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कही-सुनी (08 AUG-21): क्या लड़ाई के मूड में आ गए हैं टी एस सिंहदेव

samvet srijan

(रवि भोई की कलम से)


कहते हैं स्वास्थ्य मंत्री टी एस सिंहदेव आरपार की लड़ाई के मूड में आ गए हैं और युद्ध का शंखनाद कर चुके हैं,पर सवाल है कि क्या वे नवजोत सिंह सिद्धू या फिर सचिन पायलट जैसे तेवर दिखा पाएंगे। लोगों को दिखने और अहसास होने लगा है कि सरकार के भीतर टी एस सिंहदेव के लिए अनुकूल माहौल अब रहा नहीं। पानी सिर से ऊपर चला गया है। सरगुजा के गढ़ से ही विधायक बृहस्पत सिंह का टी एस सिंहदेव के खिलाफ सुर बहुत कुछ कह गया। बृहस्पत सिंह एपिसोड के बाद सिंहदेव दिल्ली में जमे हैं। ऐसे में तरह -तरह के कयास भी लग रहे हैं। उनके इस्तीफे की हवा भी उड़ गई। एक बात साफ़ है कि बृहस्पत मामले ने कांग्रेस के कलह को चौराहे पर ला दिया। कहा जा रहा है कांग्रेस का एक खेमा बृहस्पत सिंह को पार्टी से निकाल – बाहर करने के पक्ष में है, तो दूसरा संरक्षक की भूमिका में है। राज्य में नए राजनीतिक घटनाक्रम के बाद विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत, मंत्री ताम्रध्वज साहू, मंत्री डॉ. शिवकुमार डेहरिया और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम की दिल्ली यात्रा से सत्ता-संघर्ष में नया रंग आ गया है। अब देखते हैं बाजी कौन जीतता है,लेकिन फिलहाल तो राज्य का राजनीतिक घटनाक्रम चर्चित और दिलचस्प हो गया है।

भाजपा में कार्यकारी अध्यक्ष की चर्चा

छत्तीसगढ़ भाजपा में एक कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने की चर्चा चल रही है। अभी आदिवासी नेता विष्णुदेव साय प्रदेश भाजपा अध्यक्ष हैं। कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के मुकाबले के लिए किसी ओबीसी नेता को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने पर मंथन चल रहा है। कार्यकारी अध्यक्ष के लिए एक सांसद और एक विधायक का नाम ख़बरों में है। लेकिन नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक के ओबीसी होने से पेंच फंस गया है। पार्टी के भीतर ही पार्टी का एक खेमा कौशिक के मुखालफत पर उतारू है। कहते हैं प्रदेश प्रभारी डी. पुरेन्दश्वरी राज्य में पार्टी को गतिशील बनाने के लिए किसी आक्रामक नेता को आगे लाना चाहती है। ऐसे में माना जा रहा है कि पार्टी के भीतर जल्द बदलाव नजर आने वाला है।

अफसरों में गड्ढा खोदने का खेल

कहते हैं आजकल छत्तीसगढ़ के कुछ कलेक्टर जिला खनिज निधि ( डीएमएफ ) खाली होने का रोना रोते उसको सूखा करने का आरोप अपने पूर्ववर्ती पर मढ़ रहे हैं। भूपेश सरकार ने करीब सवा दो महीने पहले कई जिलों के कलेक्टर इधर-उधर किए थे और कुछ नई पोस्टिंग भी की थी। नए लोगों ने जिलों में कामों का पोस्टमार्टम शुरू कर दिया। कहा जा रहा है कि एक जिले में कलेक्टर ने अपने पूर्ववर्ती के कई आदेशों को निरस्त कर दिया। इसमें सर्वाधिक डीएमएफ के तहत स्वीकृत काम थे।छत्तीसगढ़ में कुछ ऐसे जिले हैं, जहाँ डीएमएफ का तगड़ा बजट है, वहीँ विवाद ज्यादा बताया जा रहा है । चर्चा है कि एक जिले के कलेक्टर ने जाते-जाते डीएमएफ के कामों का बंदरबाट कर अपनी जेब गर्म कर लिया था। नए को पता लगते ही जड़ खोदना शुरू कर दिया। आमतौर पर कोई अधिकारी अपने पूर्ववर्ती के कामकाज पर सवाल खड़ा नहीं करता, पर लगता है जिला खनिज निधि उत्तराधिकारी और पूर्ववर्ती की सौतन बन गई है।

सवाल विवेकानंद की पोस्टिंग का ?

सरकार 1996 बैच के आईपीएस विवेकानंद सिन्हा को आईजी से एडीजी बनाए जाने के बाद अब उनको कहां पदस्थ करती है, यह लोगों में बड़ी जिज्ञासा है। सरकार ने प्रमोशन के बाद विवेकानंद को फिलहाल दुर्ग रेंज का आईजी बनाकर रखा है। 1994 बैच के आईपीएस हिमांशु गुप्ता भी एडीजी बनने के बाद कुछ दिन दुर्ग रेंज के आईजी रहे, फिर उन्हें एडीजी इंटेलिजेंस बनाया गया। अभी राज्य के इंटेलिजेंस प्रमुख आईजी डॉ. आनंद छाबड़ा हैं। ईओडब्ल्यू के प्रमुख का पद भी डीजी स्तर का है, वहां की कमान अभी डीआईजी आरिफ शेख के पास है। लंबे समय तक बस्तर आईजी रहे विवेकानंद की सेवाएं नक्सल आपरेशन में लेने की भी बात हो रही है। दुर्ग आईजी के लिए सेंट्रल डेप्यूटेशन से लौटे 2004 बैच के आईपीएस बद्री नारायण मीणा का नाम चर्चा में है।

मुदित कुमार को नहीं मिल पाई संविदा नियुक्ति

भारतीय वन सेवा के अधिकारी मुदित कुमार को छत्तीसगढ़ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद में महानिदेशक के पद पर संविदा नियुक्ति नहीं मिल पाई। कहते हैं मुदित कुमार को परिषद में डीजी के पद पर संविदा नियुक्ति के लिए मंत्री उमेश पटेल ने अनुशंसा कर दी थी , लेकिन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सहमत नहीं हुए। फिलहाल परिषद के डीजी का प्रभार वहां के एक वरिष्ठ अधिकारी को सौंप दिया गया है। कहा जा रहा है परिषद के अध्यक्ष के नाते अब महानिदेशक के पद पर नई नियुक्ति का फैसला मुख्यमंत्री करेंगे। 31 जुलाई को रिटायर हुए 1984 बैच के आईएफएस मुदित कुमार सिंह को भूपेश सरकार ने ही प्रधान मुख्य वन संरक्षक के पद से हटाकर छत्तीसगढ़ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद में भेजा था।

“सी टी” में कुंडली मारे अफसर

नियम-कायदों को पालन कराने की जिम्मेदारी सामान्य प्रशासन विभाग की होती है, लेकिन कहते हैं सामान्य प्रशासन विभाग के अधीन काम करने वाली संस्था मुख्य तकनीकी परीक्षक (सी टी) में ही नियम-कायदों की धज्जियां उड़ रही हैं। कहा जा रहा है यहां पीएचई विभाग के एक कार्यपालन अभियंता आर. पुराम करीब 12 साल से पदस्थ हैं। वे इस संस्था में सहायक अभियंता के तौर पर प्रतिनियुक्ति में आए थे और यहीं कुंडली मारकर जम गए हैं। कहा जाता है सामान्य प्रशासन विभाग का ही नियम है कि कोई अधिकारी तीन साल से अधिक समय से प्रतिनियुक्ति पर नहीं रह सकता। जीएडी की अनुमति से कुछ समय के लिए और प्रतिनियुक्ति में रहा जा सकता है,पर इतना अधिक नहीं। इस संस्था के मुखिया जल संसाधन विभाग के रिटायर्ड चीफ इंजीनियर एनके भागवत हैं,जो संविदा पर चल रहे हैं। वैसे जीएडी के सचिव डीडी सिंह भी संविदा पर हैं। संविदा वालों के अधीन आर. पुराम का कद्र होना स्वाभाविक है।

रास्ता साफ़ होने लगा बड़गैया का

लंबे समय से पदोन्नति का इंतजार कर रहे वन अफसर एसएसडी बड़गैया का रास्ता साफ होने लगा है। अब लग रहा है बड़गैया जल्द ही सीसीएफ से अपर प्रधान मुख्य संरक्षक के पद पर पदोन्नत हो जाएंगे। पुराने मामलों के कारण बड़गैया का प्रमोशन अटका है। 1997 बैच के आईएफएस अधिकारी बड़गैया अभी कांकेर में सीसीएफ हैं। राज्य वन सेवा से आईएफएस बने बड़गैया अगले साल अप्रैल में रिटायर हो जायेंगे।


(लेखक, पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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