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ग्रामीणों की बढ़ी चिंताः कलेक्टर को पत्र लिखकर कहा रोजगार के लिए पीईकेबी खदान नियमित रूप से जारी रहे

कोरबा। राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (आरआरवीयूएनएल) के परसा ईस्ट केते बासेन (पीईकेबी) खुली खदान को नियमित चालू रखने ग्रामीण तैयार हैं। इसके लिए ग्रामवासियों ने आज कलेक्टर को आवेदन सौंपा है।

ग्रामीणों ने पत्र में कलेक्टर से प्रार्थना की है कि सरगुजा जिले के उदयपुर तहसील में चालू कोयला खदान में वे सभी ग्रामीण नौकरी कर अपना तथा अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं। कोयला खदान के चलने से आसपास के हजारों लोगों की जीविका जुड़ी हुई है।

ग्रामीणों ने पत्र में जानकारी दी है कि विगत कुछ दिनों से यहां का काम धीरे-धीरे बंद हो रहा है। खदान में प्रतिदिन चलने वाली भारी मशीनों और डम्फर इत्यादि को निकाला जा रहा है, जिससे सैकड़ों लोगों का रोजगार भी छिन गया है। अब उन्हें पता चला है कि यह अगले माह से पूरी तरह बंद हो जाएगा। ग्रामीणों ने कहा ऐसे में यहां काम कर रहे लोगों का रोजगार भी बंद हो जाएगा।

खदान के बंद होने से इस क्षेत्र में भयंकर बेरोजगारी तो आएगी ही साथ ही इसमें कार्य कर रहे हज़ारों लोगों और उनके परिवार भुखमरी के कगार आ जायेगा। यही नहीं इससे हमारे परिवार को मिलने वाली शिक्षा, स्वास्थ्य इत्यादि जैसी जन उपयोगी सुविधाएं भी बंद हो जाएगी।

ग्राम परसा, फत्तेपुर, बासेन, घाटबर्रा, साल्हि आदि के निवासियों ने राजस्थान की खदान परियोजनाओं में हो रही देरी के कारण हो रहे रोजाना नुकसान के बारे में विस्तार से बताया था। पिछले कुछ महीनों से राजस्थान की परसा ईस्ट एवं केते बासेन खदान के समर्थन में चल रहे अभियान के अंतर्गत परसा गांव क्षेत्र के सैकड़ों प्रतिनिधियों ने स्वहस्ताक्षरित कर लिखे गए पत्र में प्रदेश और राजस्थान सरकार के साथ-साथ सांसद राहुल गांधी को भी पत्र लिखकर अनुरोध किया है।

एक अन्य प्रोजेक्ट को जमीन दे कर मुआवजा लेने वाले 90 फीसदी ग्रामीणों को अब नौकरी का इंतजार है। उन्होंने इस ओर भी इशारा किया था कि उनकी मांगों को अगर अनुकूल प्रतिफल नहीं मिला तो उन्हें अनिश्चित कालीन धरना प्रदर्शन करना पड़ेगा।

अभी हालही में कोयले के संकट के कारण ही केंद्र सरकार के उपक्रम साउथ-ईस्ट कोलफिल्ड्स लिमिटेड (SECL) द्वारा अगस्त से पावर प्लान्ट्स को छोड़कर अन्य उद्योगों को कोयले की आपूर्ति रोकने का निर्णय लिया गया है। उद्योग समूहों की मांग पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अब केंद्रीय कोयला एवं खान मंत्री प्रह्लाद जोशी को पत्र लिखकर मदद मांगी है।

उन्होंने केंद्र सरकार से प्रदेश के स्टील प्लांटों में कोयले के संकट को दूर करने का अनुरोध किया है। प्रदेश के स्टील उद्योग को हर महीने एक करोड़ पचास लाख टन कोयले की जरूरत है। जबकि प्रदेश में प्रतिवर्ष 15 करोड़ टन से अधिक कोयले का उत्पादन कर दूसरे स्थान पर है। इससे राज्य में बड़ी स्टील उत्पादक इकाइयों के अलावा सैकड़ों छोटी इकाइयों के लाखों लोगों की जीविका का आधार है। और आपूर्ति बाधित होने से जीविका में प्रभाव पड़ सकता है।

इंडियन एक्सप्रेस के एक आर्टिकल के अनुसार कोयले के संकट में सिर्फ भारत ही नहीं अपितु दुनिया के अन्य देश भी प्रभावित हैं। वहीं इम्पोर्टेड कोल् के उपयोग से जहां एक ओर बिजली उत्पादन की लागत में वृद्धि हो रही है तो वहीं दूसरी और उपभोक्ताओं को भी बिजली के बिल से काफी परेशानी होने लगी है। कोयला उत्पादन में छत्तीसगढ़ राज्य देश का अग्रणी राज्य है। भारत सरकार द्वारा अन्य राज्य जैसे गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, राजस्थान इत्यादि को कोल् ब्लॉक यहां आवंटित किया गया है।

उल्लेखनीय है कि देश के सबसे बड़े कोयला उत्पादन करने वाले छत्तीसगढ़ में भारत सरकार द्वारा राजस्थान सरकार के 4400 मेगावॉट के ताप विद्युत उत्पादन संयंत्रों के लिए सरगुजा जिले में तीन कोयला ब्लॉक परसा ईस्ट केते बासेन (पीईकेबी), परसा और केते एक्सटेंशन आवंटित किया गया है।

अब तक राजस्थान की पहली ब्लॉक परसा ईस्ट एवं केते बासेन खदान अकेले पर करीब 5000 से ज्यादा परिवार निर्भर है और यह संख्या बाकी दो खदानों के शुरू हो जाने से तीन गुनी हो जायेगी। इससे स्थानीय ग्रामवासियों का रोजगार के लिए पलायन कम हो जायेगा। साथ ही राजस्थान के विद्युत् निगम द्वारा CSR के अनेक कार्यक्रमों का विस्तार होगा, जिसमें ग्राम साल्हि में 100 बिस्तर का सर्वसुविधा युक्त अस्पताल प्रस्तावित है।

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