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बजट में इंश्योरेंस सेक्टर को पॉलिसी प्रीमियम पर जीएसटी घटने की उम्मीद, इंडस्ट्री की ये हैं मांगें

देश में कोरोनाकाल के बाद इंश्योरेंस सेक्टर की ग्रोथ में अच्छा इजाफा देखा गया क्योंकि लोगों को बीमा कराने के फायदे तो मिल रहे हैं. हालांकि इस सेक्टर की भी बजट से ढेरों उम्मीदें हैं जिनके पूरा होने की आस लगाए ये सेक्टर बैठा है. इंश्योरेंस इंडस्ट्री के लिए ये बजट खास रहने वाला है क्योंकि इस बार भी कोविड की परिस्थितियों को देखते हुए हेल्थकेयर सेक्टर पर खासा ध्यान दिया जाएगा. इसी सेक्टर में इंश्योरेंस इंडस्ट्री के लिए कुछ खास एलान होने की उम्मीद है.

पॉलिसी के प्रीमियम पर घटे GST

इंश्योरेंस पॉलिसी के प्रीमियम पर लगने वाली जीएसटी दर को घटाकर 5 फीसदी पर लाने की मांग कुछ समय से की जा रही है. इससे बीमा पॉलिसी का प्रीमियम घटेगा. अभी इंश्योरेंस पॉलिसी के प्रीमियम पर 18 फीसदी जीएसटी लगता है जिसके चलते प्रीमियम काफी ज्यादा आता है. इंश्योरेंस इंडस्ट्री ने वित्त मंत्रालय और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को बताया है कि कम से कम 5 साल के लिए इंश्योरेंस पॉलिसी के प्रीमियम पर जीएसटी घटाकर 5 फीसदी पर लाया जाए.

80C के तहत बढ़ाई जाए निवेश पर टैक्स छूट की लिमिट

आयकर अधिनियम 1961 की धारा 80C के तहत इन्वेस्टमेंट लिमिट बढ़ाने की मांग भी लंबे समय से की जा रही है. फिलहाल जो लिमिट 1.5 लाख रुपये है, इसे बढ़ाकर 2 से 2.5 लाख करने की मांग की जा रही है. दरअसल छोटी बचत योजनाओं समेत इंश्योरेंस प्रीमियम पर मिलने वाली टैक्स छूट भी इसी सेगमेंट में आती है जिसे देखते हुए लोगों के पास बीमा में पैसा लगाने का विकल्प कम रहता है.

इंश्योरेंस पॉलिसी के लिए अलग ब्रैकेट बने

इंश्योरेंस पॉलिसी को 80C के दायरे से बाहर कर इसके लिए अलग ब्रैकेट बनाने की मांग भी इंश्योरेंस इंडस्ट्री कर रही है जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग टैक्स बचाने के लिए ही सही लेकिन अपने स्वास्थ्य की रक्षा के लिए भी इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदें.

हेल्थ पॉलिसी पर टैक्स छूट की सीमा बढ़ाई जाए

हेल्थ पॉलिसी पर टैक्स छूट की सीमा बढ़ाने की जरूरत इसलिए बताई जा रही है क्योंकि फिलहाल 60 साल से कम आयु के लोग अपने परिवार के लिए मेडिक्लेम पॉलिसी खरीदकर सालाना 25,000 रुपये डिडक्शन का दावा कर सकते हैं. बता दें कि इनकम टैक्स के सेक्शन 80D के तहत ये डिडक्शन हासिल किया जा सकता है. बुजुर्ग माता-पिता के लिए पॉलिसी खरीदने पर सालाना 50,000 रुपये तक का डिडक्शन मिलता है. इसे बढ़ाने की जरूरत है.

 

 

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