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हर साल राखी पर बहनों से मिलने हिमालय जाते हैं शनिदेव

शनिदेव की यमुना, भद्रा नाम की दो बहनें हैं, जबकि यमराज बड़े भाई हैं. शनिदेव हर साल बहन से मिलने जाते हैं. वहीं यमराज का बहन के घर जाने भर से शुरू हुआ था यमदूज का त्योहार. भाई के स्वभाव की तरह उनकी बहन भद्रा भी खासी क्रोधी हैं. कहा जाता है कि जब भद्रा का जन्म हुआ तो वह संसार को खाने चल दीं और तमाम अनुष्ठानों में विघ्न डालना शुरू कर दिया. मंगल यात्रा में अवरोध बनने लगीं.

भद्रा के पिता यानी सूर्य देव के लिए उनका विवाह करना भी चुनौती बन गया. कोई भी उनसे विवाह नहीं करना चाहता था. जब सूर्य देव ने उनके लिए स्वयंवर का आयोजन किया तो उन्होंने उसमें विघ्न डाल दिया. ब्रह्मा जी ने उनकी क्रोध की दृष्टि से संसार को बचाने के लिए उनको पंचांग में स्थान दिया. ब्रह्मा जी ने भद्रा से कहा कि लोग तुम्हारे समय में कोई भी शुभ काम नहीं करेंगे. अगर करते हैं तो तुम उनके कार्य में विघ्न डालने के लिए स्वतंत्र हो. भद्रा ने ब्रह्मा जी का सुझाव मान लिया और समय के अंश में विराज गई. तब से आज तक भद्रा काल कोई शुभ काम वर्जित है.

शनि की दूसरी बहन यमुना एकदम शांत और पावनी हैं. यमुना से मिलने हर साल शनिदेव यमुनोत्री जाते हैं. मान्यता है कि अक्षय तृतीया पर शनिदेव बहन से मिलकर उत्तरकाशी के खरसाली लौटते हैं. दीपावली के दो दिन बाद यानी भाईदूज यमुना जी खरसाली भाई शनिदेव के पास जाती हैं, जहां वे पूरे छह महीने रहती हैं. आज भी यमुना को बड़ी धूम-धाम से खरसाली ले जाया जाता है.

शनिदेव के भाई यम भी अपनी बहन यमुना से बहुत अधिक प्रेम करते थे. बहन के बुलावे पर एक बार यमराज भोजन ग्रहण करने पहुंचे थे. वह दिन था कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया. उस रोज यमराज और यमुना दोनों ही बेहद खुश थे. बहन ने दिल खोलकर अपने भाई की आवभगत की. यमराज बहन का स्नेह देख खुश हुए और उन्होंने बहन से उपहार मांगने का कहा. यमुना ने उनसे हर साल आने को कहा उन्होंने कहा कि इस तिथि पर भाई जब भी बहन के घर आए तब बहने उसे टीका लगाकर उसकी मंगलकामना करे. यमराज ने उनकी वह इच्छा पूरी की. तभी से इस तिथि पर हर साल भाईदूज या यमदूज का पर्व मानया जाता है.

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