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कही-सुनी ( 29 AUG-21) : छत्तीसगढ़ में नेतृत्व परिवर्तन फिलहाल टला

samvet srijan

(रवि भोई की कलम से)


ऐसा लग रहा है मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की ताकत देखकर कांग्रेस हाईकमान ने फिलहाल तो नेतृत्व परिवर्तन टाल दिया है। अब देखना होगा कि इस शक्ति प्रदर्शन को कांग्रेस हाईकमान किस रूप में लेती है। पूरे घटनाक्रम को देखकर लगता है कि कांग्रेस हाईकमान छत्तीसगढ़ में पंजाब जैसी स्थिति नहीं लाना चाहती है। हाईकमान भारी बहुमत वाले राज्य में फूंक-फूंक कर कदम रखना चाहती है। कहा जा रहा है कि टीएस सिंहदेव कहीं न कहीं कमजोर पड गए, या रणनीतिक चूक कर गए। वह अपनी ताकत और वजूद हाईकमान के सामने वैसे पेश नहीं कर पाए, जैसे भूपेश बघेल ने किया। पर सिंहदेव सौम्यता के साथ अपनी बात रखने के लिए जाने जाते हैं। यह भी तय है कि सिंहदेव हाईकमान के फैसले के उलट नहीं जाएंगे। कांग्रेस की एक लाबी के सिंहदेव के पक्ष में होने की बात कही जा रही है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल हफ्ते में दो बार दिल्ली जाकर जिस तरह अपनी बात रखी और विधायकों, निगम-मंडलों के अध्यक्ष, महापौर और दूसरे नेताओं को लेकर दिल्ली में ताकत दिखाई,उससे लग रहा है कि उन्होंने राज्य में अपनी जड़ें गहरी कर ली है। कहते हैं राज्यों के क्षत्रपों पर नकेल डालना कांग्रेस आलाकमान का पुराना शगल है।

वहीँ गांधी परिवार को हाईकमान की अनदेखी भी पसंद नहीं है। इसी कांग्रेस हाईकमान ने 2000 में अजीत जोगी को बिना विधायकों के समर्थन के मुख्यमंत्री बनाया और वे पार्टी की धारा के विपरीत चले तो 2003 में निलंबित भी कर दिया। 2016 में कांग्रेस से अलग होकर जोगी कांग्रेस बनाया तो रोका भी नहीं। स्व. विद्याचरण शुक्ल ने भी ताकत दिखाई थी, लेकिन बाद में उन्हें कांग्रेस में लौटना पड़ा। यह भी गौर करना चाहिए कि प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम, कुछ मंत्री और विधायक अपने को दिल्ली दौड़ से क्यों दूर रखा? वहीँ विधायकों के दिल्ली पहुंचने के मामले में प्रभारी महासचिव पीएल पुनिया के सुर बदलते रहे।

यह तो साफ़ है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सत्ता में लाने में भूपेश बघेल और सिंहदेव की जोड़ी ने बड़ी मेहनत की थी। हो सकता है तब सत्ता की शेयरिंग की बात हुई हो, लेकिन समय के साथ बहुत कुछ बदल जाता है। लेकिन यह भी नहीं मानना चाहिए कि सिंहदेव हथियार डाल देंगे। लगता है वे कप्तान बनने के सपने को साकार करने में लगे रहेंगे। विधायक बृहस्पत सिंह और मंत्री अमरजीत भगत के कारनामों को वे शायद ही भूलें। पिछले कुछ दिनों की राजनीतिक उठापठक के चलते छत्तीसगढ़ देश में सुर्ख़ियों में रहा और कहा जा रहा अगले सप्ताह भी राजनीतिक उथल-पुथल वाला हो सकता है। यह भी माना जा रहा है कि जीत-हार किसी की हो, कांग्रेस में तो अब बवंडर उठते रहेंगे , क्योंकि कांग्रेस के दिल में दरार जो आ गया है।

मौसम वैज्ञानिक मंत्री

एक जमाना था जब स्व. रामविलास पासवान को राष्ट्रीय राजनीति का मौसम वैज्ञानिक माना जाता था, क्योंकि वे राजनीति का रुख भांपकर दलबदल कर जाते थे, यही कारण है कि छह प्रधानमंत्रियों के साथ काम करने का रिकार्ड उनके नाम दर्ज है। अब छत्तीसगढ़ के एक मंत्री को भी मौसम वैज्ञानिक मंत्री कहा जा रहा है। कहते हैं कि राज्य के एक मंत्री 27 अगस्त को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के पक्ष में शक्ति प्रदर्शन के लिए दिल्ली जाने से बचने के लिए अपने क्षेत्र का दौरा कार्यक्रम बना लिया। कहा जा रहा है राजनीति का मौसम देखकर मंत्री जी की चाल बदलने का गणित कांग्रेस के एक किसान नेता को समझ आ गया और उन्हें पकड़ लिया। चर्चा है कि किसान नेता मंत्री जी को अपने साथ प्लेन में दिल्ली ले गए और उन्हें अनमने मन से दिल्ली जाना पड़ा।

मान -मनौव्वल के बाद गए एक मंत्री

कहते हैं प्रदेश के राजनीतिक घटनाक्रम पर अपनी बात रखने के लिए कई मंत्री स्वेच्छा से गए और कुछ नहीं गए। चर्चा है कि एक मंत्री बड़े मान-मनौव्वल के बाद आखिरी समय में गए। कहा जा रहा है कि एक सीनियर मंत्री ने उन्हें दिल्ली से ही फोनकर पहुंचने का आग्रह किया। खबर है कि मुख्यमंत्री जी से मिलने के लिए समय न मिल पाने के कारण मंत्री जी खफा चल रहे हैं। कहते हैं मंत्री जी ने अपने साथी से हाईकमान के सामने “मन की बात” कहने की धमकी भी दे डाली। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की लॉबिंग के लिए तीन मंत्री नहीं गए। दो रायपुर में रहे। एक अपने क्षेत्र के दौरे में रहे।

सोनिया गांधी और रेणु जोगी की भेंट सुर्ख़ियों में

छत्तीसगढ़ में सत्ता के लिए कांग्रेस में घमासान के बीच जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ की अध्यक्ष और विधायक डॉ. रेणु जोगी की कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात को लोग बड़े राजनीतिक घटनाक्रम के तौर पर देख रहे हैं। मरवाही उपचुनाव के बाद जोगी परिवार करीब-करीब हासिए पर आ गया है। जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ का कांग्रेस में विलय की बातें उठ रही है। इस पर अमल होता है या नहीं और कब तक होता है, यह दीगर बात है, लेकिन सोनिया गांधी का जोगी परिवार से रिश्ते की प्रगाढ़ता से कोई इंकार नहीं कर सकता। सोनिया गांधी के आशीर्वाद से ही स्व. अजीत जोगी छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री बने थे । डॉ. रेणु जोगी को कोटा विधानसभा का टिकट मिला। कहा जा रहा है सोनिया का छत्तीसगढ़ के नेताओं से नहीं मिलना और रेणु जोगी से मिलना नया राजनीतिक संकेत हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मरवाही उपचुनाव में जोगी परिवार को जमीन पर ला दिया, रेणु जोगी इसे शायद ही भूलें। कहते हैं अजीत जोगी के जीवित रहते भी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ का कांग्रेस में विलय की दिशा में कदम बढ़ा था , लेकिन तब राज्य के दो नेता सहमत नहीं हुए थे । अब राज्य में कांग्रेस के भीतर की परिस्थिति बदल गई है।


(लेखक, पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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