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धरती के हर कोने में लगता है ‘ डर ‘ : राकेश अचल

‘डर ‘ के बारे में कहा जाता है कि डर होता नहीं है ,उसे पैदा किया जाता है.मुझे भी लगता है कि डर एक उत्पाद की तरह है ,जिसे अलग-अलग तरीके से ,अलग-अलग रूप में पैदा किया जाता है. भारत में डरने की बात कहने पर कह दिया जाता है कि -‘ पकिस्तान ‘ चले जाओ लेकिन दूसरी जगह डर से सावधान रहने को कहा जाता है. दुनिया के सबसे मजबूत देश अमेरिका में भी डर पैदा करने की अभद्र कोशिशें होती रहतीं हैं. बीते रोज भी  अटलांटा में  ऐसा ही एक हादसा हुआ, जहां निरपराध 4  लोग मारे गए ताकि समाज में डर पैदा हो सके .
अटलांटा अमेरिका का एक प्राचीन और हरा-भरा प्रदेश है.यहां अश्वेतों का बाहुल्य है. अमेरिका के गांधी कहे जाने वाले मार्टिन लूथर किंग जूनियर यहीं पैदा हुए मार्टिन ने समाज से डर दूर करने के लिए ही रंगभेद के खिलाफ लम्बी लड़ाई लड़ी  और अपनी शहादत भी दी ,डर दूर भी हुअकिंतु हमेशा के लिए मरा नहीं .यहां डर जब-तब आज भी सर उठाता है .
इस बार डर पैदा करने  के लिए ‘स्पॉ ‘ को चुना गया.पुलिस के मुताबिक  अटलांटा के उत्तर में स्थित एक सबअर्ब एकवर्थ में एक मसाज पार्लर में चार लोग मारे गए और शहर में ही दो स्पा में चार लोगों की मौत हुई है.अधिकारियों का कहना है कि एक 21 वर्षीय संदिग्ध को गिरफ़्तार किया गया है और माना जा रहा है कि तीनों शूटिंग की घटनाओं को इसी शख़्स ने अंजाम दिया है.
इस शूटिंग के पीछे की मंशा क्या थी इसे लेकर कोई जानकारी अब तक सामने नहीं आई है.
इस समय डर के साये में डूबे अटलांटा में मै दो बार गया और करीब आठ महीने रहा ,लेकिन मुझे वहां शायद ही कभी डर का अहसास हुआ ,,हालाँकि लोग मुझे आगाह करते रहते थे,कहते की -‘डर ‘ कर रहिये,यहाँ कभी भी कुछ भी हो सकता है ,क्योंकि यहां डर पैदा करने के लिए अनेक तत्व सक्रिय रहते हैं .मेरे ख्याल से ये उसी प्रकार का डर है जैसा मुंबई में उत्तर भारत के लोगों के मुंबई आने के कारण लेकिन अकारण पैदा हो जाता है और इसकी प्रतिक्रिया में लोग हिंसा का शिकार होते हैं .
अटलांटा में गोलीबारी की पहली  घटना शाम 5 बजे चेरोकी के एक्वर्थ में यंग एशियन मसाज पार्लर में हुई.  में हुयी .एक घंटे बाद ही उत्तर पूर्व अटलांटा के गोल्ड स्पॉ में तीन लाशें मिलीं .पुलिस इन हादसों की खबर से चकरघिन्नी हो गयी. पूरे अटलांटा में दहशत का माहौल  बन गया .सड़क पार एक और अरोमाथेरेपी स्पॉ में भी एक महिला को मार दिया गया .लेकिन यहां की पुलिस ने कुछ ही देर में इन वारदातों के लिए एक संदिग्ध राबर्ट आरोंग लांग को धर दबोचा .राबर्ट बुडस्टॉक का रहने वाला है  राबर्ट से पूछताछ की जा रही है .
अटलांटा में मैंने कई बार देर रात भी चलकदमी की है ,यहाँ की वायनरीस को भी देखा है ,यकीनन यहां एशिया के लोग कुछ दबे-सहमे रहते हैं लेकिन डर इतना भी नहीं होता की लोग शाम ढलते ही अपने घरों में घुसकर बैठ जाएँ .हम वहां आधीरात के समय तक अपने परिचितों के यहां से वापस लौटे हैं .यानि कुछ सिरफ़िर तत्व होते हैं जो समाज को अभी नहीं देखना चाहते.ऐसे तत्व कहीं भी हो सकते हैं.उत्तर,दक्षिण,पूरब और पश्चिम दुनिया का कोई भी भाग इन भी पैदा करने वाले तत्वों से न खाली है और न खाली रहा है और न आगे रहेगा.
दुनिया की सबसे बुद्धिमान कही जाने वाली मनुष्य प्रजाति को इसी अजाने डर के साथ जीना पडेगा.पता नहीं ये अभिशाप है या कोई विवशता .दुनिया में शायद ही कोई ऐसा भू-भाग हो जिसे अभी कहा जा सके.कहीं आतंक का डर है तो कहीं भूख का डर .कहीं प्यास का डर है तो कहीं रोग का डर .जीवन को बचाये रहने के साथ ही मृत्यु का डर तो सबसे बड़ा डर है ही.मृत्यु ही हर डर का पिता है,माँ है .अगर आदमी मौत से डरना बंद कर दे तो आतंक,भूख-प्यास रोग उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते .
बहरहाल मै अमेरिका में जहाँ हूँ वहां डर का नामोनिशान तक नहीं है.सब अमन है,चैन है लेकिन ये कब तक है कोई नहीं जानता.कब रंग में भंग पड़ जाये किसे पता ? विधाता  भी नहीं जानता होगा शायद !
मुझे लगता है कि डर विकास की सबसे बड़ी बाधा है. एक डरा हुआ समाज,देश कभी भी तरक्की नहीं कर सकता .डर से बाहर आना ही पड़ता है. हर कोई डर से बाहर आने का प्रयास करता है और कामयाब भी होता है. महाबली अमेरिका में भी एक समय समाज भयाक्रांत था लेकिन आज वो ही अमेरिका पूरी दुनिया को भयभीत करने के लिए लांछित किया जाता है .लेकिन अमरीकी समाज इसी भी का विरोध भी करता है .अमरीकी भयभीत रहते भी है और नहीं भी .अमरकियों की जीवन शैली देखिये तो उसमें डर के लिए बहुत कम स्थान है. अमरीकी खुश रहना जानते हैं भले ही वे अकेले रहते हों .
जब डर की बात चलती है तो मुझे भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी भाई देसाई की याद आ गयी. मेरे संज्ञान में वे अकेले पहले प्रधानमंत्री थे जिन्होंने जनता से निर्भय होने की अपील की थी ,मोरारजी भाई भी अनेक मामलों में निर्भय नेता थे,डर उन्हें छूने से भी डरता था .उनके जमाने में प्रधानमंत्रियों की वैसी सुरक्षा नहीं थी जैसी की आज है. कहते हैं की देसाई ने एक सभा में कलेक्टर और एसपी को देखकर उन्हें वापस भेज दिया था और पुलिस कर्मियों से कहा था की उनकी कोई जरूरत नहीं है.उनकी रक्षा जनता कर सकती है .
दुनिया में एक निर्भय समाज आज के युग की सबसे बड़ी   जरूरत है. निर्भय दुनिया ही हथियारों की होड़ से मौजूदा दुनिया को बचा सकती है,अन्यथा एक देश हथियार बनाएगा और दूसरा खरीदकर उनका इस्तेमाल करेगा .दुनिया इस तरह कभी भी डर से बाहर नहीं निकल आएगी .ये विषय आज के तमाम ज्वलंत विषयों से हटकर है इसलिए मुमकिन है की आपको रोचक न लगे,लेकिन एक न एक दिन इस विषय पर सभी को चिंतन-मनन करना ही पड़ेगा .
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