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दुष्कर्मी को केवल चार दिन में सजा-ए-मौत, शीघ्र फैसले पर सुप्रीम कोर्ट को आपत्ति

नई दिल्ली। दुष्कर्म के एक मामले में बिहार में जज ने आरोपी को केवल चार दिन में ही फैसला सुना दिया। मामले में जज ने आरोपी को सजा-ए-मौत की सजा सुनाई है। इस केस में अतिशिघ्र निर्णय पर सुप्रीम कोर्ट को आपत्ति की है।

मामले में पीठ ने कहा कि न्यायाधीश का दृष्टिकोण निर्धारित कानून के अनुरूप नहीं था। सजा सुनाए जाने के मुद्दे पर क्या हम एक दिन में निर्णय करते हैं? सुप्रीम कोर्ट के कई फैसले हैं जो कहते हैं कि सजा सुनाने के मुद्दे पर फैसले एक ही दिन में नहीं करने चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने बिहार के एक जज द्वारा चार दिन में ही पॉक्सो मामले में दोषी को फांसी की सजा सुनाए जाने पर आपत्ति जताई है। साथ ही उक्त जज ने एक ही दिन में पूरे हुए एक अन्य पॉक्सो के मामले में दोषी को उम्रकैद की भी सजा सुनाई है। शीर्ष अदालत ने कहा कि जज के रुख को ‘सराहनीय’ नहीं कहा जा सकता है।

जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस एस रवींद्र भट की पीठ बिहार के एक निलंबित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा दायर रिट याचिका पर विचार कर रही है। इसमें आरोप लगाया गया है कि हाईकोर्ट द्वारा पॉक्सो मामलों को कुछ दिनों के भीतर तय करने पर उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू की गई है।

जज ने पॉक्सो मामले में एक दिन के भीतर एक मुकदमे में दोषी को उम्रकैद की सजा सुनाई और बच्ची से दुष्कर्म के एक अन्य मामले में जज ने चार दिन के अंदर ट्रायल पूरा करने के बाद एक शख्स को फांसी की सजा सुनाई थी। पीठ ने जज द्वारा रिट याचिका पर नोटिस जारी किया है और पटना हाईकोर्ट से मामले से जुड़े दस्तावेज मंगवाए हैं।

इसका मतलब फैसले को रद्द करना नहीं
पीठ ने कहा कि सिर्फ इसलिए कि चार दिनों में कुछ किया जाता है तो इसका मतलब यह नहीं है कि निर्णय को रद्द करना होगा, लेकिन हम यह नहीं कह सकते कि ऐसा दृष्टिकोण सराहनीय है। जस्टिस ललित ने कहा कि हम मौत की सजा तय करने वाले कारकों का आंकलन करने के तरीकों को विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं। हमें जेल रिकॉर्ड देखना होगा। यहां इस जज ने चार दिनों में मौत की सजा सुनाई है।

एक गलत निर्णय पर अनुशासनात्मक कार्यवाही नहीं कर सकते
याचिकाकर्ता के वकील विकास सिंह ने कहा कि ऐसे उदाहरण हैं जो बताते हैं कि एक गलत निर्णय पारित करने पर न्यायाधीश के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती है। इस पर जस्टिस ललित ने कहा कि पीठ ने कुछ दिन पहले हत्या के एक मामले में गैरकानूनी सजा सुनाने पर एक न्यायाधीश की सेवा समाप्त करने के निर्णय पर हस्तक्षेप करने से इन्कार कर दिया था।

सजा के फैसले एक दिन में नहीं किए जाने चाहिए
पीठ ने यह भी कहा कि न्यायाधीश का दृष्टिकोण निर्धारित कानून के अनुरूप नहीं था। सजा सुनाए जाने के मुद्दे पर क्या हम एक दिन में निर्णय करते हैं? सुप्रीम कोर्ट के कई फैसले हैं जो कहते हैं कि सजा सुनाने के मुद्दे पर फैसले एक ही दिन में नहीं किए जाने चाहिए।

पीठ ने यह भी कहा
पीठ ने कहा कि आपने एक ही दिन में आरोपी को सुना और आजीवन कारावास की सजा सुनाई है, ऐसा नहीं होता है। मुकदमों का बोझ एक मुद्दा है और एक मामले के प्रति दृष्टिकोण एक अलग मुद्दा है।

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