खेल पर मेरी समझ सीमित है इसलिए बहुत कम लिखता हूँ,लेकिन कुछ ऐसे प्रसंग होते हैं की जिन पर लिखने से अपने आपको रोक नहीं पाता. भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली का टीम की कप्तानी करने से अचानक हाथ खड़े करना एक ऐसा ही विषय है. खेल की दुनिया में विराट कोहली इस समय सबसे अधिक चर्चित,लोकप्रिय और सम्मानित नाम है.
विराट कोहली से पहले भी देश के पास एक से बढ़ककर एक कप्तान रहे हैं लेकिन विराट अपने आप में विराट हैं. उन्होंने 68 टेस्ट मुकाबलों में टीम इंडिया की कप्तानी की, जिसमें से 40 मैचों में जीत मिली. 17 मुकाबलों में हार का सामना करना पड़ा, जबकि 11 मुकाबले ड्रॉ रहे. वे भारत की तरफ से सबसे ज्यादा टेस्ट मैच जीतने वाले कप्तान हैं. इस मामले में उन्होंने महेंद्र सिंह धोनी, सौरव गांगुली, मोहम्मद अजहरुद्दीन और सुनील गावस्कर जैसे दिग्गजों को पछाड़ा है. बावजूद इसके उन्हें क्रिकेट का भगवान नहीं कहा जाता. क्रिकेट में भी भगवान राजनीति की तरह ही जब कभी अवतरित होते हैं.
बात विराट कोहली की कर रहा हूँ इसलिए बता दूँ कि मेरे जैसे अल्पज्ञानी क्रिकेट प्रेमी को विराट कोहली हमेशा आकर्षित करते रहे हैं. 33 साल कि विराट कोहली बचपन से क्रिकेट खेल रहे हैं. शायद वे खेलने कि लिए ही जन्मे थे. भारतीय क्रिकेट टीम कि लिए खेलते हुए भी उन्हें कोई 14 साल होने को हैं. वे भारतीय क्रिकेट टीम कि ऐसे कप्तान हैं जो लगातार बेहतर देने कि बावजूद अचानक कप्तानी छोड़ बैठे हैं. कोहली 2014 से भारतीय क्रिकेट टीम का नेतृत्व कर रहे हैं थे. उनके खेल जीवन की उपलब्धियों को लेकर किसी को शायद ही कोई शिकायत रही हो, लेकिन जब अंतर्मन साथ नहीं देता तो वैराग्य पैदा हो ही जाता है.
क्रिकेट में राजनीति की तरह चिपके रहने वाले लोग कम ही होते हैं. कोहली कि अचानक कप्तानी छोड़ने के फैसले कि बारे में मेरी राय भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व प्रमुख कोच रवि शास्त्री से अलग नहीं है. शास्त्री कहते हैं कि -‘विराट कोहली कोहली को दो साल और टेस्ट कप्तान रहना चाहिए था. बहुत लोग इस बात को नहीं मानेंगे कि अभी कोहली 50 से 60 टेस्ट और जीत सकते थे. हालांकि, हमें उनके फैसले का सम्मान करना चाहिये.
कोहली कि बारे में शास्त्री से ज्यादा आधिकारिक टीप कौन कर सकता है ? वे कहते हैं कि “विराट कोहली ने 5 से 6 साल टेस्ट टीम की कप्तानी की. इस दौरान ज्यादातर वक्त टीम इंडिया दुनिया की नंबर वन टीम रही. किसी भी भारतीय कप्तान का रिकॉर्ड ऐसा नहीं रहा. “शास्त्री मानते हैं कि, “विराट कोहली अभी दो साल तक और टेस्ट टीम के कप्तान बने रह सकते थे, क्योंकि अब भारत को घर पर ही टेस्ट क्रिकेट खेलना है.”
गनीमत है कि आज के क्रूरतम समय में भी क्रिकेट में नैतिकता बनी हुई है. लोग यहां झूठ का सहारा नहीं लेते. यहां कि आंकड़े राजनीति की तरह बनावटी नहीं होते, इसलिए किसी भी खिलाड़ी का मूल्यांकन करने में किसी को कोई दुश्वारी नहीं होती. इसीलिए खेल भावना की दुहाई सब दूर दी जाती है. अच्छी बात ये है कि विराट कोहली ने भी इस खेल भावना का प्रदर्शन किया. हो सकता है कि उनके फैसले कि पीछे भारतीय क्रिकेट की अंतरंग राजनीति भी एक वजह हो लेकिन उन्होंने इस बारे में कोई संकेत नहीं दिया, इसलिए उनके फैसले का सम्मान किया जाना चाहिए.
हम उस जमाने कि क्रिकेट दर्शक हैं जब भारत की बाल पत्रिकाओं में भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान के रूप में अजित वाडेकर की तस्वीरें पोस्टर के रूप में छपती थीं. तब घर-घर में टीवी नहीं था लेकिन क्रिकेट के ये सितारे हर भारतीय कि दिल में रहते थे. रेडियों कि जरिये क्रिकेट कि खेल की कहानी सुनाई जाती थी और खिलाड़ी कि साथ ही दर्शक को भी खुद को संजय बनाना पड़ता था. आज जमाना बदल गया है. आज खेल कि सौवें पल तक पर भी कैमरे की नजर होती है, ऐसे में कोई भी कप्तान कुछ भी छिपा नहीं सकता. विराट ने भी कुछ छिपाया नहीं और अपने आपके साथ भारतीय क्रिकेट को लगातार विराट बनाने का काम किया है.
भारतीय क्रिकेट टीम कि आजादी कि पहले बने पहले कप्तान सीके नायडू को हम लोगों ने खेलते नहीं देखा लेकिन उनके बारे में पढ़ा है. वे केवल तीन-चार साल कप्तान रहे किन्तु वे आज भी विराट से ज्यादा विराट माने जाते हैं. महाराजकुमार विजयनगरम और इफ्तखार खान पटौदी ने तो केवल एक-एक मैच के लिए ही कप्तानी की,लाला अमरनाथ, विजय हजारे, वीनू माकड़, गुलाम अहमद, पाली उमरीगर, हेमू अधिकारी, दत्ता गायकवाड़,पंकज राय, गुलाब राय रामचंद्र, नारी कांट्रेकटर, चंदू बोर्डे ने तो विराट कि मुकाबले बहुत कम कप्तानी की किन्तु वे क्रिकेट कि इतिहास कि सम्माननीय नाम हैं.
विराट का सौभाग्य है कि वो उस भारतीय क्रिकेट टीम कि कप्तान रहे हैं जिसका नेतृत्व कभी मंसूर अली खान पटौदी, अजित वाडेकर, श्री निवास वैंकट राघवन, सुनील गावस्कर, बिशन सिंह वेदी, गुंडप्पा विश्वनाथ, कपिल देव् दिलीप वैंगसरकर, रवि शास्त्री, के श्रीकांत, मोहम्मद अजहरुद्दीन और सचिन तेंदुलकर जैसे महान खिलाड़ियों ने किया है. सौरव गांगुली, राहुल द्रविण, वीरेंद्र सहवाग, अनिल कुंबले और महेंद्र सिंह धोनी तो इस क्रिकेट की दुनिया के हाल के हीरो हैं. अब इसी फेहरिश्त में विराट भी शामिल हो गए हैं. वे खूब खेले और अभी उनके खेलने-खाने के ही दिन थे लेकिन उन्होंने दूसरों के लिए मैदान छोड़कर अपनी दरियादिली का सबूत दिया है. काश ! कि खेल की तरह भारतीय राजनीति के कप्तान भी इसी तरह प्रदर्शन करते और नए कीर्तिमान गढ़ते. विराट कोहली के उज्ज्वल भविष्य के लिए शुभकामनाएं. वे अब भले भारतीय क्रिकेट के कप्तान न हों लेकिन अलग-अलग रूपों में हमारे बीच लम्बे समय तक मौजूद रहें यही कामना है.
@ राकेश अचल
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