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महान कलाकार सुरुज बाई खांडे की पुण्यतिथी पर छत्तीसगढ़ी भाषा के लिए की गई पदयात्रा

बिलासपुर। सुरुज बाई जिस मातृभाषा- छत्तीसगढ़ी में ‘भरथरी-गाथा’ गाती थीं उस छत्तीसगढ़ी- भाषा को प्राथमिक शिक्षा का माध्यम बनाने के लिए महामाया चौक सरकंडा से चकरभाठा फिर चकरभाठा से बिलासपुर तक एकदिवसीय पदयात्रा की गई।

पदयात्रा के दुसरे चरण के तहत जरहाभाठा , तिफरा , हाईकोर्ट परिसर , धमनी , नगपुरा, सिरगिट्टी के रास्ते 20 किमी चलकर लोगों को जागरुक किया गया। वही छत्तीसगढ़ी भाषा को कम से कम प्राथमिक शिक्षा का माध्यम बनाने की प्रमुख मांग के साथ ही उनको राजकाज , कामकाज की भाषा बनाने के लिए ‘मोर चिन्हारी’ समिती द्वारा पदयात्रा के द्वितीय चरण के तहत दर्जनों गांव के रास्ते बिलासपुर से चकरभाठा और चकरभाठा से बिलासपुर तक पदयात्रा की गयी। ‘अन्तरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस’ के निमित्त से सांस्कृतिक-राजधानी रतनपुर से शुरू की गई इस जनजागरण-पदयात्रा का प्रथम-चरण २२-२३फरवरी को सम्पन्न हो चुका है !

इस दूसरे चरण की यात्रा के दौरान 20 किमी से ज्यादा चलकर समिती ने लोगो को जागरुक किया।पदयात्रा में शामिल 81 वर्ष के नंदकिशोर शुक्ल ने बताया कि गैर-मातृभाषा माध्यम में छत्तीसगढ़िया बच्चों को शिक्षा देना उनके साथ बर्बरता है।उनकी स्वाभाविक शैक्षणिक विकास को रोकना है। बालमन की ऐसी मानसिक हत्या छत्तीसगढ़ को छोड़कर पूरे हिन्दुस्तान में और कहीं नही होता । क्योकि मातृभाषा में शिक्षा पाना हर बच्चे का कानूनी,संवैधानिक अधिकार है। पर दुखद रुप से हमारा छत्तीसगढ़िया-समाज इस वाजिब अधिकार से वंचित है , लेकिन हमारा संघर्ष लगातार जारी है।उन्होनें आगे बताया कि जनता में जागरण के लिए हमारा पदयात्रा चरणबद्ध रूप से आगे भी चलता रहेगा।यात्रा में डा. प्रदीप कौशिक , लोकेन्द्र कौशिक , संजय कुमार , राजकुमार समेत दर्जन भर लोग विभिन्न पड़ाव में शामिल होते रहे।

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