कोविड-19 वैक्सीन की दोनों डोज लगवा चुके लोगों को लॉन्ग कोविड (कोरोना होने के बाद लंबे समय तक शरीर पर होने वाले साइड इफेक्ट) की संभावना वैक्सीन नहीं लगवाने वाले लोगों के मुकाबले 50 फीसदी कम होती है. The Lancet Infectious Diseases journal में छपी एक स्टडी में ये बात कही गई है. इस स्टडी को लंदन के किंग्स कॉलेज ने किया है. साथ ही वैक्सीन लगवा चुके लोगों में दोबारा इन्फ़ेक्शन होने की आशंका भी बेहद कम होती है.
किंग्स कॉलेज के डॉक्टर क्लेयर स्टीव्स के अनुसार, “दोबारा इन्फ़ेक्शन होने की संभावना शुरुआत से ही बनी हुई है. इस बात को नकारा नहीं जा सकता था कि जिस उद्देश्य से इन वैक्सीन को तैयार किया गया था ये बिलकुल उसी तरह से काम कर रहीं हैं. यानी की ज़िंदगी बचाना और लोगों का गंभीर तौर पर बीमार पड़ने से बचाव करना.” साथ ही उन्होंने कहा, “हमारी स्टडी से कोविड-19 इन्फ़ेक्शन की रोकथाम में वैक्सीन कितनी कारगर है इस बात का पता चलता है.”
12 लाख से ज्यादा वयस्क लोगों पर की गई स्टडी
इस स्टडी में 12 लाख से ज्यादा वयस्क लोग शामिल किए गए थें. इन लोगों को Pfizer-BioNTech, Oxford-AstraZeneca या Moderna vaccine की कम से कम एक डोज दिसंबर 2020 से जुलाई 2021 लगाई जा चुकी थी. स्टडी के अनुसार इसमें से 0.5 फीसदी से भी कम लोगों में वैक्सीन की पहली डोज लगवाने के 14 दिनों से ज्यादा के समय में वापस कोविड इन्फ़ेक्शन की बात सामने आई है.
इस स्टडी में शामिल ऐसे लोग जिन्हें वैक्सीन की दोनों डोज लगाई जा चुकी थी उनमें से 0.2 फीसदी से भी कम लोगों में वैक्सीन की दूसरी डोज लगवाने के सात दिन से भी ज्यादा के समय में वापस कोविड इन्फ़ेक्शन की बात सामने आई है. वहीं स्टडी के मुताबिक, पहली डोज के बाद दोबारा इन्फ़ेक्शन के इन मामलों में से 63 फीसदी बिना लक्षण वाले होते हैं. वहीं दूसरी डोज के बाद अगर दोबारा इन्फ़ेक्शन होता है तो इसमें से 94 फीसदी मामलों में कोई लक्षण नहीं होता है.
पहली डोज लगवा चुके लोगों में से जिनमें दोबारा इन्फ़ेक्शन की सबसे ज्यादा संभावना होती है, उनमें 60 साल से ज्यादा उम्र के लोग शामिल हैं. साथ ही इसमें वो वयस्क भी शामिल हैं जो पहले से ही मोटापे, दिल की बीमारी, किडनी या फिर फेफड़ों की बीमारी से पीड़ित हैं.
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