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कही-सुनी ( 24 JULY-22): कौन हैं कांग्रेस के विभीषण?

रवि भोई की कलम से 


छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के दो विधायकों ने नवनिर्वाचित राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को ‘अंतर्रात्मा की आवाज’ पर वोट दिया। कांग्रेस ने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को वोट देने का फैसला किया था। यशवंत सिन्हा को कांग्रेस के 71 विधायकों की जगह 69 के ही वोट मिले। द्रौपदी मुर्मू को 21 विधायकों ने वोट दिए। कायदे से यहां द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में 19 वोट ही पड़ने थे। भाजपा के 14, जोगी कांग्रेस के तीन और बसपा के दो विधायकों का उन्हें खुला समर्थन था। अब कांग्रेस के लोग अपने दोनों विभीषण को तलाश रहे हैं, उन्हें ढूंढ पाते हैं या नहीं, यह समय बताएगा, लेकिन एक बात तो साफ़ है कि ‘अंतर्रात्मा की आवाज’ पर फैसला कांग्रेस के लिए शुभ संकेत नहीं है। कहते हैं कि भाजपा ने छत्तीसगढ़ में राष्ट्रपति चुनाव के लिए कांग्रेस में सेंध लगाने की कोई कोशिश ही नहीं की थी और दो वोट एक्स्ट्रा मिल गए। चर्चा है कि दो अनुसूचित जनजाति वर्ग के विधायकों ने ही द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में वोट किए। इससे साफ़ है कि कांग्रेस के भीतर कहीं न कहीं आग सुलग रही है। कांग्रेस के संगठन और सत्ता दोनों को 2023 के पहले आग को फैलने से रोकना होगा। यह आग आदिवासी इलाकों में लगी है तो कांग्रेस के लिए और भी चिंता की बात है,क्योंकि राज्य में कांग्रेस का बैकबोन तो आदिवासी वोटर ही है।

सिंहदेव के अगले कदम का इंतजार

लोगों को अब मंत्री टीएस सिंहदेव के अगले कदम का इंतजार है। टीएस सिंहदेव के पत्र के आधार पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने उनसे पंचायत और ग्रामीण विकास विभाग वापस लेकर मंत्री रविंद्र चौबे को सौंप दिया है। टीएस सिंहदेव के पास अब स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण,जीएसटी और 20 सूत्रीय क्रियान्वयन विभाग है। विधानसभा के मानसून सत्र छोड़कर श्री सिंहदेव कांग्रेस हाईकमान के सामने अपनी बात रखने के लिए दिल्ली में डटे हैं। कहा जा रहा है कि 28 जुलाई को श्रीमती सोनिया गाँधी से श्री सिंहदेव की मुलाक़ात हो सकती है। विवाद का कोई हल नहीं निकला तो वे कैबिनेट से अलग हो सकते हैं। माना जा रहा है कि चिट्ठी कांड के बाद श्री सिंहदेव और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बीच खाई काफी चौड़ी हो गई है। वैसे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल 23 जुलाई को दिल्ली गए हैं। उम्मीद की जा रही है कि सिंहदेव मुद्दे पर उनकी कांग्रेस हाईकमान से चर्चा हो सकती है।

डॉ रमन सिंह की पूछ-परख

छत्तीसगढ़ के 15 साल तक मुख्यमंत्री रहे डॉ रमन सिंह 2023 में भाजपा का चेहरा रहेंगे या नहीं, यह अभी तय नहीं है, लेकिन भाजपा हाईकमान छत्तीसगढ़ के बारे में फैसले से पहले डॉ रमन सिंह की राय जरूर ले रहा है। कहते हैं अजय जामवाल को छत्तीसगढ़ का क्षेत्रीय संगठन महामंत्री बनाने से पहले डॉ रमन सिंह की राय ली गई, इसके लिए उन्हें आनन-फानन दिल्ली बुलवाया गया था। हिमाचल प्रदेश के रहने वाले अजय जामवाल ने पूर्वोत्तर के राज्यों में भाजपा की जड़ें जमाई , अब उन्हें छत्तीसगढ़ में भाजपा को लहलहाने की जिम्मेदारी दी गई है। कहा जा रहा है कि अब भाजपा में बदलाव का दौर शुरू हो जाएगा। कई चेहरे उल्ट-पुलट होंगे। खबर है कि पार्टी में मेजर सर्जरी के बीच विधानसभा चुनाव तक तो डॉ रमन सिंह भाजपा के मजबूत खंभे बने रहेंगे। यही वजह है मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के साथ-साथ कांग्रेस के दूसरे नेताओं के निशाने पर ज्यादातर डॉ रमन सिंह ही रहते हैं।

जमाना मार्केटिंग का

जमाना मार्केटिंग का है, याने किसी वस्तु या काम का जितना प्रचार-प्रसार होगा, उतना ही वह लोगों तक पहुंचेगा। ऐसा ही कुछ आजकल भाजपा में चल रहा है। पहले मोदी सरकार के आठ साल, फिर तीन साल का प्रचार हुआ, अब आदिवासी समाज की द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने पर भाजपा के नेता-कार्यकर्त्ता गांव-गांव और घर-घर जाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति आभार का पत्र लिखवाएंगे और उसे दिल्ली भेजेंगे। द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने पर भाजपा ने विजय जुलुस निकाला। पहली बार देश में राष्ट्रपति की जीत पर जश्न और जुलुस का माहौल रहा। कहते हैं महिला और आदिवासी समाज की राष्ट्रपति का गान भाजपा गुजरात से लेकर छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव तक में जाएगी। विधानसभा चुनाव में उसका कितना फायदा मिलता है ,यह तो नतीजों से ही पता चलेगा।

संघ का समागम

कहा जा रहा है कि सितंबर के पहले हफ्ते में रायपुर में एयरपोर्ट के निकट एक भव्य भवन में आरएसएस का प्रशिक्षण कार्यक्रम होने वाला है। तीन दिन के प्रशिक्षण कार्यक्रम में संघ और भाजपा से जुड़े लोग हिस्सा लेंगे। इसमें संघ प्रमुख मोहन भागवत के आने की भी संभावना है। कहा जा रहा है प्रशिक्षण शिविर के बहाने 2023 के विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनाव की रणनीति और मुद्दे पर भी चर्चा होगी। इस प्रशिक्षण शिविर की अहम बात है कि इसमें भाग लेने वालों को तीन दिन वहीँ रुकना होगा। शिविर में मौजूदगी की वीडियो रिकार्डिंग होगी, साथ में उन्हें सुबह से योग और प्रार्थना के साथ दिनचर्या शुरू करनी पड़ेगी।

आलीशान होटल के बने नए मालिक

कहते हैं नई राजधानी स्थित एक आलीशान होटल का मालिकाना हक़ बदल गया है। चर्चा है कि इस होटल को चार लोगों ने संयुक्त रूप से ख़रीदा है। भाजपा राज में बने इस होटल के जमीन को लेकर विवाद की स्थिति रही और चर्चा में रहा। कहा जा रहा है होटल का भले मालिकाना हक़ बदल जाएगा, लेकिन उसका संचालन पुराना ग्रुप ही करता रहेगा। वैसे रायपुर में पिछले कुछ सालों में कई बड़े होटलों का मालिकाना हक और उनका नाम बदला। होटल के धंधे में खरीदी-बिक्री कोई नई बात नहीं है। लेकिन पांच सितारा होटल का कुछ सालों के भीतर बिक जाना चर्चा में है।

नाखुश कर्मचारी

छत्तीसगढ़ के सरकारी कर्मचारी सरकार से बड़े नाराज बताए जाते हैं। नाराजगी का कारण महंगाई भत्ता नहीं बढ़ना है। सरकार ने मांग के बाद भी कर्मचारियों का महंगाई भत्ता 22 फीसदी से बढाकर 34 फीसदी अब तक नहीं किया है, उलट पिछले दिनों मंत्री- विधायकों का वेतन-भत्ता करीब 65 फीसदी तक बढ़ाने के प्रस्ताव को विधानसभा ने मुहर लगा दिया। यह निर्णय आग में घी के सामान काम कर गया है और कर्मचारी 25 से 29 जुलाई तक स्कूल से लेकर दफ्तर तक सब कुछ ठप करने का ऐलान किया है। कर्मचारियों का कहना है केंद्र और कई राज्यों में महंगाई भत्ता 34 फीसदी है, तो छत्तीसगढ़ में भी उन्हें 34 फीसदी महंगाई भत्ता मिलना चाहिए। राज्य विधानसभा का मानसून सत्र 27 जुलाई तक है , ऐसे में कर्मचारियों के बगावती तेवर का असर विधानसभा के कामकाज पर भी पड़ना स्वभाविक है। अब देखते हैं सरकार क्या कदम उठाती है? वैसे कर्मचारी 25 से 29 तक हड़ताल पर गए तो पूरा सप्ताह का काम ही चौपट हो जाएगा।

मानसून सत्र में विपक्ष के बल्ले -बल्ले

छत्तीसगढ़ में विधानसभा के मानसून सत्र के लिए विपक्ष को माहौल गरमाने और सरकार पर हमले के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी। मंत्री टीएस सिंहदेव का लेटर बम विपक्ष के हाथ लग गया। 14 विधायकों के बाद भी भाजपा ने सरकार पर चढ़ाई करती दिखी, वहीं जोगी कांग्रेस और बसपा के साथ मिलकर भूपेश बघेल सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव भी लाई है। पहले लग रहा था कि हमले से बचने के लिए सत्तापक्ष विधानसभा की कार्यवाही को समय से पहले खत्म करने की रणनीति अपनाएगा, लेकिन वह विपक्ष को खुलकर बैटिंग का मौका दे दिया है। अविश्वास प्रस्ताव पर तो बोलेंगे ही, अनुपूरक बजट चर्चा पर भी विपक्षी सदस्य खुलकर बोले और सदन देर तक चलती रही।


(-लेखक, पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

(डिस्क्लेमर – कुछ न्यूज पोर्टल इस कालम का इस्तेमाल कर रहे हैं। सभी से आग्रह है कि तथ्यों से छेड़छाड़ न करें। कोई न्यूज पोर्टल कोई बदलाव करता है, तो लेखक उसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। )


 

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