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छत्तीसगढ़ सरकार राज्य में मेडिकल इमरजेंसी घोषित करे – रवि भोई

राजधानी समेत राज्य भर से आ रही खबरों के मुताबिक कोरोना मरीजों को सरकारी और न ही प्राइवेट अस्पतालों में बेड मिल पा रहे हैं। लोग इलाज के लिए भटक रहे हैं। लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करना सरकार का सामाजिक उत्तरदायित्व हैं, लेकिन जिस तरह का वातावरण है और लोग हताश और निराश होकर कोरोना के त्रासद में समा रहे हैं , वह चिंताजनक है। लोग कोरोना संक्रमण से कहीं ज्यादा भय और इलाज की अव्यवस्था के जाल में ज्यादा उलझे दिख रहे हैं। राज्य में कोरोना पीड़ितों की संख्या 45 हजार से ज्यादा हो चुकी है और 380 से अधिक लोग जान गवां चुके हैं। कोरोना संक्रमण ने छत्तीसगढ़ को बुरी तरह जकड़ लिया है। इसकी जद में आने से न आम बचा और न ही ख़ास। ऐसे में छत्तीसगढ़ सरकार को राज्य में मेडिकल इमरजेंसी घोषित कर पूरी ताकत और धन कोरोना के नियंत्रण में लगाना होगा।

मार्च में राज्य में एक-दो ही केस थे और एक भी मौत नहीं हुई थी। लग रहा था कि छत्तीसगढ़ कोरोना प्रभावित राज्य नहीं होगा, लेकिन अगस्त और सितंबर के आते तक राज्य में कोरोना संक्रमण का ग्राफ तेजी से बढ़ गया। कोरोना का कम्युनिटी स्प्रेड हो चुका है। राज्य सरकार केंद्र के गाइड-लाइन का पालन करते कोरोना को मॉनिटर कर रही है। जाँच और इलाज के प्रबंध के साथ कोविड सेंटर, कोविड अस्पताल बनाये हैं , लेकिन लोग संतुष्ट नहीं दिखते और जिस तरह मौतें हो रही है, उससे लग रहा है कि व्यवस्था पर्याप्त नहीं है। शुरूआती महीनों में एम्स रायपुर से रिकवर होने वालों की दर शत-प्रतिशत थी, लेकिन वहां भी अब लोगों की जान जानें लगी है। छत्तीसगढ़ में भले मृत्यु दर एक फीसदी से कम है, लेकिन रिकवरी रेट 58 फीसदी के करीब है।

सरकारी अस्पतालों में कोरोना पीड़ितों की भीड़ बढ़ने के कारण राज्य सरकार ने कुछ निजी अस्पतालों को इलाज के लिए अधिकृत किया। निजी अस्पतालों ने कुछ होटलों और भवनों को लेकर अपना कोविड सेंटर बनाया, लेकिन इलाज के नाम पर लोगों से भारी राशि लेने की शिकायतें आनी शुरू हो गई। एक अस्पताल में इलाज के बाद लाखों रुपये लेने का आडियो जारी हुआ। एक अस्पताल के कोविड सेंटर में अधिक वसूली पर संसदीय सचिव शकुंतला साहू द्वारा हस्तक्षेप की ख़बरें आई। निजी अस्पतालों द्वारा अधिक राशि वसूलने की शिकायत को लेकर संसदीय सचिव और रायपुर पश्चिम के विधायक विकास उपाध्याय ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखा। इसके बाद सरकार ने निजी अस्पतालों में कोरोना पीड़ितों के इलाज की दरें तय कर दी गईं। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि इक्के-दुक्के निजी अस्पतालों को छोड़कर कोई उसको मानने के लिए तैयार नहीं है। हॉस्पिटल बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. राकेश गुप्ता का कहना है कि आदेश कुछ अस्पतालों में विलंब से पहुंचा, इस कारण हो सकता है , दिक्कत आई हो , लेकिन सरकार के आदेश का पालन सभी करेंगे। लेकिन दवाई के नाम पर अधिक राशि लेने को लेकर लोगों में आशंका बनी हुई है।

सवाल यह उठता है कि सरकार पहले शादी हाल और हॉस्टल को कोविड सेंटर में क्यों नहीं बदला।अमूमन राज्य के हर शहर और कस्बे में शादी हाल और हॉस्टल हैं, फिर बेड खरीदने और कोविड सेंटर बनाने में सरकारी धन का दुरुपयोग क्यों किया गया। कई स्वयसेवी संस्थाएं कोरोना काल में सहयोग के लिए आगे आना चाहती हैं , लेकिन सरकार और अफसर उधर ध्यान ही नहीं दे रहे हैं। राज्य में एम्स और मेडिकल कालेज रायपुर के अलावा भी मेडिकल और डेंटल कालेज हैं। राज्य में 100 के करीब नर्सिग कालेज हैं। वहां से स्टाफ बुलाकर कोविड सेंटरों में व्यवस्था दुरुस्त कर सकती है। ऐसा लग रहा है कि सरकार बड़े निजी अस्पतालों के चक्कर में उलझ रही है , जबकि कोविड अधिकांश मरीजों को सामान्य देखभाल की जरुरत है। इसके लिए सरकार सभी प्राइवेट हॉस्पिटल के डाक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ की सेवाएं ले सकती है। अब सरकार ने होम क्वारंटीन के दायरे को बढ़ा दी है। इसमें भी निजी छोटे अस्पतालों के स्टाफ की सेवाएं लेकर लोगों को राहत पहुँचाया जा सकता है।

कोरोना से निपटने के लिए युद्ध जैसी तैयारी करनी होगी और वैसी ही रणनीति भी। यह वैश्विक महामारी है और सरकार व राजनीतिक दलों को पार्टी हित से ऊपर उठ कर काम करना होगा। यह देश-प्रदेश के लिए संकटकाल है। संकटकाल में कोई सेवा से इंकार करे तो सरकार को सख्त कदम उठाने से नहीं हिचकना चाहिए। छत्तीसगढ़ इस वक्त राज्य में मेडिकल इमरजेंसी घोषित कर काम करे तो देश के सामने उदाहरण पेश कर सकती और जनता के सामने उसकी नई छवि बनेगी। अभी लोगों को लग रहा है कि सरकार ने उन्हें भगवान भरोसे छोड़ दिया है।

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