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कही-सुनी ( 16 MAY 21): विधायकों में मंत्री बनने की चाहत

samvet srijan

(रवि भोई की कलम से)


असम में भले कांग्रेस की सरकार नहीं बन पाई , लेकिन वहां कांग्रेस को 29 सीटें मिलीं। 2016 के मुकाबले तीन सीटें अधिक। बंगाल में कांग्रेस 44 से शून्य पर पहुँच गई, स्वाभाविक है ऐसे में असम में तीन सीटों की बढ़त मायने रखती है। इसका श्रेय निश्चित तौर से छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को जाता है, क्योंकि वे वहां के प्रभारी थे। यह बात भूपेश बघेल के विरोधी भी मानने लगे हैं। ऐसे में मानकर चला जाने लगा है कि यहाँ भूपेश बघेल के नेतृत्व में सरकार चलती रहेगी। चर्चा है कि बघेल विरोधी और विधायक नेतृत्व में स्थिरता देखने लगे हैं , लेकिन कुछ विधायक मंत्रिमंडल में परिवर्तन की बात करने लगे हैं। मंत्रिमंडल में बदलाव की बात करने वाले पुराने व नए दोनों विधायक शामिल हैं। कांग्रेस में कुछ ऐसे विधायक हैं, जो संयुक्त मंत्रिमंडल में मंत्री रह चुके हैं, वहीँ कुछ राज्य बंनने के बाद जोगी सरकार में मंत्री रहे। कहते हैं मंत्री पद के दावेदार कुछ विधायकों ने पार्टी के एक बड़े नेता के सामने मंत्रिमंडल में फेरबदल कर उन्हें मौका देने की बात रखी है। चर्चा है कि मंत्री के दावेदार विधायकों का तर्क है कि राज्य में 15 साल बाद कांग्रेस की सरकार आई है तो उन्हें भी मौका मिलना चाहिए, जिससे वे अपनी योग्यता साबित कर सकें। वैसे कोरोनाकाल शुरू होने से पहले भूपेश मंत्रिमंडल में फेरबदल की खबरें उड़ीं थी। अब देखते हैं नई परिस्थिति में आगे क्या होता है ?

डॉ. आलोक शुक्ला के जिम्मे स्वास्थ्य

कोरोनाकाल में डॉ. आलोक शुक्ला को प्रमुख सचिव स्वास्थ्य की जिम्मेदारी देने के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के फैसले को लोग देर से लिया गया सही फैसला मान रहे हैं। संविदा पर कार्यरत 1986 बैच के आईएएस डॉ. आलोक शुक्ला सर्जन हैं और वे जोगी और रमन दोनों के शासनकाल में स्वास्थ्य सचिव रह चुके हैं। डॉ. आलोक शुक्ला स्वास्थ्य विषय पर लगातार लिखते भी रहते हैं। उन्होंने कोरोना पीड़ितों के इलाज में इस्तेमाल हो रहे रेमडेसिविर और दूसरे इंजेक्शन के बारे में अपने ब्लाग में लिखा भी था। वैश्विक महामारी के दौर में कई जिलों में डाक्टरों और प्रशासनिक अफसरों में खींचतान की खबरें सुनाई पड़ रही है , ऐसे में महामारी से निपटने के लिए अनुभवी और मेडिकल बैकग्राउंड वाले दूसरे अफसरों को जिम्मेदारी देकर समस्या का समाधान निकाला जा सकता है। छत्तीसगढ़ कैडर में आधे दर्जन से अधिक आईएएस अफसर मेडिकल की डिग्री वाले हैं। एमबीबीएस डिग्री वाले सारांश मित्तर बिलासपुर और सर्वेश्वर भूरे दुर्ग के कलेक्टर हैं,तो डॉ. प्रियंका शुक्ला वर्तमान में स्वास्थ्य विभाग में संयुक्त सचिव हैं। प्रमुख सचिव डॉ. मनिंदर कौर द्विवेदी और डॉ. कमलप्रीत सिंह भी एमबीबीएस (मेडिसिन)हैं। वर्तमान में हाउसिंग बोर्ड के आयुक्त अय्याज फकीर भाई तम्बोली और जगदीश सोनकर भी एमबीबीएस डिग्रीधारी आईएएस हैं। नीलेश क्षीरसागर बीएएमएस डिग्री वाले हैं।

रेणु पिल्लै का छुट्टी पर जाना

स्वास्थ्य विभाग की अपर मुख्य सचिव रहीं 1991 बैच की आईएएस रेणु पिल्लै लंबी छुट्टी पर गईं या सरकार ने जबरिया छुट्टी पर भेज दिया गया, चर्चा का विषय है। खबर है कि 18 से 45 वर्ष के लोगों के टीकाकरण के लिए सरकार की नीति से रेणु पिल्लै सहमत नहीं थीं। कहते हैं वे उसे केंद्र सरकार के दिशा-निर्देश के उलट मानीं। चर्चा है कि रेणु पिल्लै के रुख को देखते हुए राज्य सरकार ने उन्हें छुट्टी पर जाने को कह दिया। सरकार ने अब रेणु पिल्लै को अपर मुख्य सचिव पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग की जिम्मेदारी देकर उनका सम्मान बरक़रार रखा है। पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग को बड़ा विभाग माना जाता है। उनके पास राज्य प्रशासनिक अकादमी के महानिदेशक का पद भी रहेगा।

कौन बनेगा छत्तीसगढ़ का अडानी -अंबानी ?

जोगी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी ने एक खुला पत्र लिखकर राज्य के व्यापारियों से सहयोग मांगा है। उन्होंने छत्तीसगढ़ में जोगी कांग्रेस का ही भविष्य बताते हुए व्यापारियों को छत्तीसगढ़ का अडानी -अंबानी बनने का ऑफर भी दिया है। कोरोना के कारण उद्योग-धंधे बंद हैं और कांग्रेस की सरकार का अभी ढाई साल से अधिक समय बचा है, ऐसे में सवाल उठता है कि कौन उद्योगपति जोगी कांग्रेस के लिए अपना खजाना खोलेगा ? जोगी कांग्रेस के पास अभी चार विधायक हैं, जिनमें देवव्रत सिंह और प्रमोद शर्मा का सुर अलग चलता है तो धरमजीत सिंह भी टीएमसी के पक्ष में प्रचार करने के अमित जोगी की बात से सहमत नहीं हुए थे । रेणु जोगी तो अमित के साथ रहेंगी ही । 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद कई लोग जोगी कांग्रेस छोड़कर चले भी गए। अभी पार्टी के साथ कोई बड़ा चेहरा या कोई पुराना ब्यूरोक्रेट दिखाई नहीं पड़ रहा है। ऐसे में अमित का दांव कितना सटीक बैठता है, यह समय ही बताएगा ?

राजनीति में उलझी कांग्रेस – भाजपा

कोरोनाकाल में भी भाजपा और कांग्रेस राजनीति से बाज नहीं आ रहे हैं। कोरोना संकट से निपटने के लिए सुझाव देने हेतु भाजपा नेता मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से व्यक्तिगत तौर से मिलना चाहते थे। मुख्यमंत्री ने व्यक्तिगत चर्चा की जगह कुछ दिन बाद वर्चुअल चर्चा के लिए समय दिया ,तब भाजपा नेताओं ने इंकार कर दिया। इसके पहले दोनों दल एक-दूसरे के सांसदों की तलाश में लगे रहे , वहीँ भाजपा ने वर्चुअल धरना दिया तो कांग्रेस के लोगों ने अगले दिन फूल भेंट की राजनीति की। नेताओं को समझाना होगा, इस सब से कुछ फायदा नहीं होने वाला। लोग कोरोना में अपनों को खो रहे हैं , उन्हें संत्वना देने और उनके दुख दर्द बाँटने की जरुरत है। बैड और दवा के लिए परेशान लोगों को सहायता मुहैया कराएं। कोरोना में माता-पिता खोने वाले बच्चों की पढ़ाई का खर्चा उठाने और छात्रवृति देने के भूपेश सरकार के फैसले को जरूर मानवीयता वाला कहा जा रहा है।

कांग्रेस विधायक को खनिज पट्टा चर्चा में

कांग्रेस की एक विधायक को लाइम स्टोन के खनन का पट्टा आबंटन चर्चा में है। कहते हैं लाइम स्टोन के खनन का पट्टा पहले विधायक के रिश्तेदार के नाम पर था। रिश्तेदार के न रहने से खनन करीब दो साल बंद रहा। कहते हैं खनन बंद होने पर पट्टा ट्रांसफर नहीं किया जा सकता। कहा जा रहा है कि विधायक को खुश करने के लिए खनिज विभाग के कुछ अफसरों ने नियम-कानून को दरकिनार कर दिया और कांग्रेस विधायक की मर्जी के मुताबिक पट्टा ट्रांसफर कर दिया। अपनी सरकार है तो फायदा लेने में बुराई क्या ? और फिर कहावत भी है- जिसकी लाठी, उसकी भैंस।

बिजली बोर्ड का खेल

कहा जा रहा है छत्तीसगढ़ विद्युत मंडल ने अप्रैल 2020 के बिल को आधार बनाकर सभी को अप्रैल 2021 में एवरेज बिल भेज दिया। इसमें 400 यूनिट तक खपत की छूट भी नहीं दी गई है। इसके चलते मार्च के मुकाबले लोगों को अप्रैल महीने का भारीभरकम बिल मिल गया । विद्युत मंडल का कहना था मई में रीडिंग वाला बिल मिलेगा और उपभोक्ताओं को छूट भी दी जाएगी। पर इस बीच मंडल ने अप्रैल 2021 में उपभोक्ताओं से वसूली गई राशि को उनके खाते में एडवांस के तौर जमा कर दिया। पर एक बात साफ़ है कि पैसा लोगों की जेब से निकलकर मंडल के खाते में चला गया। याने एक तो कोरोना की मार, उस पर बिजली बोर्ड का प्रहार। सरकार ने 31 मई तक लाक डाउन कर दिया है ऐसे में मई महीने भी मीटर रीडिंग की संभावना तो दिख नहीं रही है।


(लेखक, पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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