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मंकीपॉक्‍स की भारत में एंट्री, 35 साल का युवक देश में मंकीपॉक्‍स का पहला मरीज

दुनिया के 70 से ज्‍यादा देशों में फैल चुके मंकीपॉक्स वायरस की भारत में एंट्री हो गई है। केरल के कोल्‍लम जिले से मंकीपॉक्स का पहला मामला सामने आया है। मरीज हाल ही में विदेश से लौटकर आया था। केरल की स्वास्थ्य मंत्री वीना जॉर्ज ने बताया कि मंकीपॉक्स के लक्षण दिखने पर संदिग्‍ध को अस्‍पताल में भर्ती कराया गया था। टेस्‍ट में मंकीपॉक्स की पुष्टि हुई। फिलहाल मरीज का इलाज चल रहा है। एक रिपोर्ट बताती है कि अब तक 73 देशों में मंकीपॉक्स के 10,800 से ज्‍यादा मरीजों की पुष्टि हो चुकी है।

कोविड-19 के बीच मंकीपॉक्स वायरस की दस्‍तक से सरकार अलर्ट हो गई है। केंद्र ने सभी राज्यों से कहा कि सभी संदिग्ध मामलों की जांच हो, टेस्ट किए जाएं और अस्पतालों में निगरानी बढ़ाई जाए। बचाव के लिए जानना जरूरी है कि मंकीपॉक्‍स वायरस क्‍या है? कैसे फैलता है? आइए मंकीपॉक्‍स के लक्षणों, इलाज और वैक्‍सीन के बारे में जानते हैं।

देश में मंकीपॉक्स का पहला मामला मिला है। केरल की स्वास्थ्य मंत्री वीना जॉर्ज के मुताबिक, 35 वर्षीय युवक के मंकीपॉक्‍स वायरस से संक्रमित होने की पुष्टि हुई है। यह व्‍यक्ति हाल ही में UAE से लौटकर आया था। उसे तिरुवनंतपुरम मेडिकल कॉलेज में भर्ती किया गया है। जॉर्ज ने कहा कि वह विदेश में इस संक्रमण के एक मरीज के करीबी संपर्क में रहा था।

केंद्र ने किया अलर्ट, केरल भेजी टीम

मंकीपॉक्‍स का पहला केस कन्‍फर्म होते ही केंद्र सरकार ने हाई लेवल टीम केरल भेज दी है। गुरुवार को स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय ने एक एडवायजरी की भी जारी की। जरूरी दिशा-निर्देशों में मंकीपॉक्स रोग की निगरानी, रोग की पहचान और आइसोलेशन पर जोर दिया गया है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने पत्र में कहा है कि सभी संदिग्धों की स्क्रीनिंग और टेस्टिंग जरूर होनी चाहिए।

पत्र में कहा गया है कि संक्रमित और संदिग्ध को आइसोलेशन में रखना होगा। अस्पतालों में पर्याप्त इंतजाम होने चाहिए। किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए तैयारी होनी चाहिए। अस्पतालों में मंकीपॉक्स वायरस की पहचान करने कि लिए जरूरी व्यवस्था होनी चाहिए। देश पहले से कोरोना महामारी से जुड़ी चुनौतियों से जूझ रहा है इसलिए हमें अलर्ट रहना होगा।

क्या है मंकीपॉक्स?

  • मंकीपॉक्स एक जूनोसिस वायरस (जानवरों से इंसानों में फैलने वाला) है। यह संक्रमण बंदर के अलावा चूहा, गिलहरी और डॉर्मिस जैसे जानवरों में भी मिलता है।
  • मंकीपॉक्स बीमारी ऐसे वायरस के कारण होती है, जो स्मॉल पॉक्स यानी चेचक के वायरस के परिवार का ही सदस्य है।
  • चेचक के बाद मंकीपॉक्स पब्लिक हेल्थ के लिए ऑर्थोपॉक्स वायरस के रूप में उभरा है। मंकीपॉक्स के सबसे ज्यादा मामले ट्रॉपिकल रेन फॉरेस्ट के नजदीक मध्य और पश्चिम अफ्रीका में पाए जाते हैं।
  • इस वायरस का इलाज उपलब्ध है। WHO के मुताबिक वायरस से संक्रमित मरीजों की मृत्यु दर का अनुपात लगभग 3-6% रहा है।
  • मंकीपॉक्स 1958 में पहली बार एक बंदर में पाया गया था, जिसके बाद 1970 में यह 10 अफ्रीकी देशों में फैल गया था।
  • 2003 में पहली बार अमेरिका में इसके मामले सामने आए थे।
  • 2017 में नाइजीरिया में मंकीपॉक्स का सबसे बड़ा आउटब्रेक हुआ था, जिसके 75% मरीज पुरुष थे।
  • ब्रिटेन में इसके मामले पहली बार 2018 में सामने आए थे।
  • फिलहाल मंकीपॉक्स ज्यादातर मध्य और पश्चिम अफ्रीकी देशों के कुछ इलाकों में पाया जाता है। 6 मई को ब्रिटेन में मिला पहला मरीज नाइजीरिया से ही लौटा था।

मंकीपॉक्स के लक्षण ?

मंकीपॉक्स के शुरुआती दिनों में सबसे पहले फीवर देखने को मिलता है। इसके बाद स्किन में रैशेज पड़ना शुरू हो जाते हैं। जैसे ही स्किन में रैशेज हो, वैसे ही मरीज को तुरंत डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। इसके अलावा बॉडी पेन, थकान, गले में कफ और शरीर/गले में दाने होने लगते हैं।

WHO के अनुसार, मंकीपॉक्स के लक्षण संक्रमण के 5वें दिन से 21वें दिन तक आ सकते हैं। शुरुआती लक्षण फ्लू जैसे होते हैं। इनमें बुखार, सिर दर्द, मांसपेशियों में दर्द, कमर दर्द, कंपकंपी छूटना, थकान और सूजी हुई लिम्फ नोड्स शामिल हैं। इसके बाद चेहरे पर दाने उभरने लगते हैं, जो शरीर के दूसरे हिस्सों में भी फैल जाते हैं। संक्रमण के दौरान यह दाने कई बदलावों से गुजरते हैं और आखिर में चेचक की तरह ही पपड़ी बनकर गिर जाते हैं।

वायरस से डरने की जरूरत नहीं है

दिल्ली मेडिकल काउंसिल के अध्यक्ष डॉ. अरुण कुमार गुप्ता के मुताबिक, इस वायरस का व्यवहार कोविड-19 से काफी अलग है। ऐसे में महामारी की संभावना बहुत कम है। ध्यान देने वाली बात यह है कि इसके फैलने का तरीका भी कोविड से अलग है। डॉ. अरुण ने कहा कि मंकीपॉक्स के इलाज के लिए दवा और टीका दोनों ही उपलब्ध है। वायरस से डरने की जरूरत नहीं है। बस सावधान रहने की जरूरत है।

WHO के मुताबिक चेचक की वैक्सीन मंकीपॉक्स को रोकने के लिए 85 फीसदी कारगर है। हालांकि, वर्ष 2019 में मंकीपॉक्स से बचने के लिए एटेन्यूएटेड वैक्सीनिया वायरस (अंकारा स्ट्रेन) पर आधारित एक नई वैक्सीन को मंजूरी दी गई है।

 

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