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निराशा के बर्फ के नीचे आशा की बहती नदी

यानि कानि च मित्राणि, कृतानि शतानि च ।
पश्य मूषकमित्रेण, कपोता: मुक्तबन्धना: ॥

पंचतंत्र की एक कहानी का यह सार है। हमें सैकड़ों मित्र बनाने चाहिए, ताकि मुसीबत में वे हमारी काम आएं। शिकारी के जाल में फंसा हुआ कबूतर अपने मित्र चूहों की सहायता से बंधन मुक्त हो गया था।

सैकड़ों मित्र तो बनाने चाहिए, लेकिन इतने सारे मित्र किस तरह बनाए जा सकते हैं ? बहुतों के लिए किसी एक की मित्रता पा लेना भी दुर्लभ होता है। असल में, किसी को मित्र बनाने से पहले स्वयं को उसका मित्र बनाना पड़ता है। किसी से मुसीबत में काम आने की उम्मीद करने से पहले स्वयं उनकी मुसीबत में काम आना होता है।
एक दूसरे के काम आना ही परस्परता है। एक-दूसरे के काम आते हुए अपने-अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर लेना सहयोग है। परस्परता, सहायता और सहयोग ही मनुष्यता के विकास का मूल मंत्र है।

सृष्टि के प्रारंभ से लेकर अब तक परस्परता और सहयोग के बल पर ही हम अपने अस्तित्व की रक्षा करते आए हैं। जब-जब हमारे अस्तित्व पर संकट आया, हम सबने मजबूती के साथ एक दूसरे का हाथ थाम लिया। एक दूसरे की मदद की।

रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसी दास जी ने लिखा है-

‘परहित सरिस धरम नहीं भाई…’

तुलसी दास जी ने परहित को सबसे बड़ा धर्म बताया है। ऐसा इसलिए क्योंकि किसी और की मदद करते हुए हम मनुष्यता की रक्षा कर रहे होते हैं।

इस समय मनुष्यता पर कोरोना का गहरा संकट छाया हुआ है। हर तरफ निराशा ही निराशा दिखती है। लेकिन निराशा की इस बर्फ के नीचे परस्परता की नदी अब भी बह रही है। एक वायरस हर रोज सैकड़ों लोगों की जान ले रहा है, तो दूसरी तरफ हजारों-हजार लोग एक-दूसरे का हाथ थामे हर रोज हजारों लोगों को मौत के मुंह से बाहर निकाल रहे हैं।

परिचितों-अपरिचितों के लिए हजारों लोग रोज आक्सीजन का इंतजाम कर रहे हैं, दवाइयों का इंतजाम कर रहे हैं, भोजन की व्यवस्था कर रहे हैं, अस्पतालों में बिस्तरों का इंतजाम कर रहे हैं। मंदिरों को अस्पतालों में बदला जा रहा है, हज-हाउस कोविड-सेंटर में तब्दील हो रहे हैं, गुरुद्वारों में आक्सीजन का लंगर लगाया जा रहा है।

सोशल मीडिया पर मददगार दिन-रात सक्रिय है। सैकड़ों लोग फेसबुक-पेज और व्हाट्स एप ग्रुप बनाकर एक दूसरे की मदद कर रहे हैं। मनुष्य, मनुष्यता को बचाने के लिए एकजुट संघर्ष कर रहा है।

लेखक – तरन प्रकाश सिन्हा,आईएएस

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