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व्यंग्य किसम-किसम के वायरस.. गिरीश पंकज

शांति प्रिय भारत देश  तरह तरह के वायरसों से  जूझ रहा है।  कोरोना तो ससुरा है ही, पर दूसरे वायरस भी  हलकान किये दे रहे हैं। का करें, कैसे निबटें! सबके सब खतरनाकश्री हो गए हैं ।  उन सबकी कथा हम सुनावत हैं। तो हुआ यह कि उस दिन गांधी जी  की तरह हुलिया बनाए एक व्यक्ति चौराहे पर खड़ा होकर “भारत छोड़ो ! भारत छोड़ो” के नारे लगा रहा था।

मैं चकराया, अरे, देश तो आजाद हो चुका है । अंग्रेज  तो बहत्तर साल पहले  ही भारत छोड़कर चले गए। यह बंदा अब  उनसे भारत छोड़ने की बात क्यों कर रहा है?

 मैं उस व्यक्ति के पास गया और मुस्कुराते हुए पूछा, “क्यों आदरणीय, अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए क्यों कह रहे हैं? वे  तो कब का यहां से पलायन कर गए हैं। अब तो आपका और हमारा राज है।”

 मेरी बात सुनकर उस बुजुर्ग ने  व्यंग्य भरी मुस्कान के साथ मेरी तरफ देखा और कहा, ” सुबह-सुबह मजाक मत करो भाई । माना कि हमारा राज है लेकिन इसमें भी एक ‘राज़’ है कि कभी कभी सोचना और  खोजना भी पड़ता है कि हमारा राज कहां है । वैसे कोई बात नहीं। हमारा राज आएगा जरूर आएगा । जब तक  कुछ खतरनाक वायरस भारत नहीं छोड़ेंगे।”

मैंने फौरन कहा, ” मतलब कोरोना वायरस ?”

बुजुर्ग ने कहा, ” नहीं, कोरोना से भी खतरनाक- खतरनाक वायरस इस देश में वर्षों से कब्जा जमाए हुए हैं। मैं उनसे अनुरोध कर रहा हूं कि तुम लोग भारत छोड़ो, तो हम लोग चैन से जी सकेंगे।

मैं सोचने लगा, कोरोना वायरस ने तो पूरी दुनिया को परेशान कर दिया, ये सज्जन किन वायरसों की बात कर रहे हैं।

मैंने कहा, “कृपा करके उन वायरसों पर प्रकाश डालें, जिनके कारण आप विचलित हैं।”

सज्जन कहने लगे,” एक दो हों,  तो बताएं। यहां तो कदम -कदम पर वायरस ही वायरस है, जिनके कारण जीवन का सारा रस खत्म होता जा रहा है। साहित्य में नौ रस होते हैं।  उसके बाद एक ही महारस नज़र आता है और वो है, हम सब पर भारी वायरस। यह वायरस कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक हर जगह घुसा मिलता है । और इसका उपचार अब तक नहीं हो सका है।”

 मैंने कहा, “महानुभाव , अब अब आप इन वायरसों का खुलासा तो कर दें ताकि हम इन को खत्म करने की दिशा में कुछ सोच-विचार करें।”

मेरी बात सुनकर सज्जन जोर से हँस पड़े और बोले, “अरे, कितने आए और कितने चले गए। अब और तुम कह रहे हो खत्म करने पर विचार करोगे। कहीं तुम वादा करके गच्चा देने वाले कोई नेता ना तो नहीं हो?”

मैंने हाथ जोड़कर निवेदन किया, ” आदरणीय, मेरा इतना बड़ा अपमान न करें। मुझे जनसाधारण ही रहने दें।”

 मेरी बात सुनकर सज्जन आश्वस्त हो गए कि मैं कोई आम आदमी ही हूं । अब वे बोले, ” तब तो बड़ी अच्छी बात है । वरना यहां जिसे देखो नेतागीरी और दादागीरी  करता पाया जाता है । सुनो, मैं तुम्हें कुछ खतरनाक वायरसों के बारे में बता रहा हूँ। सुनो और उनके खात्मे की दिशा में कुछ कर सको, तो जरूर करना।”

 इतना बोल कर सज्जन ने कहना शुरू किया, “एक खतरनाक वायरस है अफवाह। इस वायरस के कारण पलक झपकते देशभर में मारकाट शुरू हो जाती है । अब तो वाट्सएप का दौर है । किसी एक शहर में बैठा कोई व्यक्ति एक काल्पनिक स्टोरी बनाकर व्हाट्सएप में डालता है और देखते- ही-देखते वह स्टोरी खतरनाक तरीके से वायरल होने लगती है, और नादान लोगों के कारण स्थिति तनावपूर्ण हो जाती है। तुमने वह कहावत तो सुनी होगी, कौवा कान ले गया?  ये अफवाहें बिल्कुल कौवा कान ले गया की तर्ज पर होती है। लोग कान नहीं देखते, बस कौवे यानी अफवाहों के पीछे दौड़ने लगते है । सच्चाई तक कोई नहीं जाता। बस,  विचारों और विद्वेष की लाठियां भांजने लगते हैं। हर मूर्ख-अज्ञानी उस तक पहुँचने वाली अफवाह में अपनी भी एक लाइन जोड़ता चला जाता है। और हजार लोगों तक पहुंचते-पहुंचते अफवाह इतनी भयानक हो जाती है कि मत पूछो। इसलिए मैं इस अफवाहरूपी वायरस से बहुत परेशान हूं, और चिल्ला-चिल्ला कर कहता हूं कि अफवाहो, भारत छोड़ो! जिस दिन अफवाहें भारत छोड़ देंगी, हर धर्म और जाति के लोग बड़े प्रेम से मिलजुल कर रहने लगेंगे।

मैंने सज्जन के चरण छू लिए और कहा,  “अब तक आप कहां थे भगवन्? आपने मेरी बंद आंखें खोल दीं।  इस वायरस की तरफ तो हमारा ध्यान ही नहीं गया।  सचमुच, यह बहुत खतरनाक है । कोरोना वायरस तो लोगों की जान निकाल लेता है, भयंकर रूप से  परेशान कर देता है लेकिन अफवाहों का वायरस तो इंसानियत की हत्या कर देता है। एक दूसरे के मन में शक के बीज डाल देता है। अब दूसरे वायरस के बारे में बताइए।

 मैंने हाथ जोड़ दिए, तो बुजुर्ग ने मुस्कुराते हुए कहा,  “तुम तो इस मुद्रा में बैठ गए हो, जैसे मैं प्रवचन कर रहा हूं। लेकिन यह अच्छी बात है कि किसी ने तो मेरी बात सुनी।  मैं तो न जाने कबसे दोनों हाथ ऊपर उठाकर जोर- जोर से चिल्ला कर कह रहा कि “नासपीटे वायरसो, भारत छोड़ो” लेकिन कोई मेरी बात सुनता ही नहीं । लोग आते हैं, कुछ देर खड़े होते हैं और मुस्कुरा कर आगे बढ़ जाते हैं । गोया मैं कोई नुमाइश की चीज हूं । गनीमत है कि तुम आए और मेरी बात ध्यान से सुन रहे हो इसलिए मन कर रहा है कि तुमको कुछ बताऊं।  हो सकता है तुम इन वायरसों का खात्मा कर दो।  अगर एक ही  उल्लू गुलिस्ताँ को बर्बाद करने के लिए काफी होता है, तो किसी किसी गुलिस्ताँ को आबाद करने के लिए एक माली भी बड़ी भूमिका निभा सकता है। तो मुझे लगता है, तुम मेरी मदद कर सकते हो ।”

इतना बोल कर सज्जन ने मेरी पीठ थपथपाई और कहा,” तो  आगे सुनो।  दूसरा वायरस है, भ्रष्टाचार का वायरस।  आजादी के कुछ साल तक तो इस वायरस का अता-पता नहीं था। लेकिन जैसे-जैसे आजादी का खुमार उतरता गया, भ्रष्टाचार का बुखार बढ़ता चला गया। और अब तो यह मत पूछो कि भ्रष्टाचार कहां नहीं है।  जैसे कोरोना वायरस पूरी दुनिया में फैल गया, उसी तरह यह भ्रष्टाचार भी देश के कोने-कोने में फेल चुका है। क्या गांव, क्या शहर,  हर कहीं  नज़र आता है भ्रष्टाचार का जहर।  ऐसा खतरनाक वायरस है यह। बिल्कुल कोरोना की तरह। दिखता नहीं है मगर परेशान जरूर करता है।  जिस किसी  कुरसी से चिपकता है, तो उसकी बुद्धि फिरा देता है। ऐसा सिरफिरा वायरस है यह  जिसकी जितनी बड़ी कुरसी, उसका उतना बड़ा भ्रष्टाचार । मंत्री से लेकर संतरी तक, पंच से लेकर सरपंच तक भ्रष्टाचार रूपी वायरस के पंच तक  ऐसे पड़ते हैं कि मत पूछो।  निर्माण कार्य के लिए जो धन मिलता है, उस धन को प्राप्त करने वाला बंदा सबसे पहले अपना भरपूर  निर्माण कर लेता है । और फिर जो कुछ बचता है, उसके बाद वह सोचता है कि अब इसे सार्वजनिक निर्माण कार्य में खर्च किया जाय। और निर्माण के ‘निर्वाण’ की ऐसी जुगलबंदी होती है कि मत पूछो । दुष्यंत कुमार की वो  लाइन है न, ‘ यहां तक आते-आते सूख जाती है कहीं नदियां/ हमें मालूम है पानी कहां ठहरा हुआ होगा’? तो भैया, निर्माण की नदी सूख जाती है और चंद बंदों की जेबों में मुद्राराक्षस ठहाके लगाता रहता है। तो ऐसा है यह भ्रष्टाचार का वायरस । जैसे खुलेपन की नीति पर चलने वाली हीरोइन को देखकर लोगों का मन डोलने लगता है, उसी तरह धन देखकर लोगों के  मन  में भी कुछ-कुछ होने लगता है। बेचारे न चाहते हुए भी भ्रष्टाचार करने लगते हैं।  यह वायरस एक बार ऐसा चिपकता है कि जब तक व्यक्ति जब तक निलंबित एक्सपोज न हो, तब तक वायरस उससे मुक्त नहीं होता।

 मुझे ध्यान से सुनते हुए देखकर सज्जन एक बार फिर मुस्कुराए और शायद मन ही मन सोचने लगे कि मैं ऐसे श्रोता की तलाश में बरसों से था। अब जाकर मिला है । सज्जन बोले, “बेटे, कहीं तुम बोर तो नहीं हो रहे हो?

 मैंने कहा, “महोदय, आपकी बातें सुन -सुनकर मेरे ज्ञानचक्षु खुल रहे हैं।  आप तो बोलते जाइर। देखिए उसके बाद मैं कैसी क्रांति करता हूं ।

मेरी बात सुनकर सज्जन जोर से हँसे और बोले, “क्रांति के नाम पर अक्सर ज्यादातर भ्रांति ही हुई है । तो बंधु, तुम क्रांति की बात तो न करो। बस मेरी बातें  शांति के साथ सुनो।  अब देखो मैं तीसरे वायरस के बारे में अब बता रहा हूं। यह वायरस है ईर्ष्या का वायरस।  यह जिस व्यक्ति को पकड़ लेता है, वह व्यक्ति अपना विनाश तो करता ही है , सामने वाले का भी अहित कर देता है। ‘हम तो डूबेंगे सनम तुमको भी ले डूबेंगे’।  तुलसीदास जी ने भी कहा है, “देख न सकहीं पराई विभूति”! तो ईर्ष्या का वायरस जिसके दिमाग में घुसा, उस नर को वानर बनते ज्यादा देर नहीं लगती । संक्रमित होते ही  वह यही सोचता है कि भला उसकी कमीज मेरी कमीज से साफ कैसे ? इस वायरस वाले बंदे अपनी लकीर बड़ी करने के बजाए सामने वाले की लकीर को छोटा करने में भिड़े रहते  हैं। ईर्ष्या का यह वायरस जीवन के हर क्षेत्र में नजर आता है।  क्या राजनीति, क्या साहित्य और  क्या कला।  हर कहीं या वायरस बला बनकर मौजूद रहता है। इस वायरस के कारण का शिकार व्यक्ति दिनों दिन घुलता चला जाता है। वह अपना काम छोड़कर सामने वाले को चूना लगाने की पुरजोर कोशिश करता है ।

सज्जन की बातें सुनकर मैं घबराने लगा ।सोचने लगा, पता नहीं और कितने तरह के वायरस मौजूद है, जिनके बारे में ये मेरा ज्ञानवर्धन करेंगे।

 मैंने पूछा, ” आदरणीय,  और कितने प्रकार के वायरस हैं। और इन वायरसों से मुक्ति का मार्ग क्या है?

 सज्जन मुस्कुराते हुए बोले,  “हरि अनंत हरि कथा अनंता।  ऐसे अनेक वायरस हैं, जिनके बारे में मैं बताता  चलूंगा और तुम सुनते चले जाओगे।  मोटे तौर से समझ लो कि लोगों का हर दुर्गुण ही वह वायरस है, जो विभिन्न रूपों में इधर-उधर फैल रहा है । इससे देश कमजोर हो रहा है ।समाज में अशांति पनप रही है।

 मैंने कहा, ” तो क्या इन वायरसों के खत्म करने का क्या कोई उपाय नहीं है ?”

सज्जन मुस्कुराते हुए बोले, ” जिस तरह कोरोना वायरस को खत्म करने की दवा खोजी जा रही है, उसी तरह ऊपर गिनाए गए ज्ञात और अज्ञात वायरसों को खत्म करने की दवा हमारे यहां वर्षों से उपलब्ध है। लेकिन उसका कोई उपयोग ही नहीं करता। यही कारण है कि पिछले सत्तर  सालों के बाद भी तमाम तरह की बीमारी एक महामारी के रूप में इस देश को खोखला किए जा रही है। इस महामारी को खत्म करने का एक ही उपाय है, सबको सद्गुणों का वैक्सीन लगा दिया जाए। वायरस अपने आप खत्म हो जाएगा।”

 सज्जन की बात सुनकर मैं मंद मंद मुस्काने लगा और सोचने लगा, बहुत कठिन है डगर पनघट की। बोलते -बोलते सज्जन भी थक गए थे, तो मैंने कहा,  “अब आप भी प्रस्थान करें।  मैं भी प्रस्थान करता हूं। लेकिन जाते-जाते आप अपना नाम तो बताते जाइए ।”

बुजुर्ग सज्जन ने मुस्कुराते हुए कहा,” मेरा नाम जानकर क्या करोगे ? फिर भी पूछ रहे हो, तो बता देता हूं । मेरा नाम देशकुमार है और आगे जो गांधी चौराहा है न, वहां रहता हूं।”

 इतना बोल कर वे  ‘अंग्रेजियत  भारत छोड़ो’, ‘बलात्कारी भारत छोड़ो’, ‘हत्यारो भारत छोडो’  ‘अपसंस्कृति भारत छोडो’ के नारे  लगाते हुए आगे बढ़ गए ।

….  और देखते-ही-देखते कहीं ओझल भी हो गए।

किसम-किसम के वायरस, तरह-तरह के लोग।
भागे कैसे देश से, चिल्लाएं सब लोग।।

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