Close

टूटे कश्मीर में चुनाव की चर्चा

आजादी के 72 साल बाद बिखंडित कश्मीर में चुनावों की चर्चा शुरू हो गयी है. एक और महामारी से जूझ रही सरकार बंगाल हारने के बाद अब टूटा हुआ कश्मीर जीतना चाहती है .पिछले एक अरसे से इस नवगठित राज्य में विधानसभा के चुनाव लंबित हैं .राज्य के राजनीतिक दल जिसे गुपकार एलाइंस भी कहा जाता है इस मसले पर प्रधानमंत्री के साथ सीधे मुंह बात करने को तैयार नहीं हैं .गुफ्तगू के लिए 24 जून की तारीख मुकर्रर की गयी है .
जम्मू-कश्मीर को मौजूदा सरकार ने अगस्त 2019 में बिखंडित करते हुए इसे तीन हिस्सों में बाँट दिया था.यहाँ से अनुच्छेद 370 भी समाप्त कर दिया गया था .अब ये इलाका केंद्र शासित क्षेत्र है .राज्य का रूतबा खो चुके कश्मीर के तमाम प्रमुख नेताओं को सरकार ने नजरबंद कर दिया था. देश में आजादी के बाद अनेक राज्यों का पुनर्गठन हुआ,अनेक नए राज्य बनाये गए,अनेक नए राज्य आगे भी बनाये जायेंगे किन्तु जैसे जम्मू-कश्मीर का बिखंडन हुआ है वैसा अतीत में कभी नहीं हुआ .राज्य के लोग खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं. वे न घर के रहे और न घाट के .जिस मकसद से इस सीमावर्ती राज्य को विखंडित किया गया ,वो मकसद भी पूरा नहीं हो पाया .

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ फारुख अब्दुल्ला,, पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती, जम्मू कश्मीर अपनी पार्टी (जेकेएपी) के अल्ताफ बुखारी और पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के प्रमुख सज्जाद लोन को चर्चा के लिए आमंत्रित किया है लेकिन मेहबूबा ने बैठक का न्यौता ठुकरा दिया है .मजे की बात ये है कि केंद्र यानि प्रधानमंत्री जी जिन राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ बातचीत करना चाहती है उन सबने एक गठबंधन बना लिया है ,जिसे गुपकार कहा जाता है .सरकार इस गठबंधन को पहले राष्ट्रविरोधी कह चुकी है. इसमें शामिल महबूबा के नेतृत्व वाली राजनीतिक मामलों की समिति (पीएसी) में आर वीरी, मुहम्मद सरताज मदनी, जीएन लोन हंजुरा, डॉ. महबूब बेग, नईम अख्तर, सुरिंदर चौधरी, यशपाल शर्मा, मास्टर तस्सदुक हुसैन, सोफी अब्दुल गफ्फार, निजाम उद्दीन भट, आसिया नकाश, फिरदौस अहमद टाक, मुहम्मद खुर्शीद आलम और एडवोकेट मुहम्मद युसूफ भट जैसे नेता सदस्य हैं. बहरहाल, मदनी अभी एहतियातन हिरासत में हैं.

बंगाल में मुंह की खा चुकी केंद्र सरकार के सामने अब कश्मीर में लोकतांत्रिक प्रक्रिया शुरू करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा है ,लेकिन ये तय नहीं है कि पुराने जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दल इस चर्चा में हिस्सा लेंगे या नहीं ?कुछ दल बातचीत के हक में हैं तो कुछ का कहना है कि जब तक जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल नहीं किया जाता तब तक बातचीत का कोई मतलब नहीं है. यानि केंद्र टूटे कश्मीर में बातचीत का न्यौता देकर केवल एक चाल चल रही है .केंद्र को उम्मीद है कि कम से कम इस बहाने गुपकार एलाइंस को तो कमजोर किया ही जा सकता है .

आपको याद होगा कि बीते छह जून को जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात करने के साथ और अधिक अर्धसैनिक बलों को कश्मीर भेजे जाने से ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं कि केंद्र जम्मू कश्मीर पर कुछ बड़े फैसले करने वाला है.कश्मीर में राजनितिक प्रक्रिया बहाल करने से पहले विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन किया जाना जरूरी है. इसके लिए केंद्र सर्कार पूर्व में ही आयोग बना चुकी है. इस आयोग की रपट लगभग तैयार है ,शायद केंद्र इस रपट पर कश्मीर के नेताओं से बातचीत करना चाहती है अविभाजित जम्मो-कश्मीर में अपना झंडा फहराने में नाकाम रही भाजपा ने इस हिस्से में केंद्र का नियंत्रण बढ़कर अपने लिए जमीन बनाने की कोशिश की है. अब सरकार को लगता है कि दो साल में उसे इस दिशा में काफी कामयाबी मिली है इसलिए अब यहां चुनावों के लिए जुआ खेला जा सकता है .

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जम्मू कश्मीर में कार्यान्वित की जा रहीं अनेक विकास परियोजनाओं की समीक्षा के बाद दावा किया है कि केंद्रशासित प्रदेश की जनता का समग्र विकास और कल्याण मोदी सरकार की शीर्ष प्राथमिकता है.शाह ने कहा कि जम्मू कश्मीर में केंद्र सरकार की योजनाओं की पहुंच 90 प्रतिशत तक हैं. इसकी सराहना करते हुए उन्होंने कोविड-19 टीकाकरण अभियान में राज्य की 76 प्रतिशत आबादी को टीका लगाए जाने, वहीं चार जिलों में तो शत प्रतिशत टीकाकरण के लिए उपराज्यपाल मनोज सिन्हा तथा उनकी टीम को भी सराहा.

अब सवाल ये है कि यदि मेहबूबा मुफ्ती बातचीत में शामिल नहीं होतीं तो केंद्र क्या करेगा ? क्या केंद्र स्थानीय नेताओं की अनदेखी कर इस नए केंद्रशासित प्रदेश में राजनीतिक गतिविधियां शुरू कर भाजपा को लाभ पहुंचा पाएगी ?जम्मू-कश्मीर में असंतोष की आग राख के ढेर के नीचे सुलग रही है .विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन कर इसे कमजोर करने की तैयारी है ,ताकि दुनिया को दिखाया जा सके कि भाजपा सरकार का जम्मू-कश्मीर को तोड़ने और यहां धारा 370 हटाने का फैसला सही था .जब तक इस टूटे कश्मीर में राजनीतिक गतिविधियां मामूल पर नहीं आतीं तब तक इसे प्रमाणित भी नहीं किया जा सकता ,जबकि ये एक चुनौती है .

अपनी पीठ पर राष्ट्र विरोधी होने का तमगा लटकाये घूम रहे नेशनल कांफ्रेंस,पीडीपी समेत दुसरे स्थानीय राजनितिक दलों के लिए आसान नहीं होगा कि वो अपनी पुरानी हैसियत दोबारा हासिल कर सके .कांग्रेस यहां भी हासिये पर है ,लेकिन उसकी मौजूदगी से इंकार नहीं किया जा सकता .केंद्र ने कहने के लिए यहां कांग्रेस में भी सेंध लगाई है ,लेकिन ये उजागर तभी होगी जब कि विधानसभा चुनाव क्षेत्रों का परिसीमन हो जाये .केंद्र के लिए ये सौदा महंगा जरूर है किन्तु अब उसकी दशा सांप-छंछून्दर जैसी हो गयी है .अब बहुत दिनों तक यहां बन्दूक की दम पर शासन नहीं चलाया जा सकता ,केंद्र को आशंका ये है कि कहीं यहां भी दिल्ली जैसा हाल न हो !

जाहिर है कि जम्मू-कश्मीर के तीन टुकड़े किये जाने के बाद राज्य का पहले जैसा रूतबा तो नहीं रहेगा किन्तु क्या बिखरा हुआ कश्मीर भाजपा के लिए सफलता की सीधी बन पायेगा ये भी तय नहीं है .भाजपा कि पशोपेश ये है कि वो यहां के राजनितिक दलों के साथ सत्ता में साझेदारी कर चुकी है .कांग्रेस को छोड़ ऐसा कोई स्थानीय दल नहीं है जो कभी न कभी भाजपा के साथ न रहा हो .अपने पुराने सहयोगियों के साथ चुनाव मैदान में कूदना आसान कदम नहीं है .आखिर किस मुंह से भाजपा ऐसा कर पाएगी ? और तय है कि बिना नए गठजोड़ के भाजपा को टूटे हुए कश्मीर में भी कामयाबी मिलने वाली नहीं है. जम्मू और लद्दाख जीतने भर से बात बनने वाली नहीं है .

आने वाले दिनों में यूपी समेत अनेक राज्य विधानसभा चुनावों का सामना करने से पहले जम्मू,कश्मीर का मुद्दा हल किये बिना भाजपा दीगर राज्यों के विधानसभा चुनावों में खडी नहीं हो सकती.भाजपा के पास अब कोई मुद्दा है ही नहीं.भाजपा की सारी बारूद बंगाल में खर्च हो चुकी है .अब बंगाल तो सोने का बनाने का अवसर भाजपा को मिला नहीं,देखिये जम्मू-कश्मीर वाले भाजपा पर यकीन करते हैं या नहीं . @राकेश अचल

 

ये भी पढ़ें- कही-सुनी ( 20 JUNE-21) : चर्चा में बिलासपुर के विश्वविद्यालय

One Comment
scroll to top