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ट्रेडर्स की वित्त मंत्री से मांग नए सिरे से इनकम टैक्स कानून लिखने और जीएसटी कानून की समीक्षा का हो बजट में ऐलान

कोविड महामारी के चलते देश के व्यापारियों को बड़ा आर्थिक झटका लगा है. इसे देखते हुए देश के ट्रेडर्स की निगाहें एक फरवरी 2022 को पेश होने वाले बजट पर है. व्यापारियों की निगाहें इस बात पर टिकी होंगी कि केंद्रीय बजट में उनके लिए क्या घोषणाएं की जाती है जिससे देश में व्यापार करने के तरीके अधिक सुलभ हों. क्या बजट में गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) को सरल और युक्तिसंगत बनाने के लिए कोई महत्वपूर्ण कदम की घोषणा होगी. इनकम टैक्स कानून या भारत के ई-कॉमर्स व्यवसाय को सुव्यवस्थित करने के लिए भी कोई कदम उठाये जाएंगे ये तमाम सवाल ट्रेडर्स के मन में चल रहा है.

कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल ने कहा की  देश के 8 करोड़ से ज्यादा  व्यापारियों की बजट से बड़ी अपेक्षाएं हैं. ट्रेडर्स की संस्था कैट ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को बजट से जुड़ी अपनी मांगों की फेहरिस्त सौंप चुकी है. कैट ने आयकर क़ानून के पुनर्गठन, पार्टनरशिप फर्मों और एलएलपी फर्मों  को कॉर्पोरेट सेक्टर के बराबर रखते हए आयकर की दरों में छूट,आयकर क़ानून में घर से काम करने वाले लोगों के लिए विशेष कटौती, जीएसटी क़ानून की समीक्षा की मांग की गई है.

इसके अलावा व्यापार पर लगे सभी प्रकार के लाइसेंसों के स्थान पर एक लाइसेंस, एक नियामक प्राधिकरण के प्रावधान वाली ई-कॉमर्स नीति का रोल आउट, खुदरा व्यापार के लिए एक राष्ट्रीय नीति, खुदरा व्यापार को नियंत्रित करने वाले सभी प्रकार के कानूनों और नियमों की समीक्षा, व्यापारी पेंशन योजना का पुनर्गठन,व्यापारियों को बीमा का प्रावधान और प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी के डिजिटल इंडिया विजन को पूरा करने के लिए भारत के मौजूदा खुदरा व्यापार के उन्नयन, आधुनिकीकरण और कम्प्यूटरीकरण के लिए विशेष छूट एवं रियायतें देने की मांग की गई है.

कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष बी सी भरतिया ने कहा कि मौजूदा इनकम टैक्स कानून में बीते छह दशकों में कई बदलाव और संशोधन किए गए हैं और इसलिए कानून अपनी मूल संरचना खो चुका है. इसलिए इऩकम टैक्स कानून को फिर से तैयार करने के लिए एक विशेष कार्य बल का गठन की घोषणा को बजट का हिस्सा होना चाहिए. बजट में व्यापारियों को टैक्स कलेक्टर का दर्जा देने की मांग की गई है. उन्होंने जमाराशियों को स्वीकार करने और चुकाने की सीमा को मौजूदा 20000 से बढ़ाकर कम से कम 50,000 रुपये किए जाने की मांग की है. आयकर अधिनियम की धारा 43ए (3) के तहत नकद सीमा में किए गए व्यय के संबंध में सीमा भी बढ़ाई जानी चाहिए. मंहगाई को देखते हुए खुदरा स्तर पर कारोबार में गांवों से शहर में खरीदारी के लिए आने वाले लोगों को नकद भुगतान करना पड़ रहा है. व्यय के तहत 10,000 रुपये और ऋण और जमा के लिए ₹20000 की सीमा बहुत कम है.  इसको बढ़ा कर कम से कम 50 हजार करने की जरूरत है.

 

 

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