प्रावधान है। लंबा कन्वेयर बेल्ट अथवा रेलवे लाइन बिछाना न तो आसान है और न ही सस्ता। इस कारण करीब एक साल से कोरोना की मार झेल रहे पावर प्लांट और कोल इंडस्ट्री के सामने कोयला परिवहन के लिए कन्वेयर बेल्ट लगाने अथवा रेलवे लाइन बिछाने का काम पहाड़ से टकराने जैसा हो गया है।

कहते हैं एनजीटी के फैसले पर अमल का समय नजदीक आते ही छत्तीसगढ़ के पावर और कोल सेक्टर में हड़कंप मच गया है। पावर और कोल सेक्टर से जुड़े लोग एनजीटी के आदेश को अव्यवहारिक बता रहे हैं। कन्वेयर बेल्ट और रेलवे लाइन दोनों हो खर्चीला और समय लेने वाला काम है। इससे पावर प्लांट और कोल वाशरी की लागत कई गुना बढ़ जाएगी। पावर और कोल इंडस्ट्री ने पिछले साल एनजीटी में पुनर्विचार याचिका दायर कर अमल का समय बढ़वाया था। इस साल भी पुनर्विचार याचिका दायर करने पर विचार किया जा रहा है।

कुछ लोगों का मानना है कि वर्तमान परिस्थिति में यही एक विकल्प है। माना जा रहा है कि कन्वेयर बेल्ट या रेलवे से कोयले की ढुलाई अनिवार्य कर देने और ट्रकों से परिवहन बंद कर देने से छत्तीसगढ़ के अधिकांश पावर प्लांट बंद हो जाएंगे या फिर क्षमता से बहुत ही कम उत्पादन कर पाएंगे। खदानों से कोयला खनन करके ट्रकों से ट्रांसपोर्ट कर पावर प्लांटों तक पहुंचाया जा रहा है उन ब्लाकों की सीमा में 5 से 7 गांव ही आ रहे हैं। कहा जा रहा है कि केंद्र सरकार को इन क्षेत्रों में कोयला खदान की नीलामी से पहले अनिवार्य रूप से इन गांव का विस्थापन किया जाना था। कोयला मंत्रालय ने यह काम नहीं किया। गांव वहीं बसे हुए हैं। इस कारण दिक्कत आ रही है। पावर और कोल सेक्टर के लोगों का कहना है कि एनजीटी द्वारा गठित कमेटियों को इलाकों की भौगोलिक स्थिति का अध्ययन करने के बाद सबसे पहले तो कोयला मंत्रालय को सख्त निर्देश देना चाहिए कि कोल ब्लाक की नीलामी से पहले गांवों का विस्थापन हो जाय साथ ही खनन से पहले ग्रीन बेल्ट को विधिवत विकसित किया। उद्योगपतियों का कहना है कि एनजीटी ने उन उद्योगों को निशाना बना रहा है जिन्होंने विधिवत ऑक्शन में कोयला ब्लॉकों को लिया है।

व्यावहारिक खनन प्रक्रिया के तहत ही कोयले का परिवहन प्रारंभ किया है। एनजीटी ने ही आदेश दिया था कि किसी भी तरीके का मिनरल हाइड्रोलिक बंद ट्रकों में ही ट्रांसपोर्ट होगा वह भी व्यवहारिक नहीं था। हमारे देश और प्रदेश में ट्रांसपोर्टर सभी तरीके के ट्रांसपोर्ट करने के लिए ही ट्रक खरीदते हैं। अब यदि विशेष प्रकार के ट्रकों का परिचालन उन्होंने कर लिया तो वह दूसरा काम नहीं कर सकते यह भी एक व्यावहारिक दिक्कत है दूसरा विकल्प यही है कि पावर प्लांट कंपनियां कोयला परिवहन के लिए अपने स्वयं के हाइड्रोलिक बंद ट्रकों को ट्रक कंपनियों से खरीदें और उसमें सिर्फ कोयले का परिवहन करें उसमें भी व्यावहारिक दिक्कत यह है कि जब कोयला ज्यादा आ जाएगा तो उस जेसीबी से निश्चित ही टूट-फूट होगी और कुछ ही दिनों में वह हाइड्रोलिक पैनल बंद ट्रक का पैनल काम करना बंद कर देगा। पैनल टूटने से कोयला खुले में ही ट्रांसपोर्ट होने लगेगा। उद्योगपतियों का कहना है कि पर्यावरण से लोगों को नुकसान नहीं पहुँचाना चाहिए , पर पर्यावरण संरक्षण के लिए चाक-चौबंद व्यवस्था कोयला मंत्रालय को खदानों की नीलामी से पहले करना चाहिए , जिससे लोगों और उद्योगपतियों साथ इस सेक्टर में सहायक के तौर से जुड़े लोगों को परेशानी उठाना पड़े।

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