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दान देने की विधि से उसके फल में भी अंतर होता है : मुनिश्री

नवापारा राजिम। नगर के सदर रोड स्थित जैन भवन में परम पूज्य चर्या शिरोमणि आचार्य 108 श्री विशुद्ध सागर जी महाराज के सुशिष्य परम पूज्य श्रमण रत्न मुनि 108 श्री सुयश सागर जी महाराज, पूज्य क्षुल्लक105 श्री श्रुत सागर जी महाराज, पूज्य क्षुल्लक 105 श्री सोहम सागर जी महाराज विराजित हैं। मुनि संघ की चर्या में प्रतिदिन चलने वाले प्रातः काल की सभा में पूज्य मुनि श्री ने अपने प्रवचन में कहा कि जितना केवली जानते हैं, उतना कह नहीं पाते, जितना भगवान कहते हैं , उतना गंधार खेल नहीं पाते, जितना गंधार खेलते है उतना आचार्य लिख नहीं पाते, जितना आचार्य लिखते हैं उतना हम पढ़ नहीं पाते और जितना हम पढ़ पाते हैं , उतना हम समझ नही पाते । वर्तमान में हमारे पास श्रुत का अंश मात्र है ।
शास्त्रों में कहा है , दान देने की विधि से उसके फल में भी अंतर होता है । मुनि को नवधाभक्ति पूर्वक आहार देने से आहार का फल कई गुना फल मिलता है । हमें ऐसा ही आहार देना चाहिए जो साधक की तप, स्वाध्याय एवम् संयम में वृद्धि हो ।
दाता में सात गुण होने चाहिए श्रद्धा, भक्ति, तुष्टि, विज्ञान, अलोभता, सत्व, क्षमा ।
पात्र जैसा होगा वैसा दान के फल में भी विशेषता होती है । महाव्रती उत्तम पात्र, देशव्रती मध्यम पात्र, अविरत सम्यकदृष्टि श्रावक जघन्य पात्र हैं । साधर्मी जन को भी भोजन कराना पुण्यार्जन का कारण होता हैं ।
आगामी तीन दिवसों में श्री मज्जिनेंद्र 1008 नवनिर्माणाधीन जिनालय में मुख्य वेदी का शिलान्यास महोत्सव एवम जिनेन्द्र प्रभु की महार्चना का भव्यतिभव्य आयोजन 25 से 27 जनवरी 2023 तक पुराने वर्णी भवन में होना हैं। जिसकी तैयारी बड़े जोरशोर से चल रही है।

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