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विधानसभा में नमाज कक्ष पर बवाल

किसी प्रदर्शनकारी को मूर्ख कहना मुझे हिंसा लगती है, लेकिन राम चरित मानस का सहारा लेकर मै ये धृष्टता कर रहा हूँ और झारखंड विधानसभा में नमाज के लिए कक्ष आरक्षित करने के विरोध में प्रदर्शन कर रहे लोगों की मूर्खता पर मुझे हँसी भी आ रही है. विधानसभा भवन में नमाज के लिए एक कक्ष आरक्षित करने से कौन सा हिन्दू धर्म खतरे में पड़ गया ? अगर सदन के कुछ सदस्य ऐसा चाहते हैं तो फिर किसी को आपत्ति क्यों है ?

झारखण्ड विधानसभा के बाहर प्रदर्शन कर रहे पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी का ये कहना हास्यास्पद लगता है कि संविधान इसकी इजाजत नहीं देता है। इसके बावजूद धर्म विशेष के लिए कमरा आवंटित किया गया है। विधानसभा में धर्म विशेष के लिए कमरा आवंटित करना सही नहीं हैं। अगर राज्य को मजहबी राज्य बनाने की कोशिश हुई तो पार्टी इसका विरोध करेगी। मरांडी भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं इसलिए उनका बयान हास्यास्पद लगता है. उन्होंने शायद भारत का संविधान पढ़ा ही नहीं है.यदि पढ़ा होता तो इतनी बचकानी बात वे न कहते.

मरांडी मानते हैं कि विधानसभा में नमाज के लिए कमरा आवंटित करना एक मजहबी राज्य की स्थापना की कार्रवाई है, उन्हें नहीं पता कि उनकी पार्टी तो कब से देश को मजहबी राष्ट्र बनाने का सपना पीला बैठी है,वो तो भारत का संविधान है जो उनके इस सपने के आड़े आ जाता है. झारखंड में सत्ताच्युत होने से परेशान भाजपा के पास फिलहाल कोई मुद्दा नहीं है इसलिए उसने नमाज के लिए कमरा आरक्षण को मुद्दा बना लिया. बेहतर होता कि मरांडी और उनकी पार्टी विधानसभा में अपने लिए अलग से पूजाघर आरक्षित करने की मांग करते.लेकिन मरांडी और उनकी पार्टी के लोग तो मुस्लिम सदस्यों की तरह न पक्के पुजारी हैं और न उन्हें पांच समय पूजा-आरती करने की आदत है.

बीजेपी का आरोप है कि राज्य सरकार हिंदू विरोधी निर्णय ले रही है। पार्टी ने हेमंत सोरेन पर तुष्टिकरण का आरोप लगाया है। प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश ने कहा कि सरकार के इशारे पर झारखंड विधानसभा अध्यक्ष ने यह अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक निर्णय लिया है। इस निर्णय से अन्य समुदाय के लोग आहत हैं।सवाल ये है की विधानसभा में नमाज के लिए काश आरक्षित करने से अन्य समुदाय के लोग आहत कयों हो रहे हैं .भाजपा को पता नहीं है की वे जिस देश में रहते हैं उसी देश के तमाम अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों पर नमाज के लिए पृथक से कक्ष बने होते हैं, क्या भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार देश के तमाम हवाई अड्डों पर स्थित इन कक्षों पर टाला लगाने की हिम्मत रखती है, शायद नहीं.

लोकतंत्र की मजबूती के लिए जनता से जुड़े मुद्दे उठाने की जरूरत पड़ती है लेकिन भाजपा जानबूझकर जनता के मुद्दों से बचती है, क्योंकि आज जनता से जुड़े मुद्दों में मंहगाई,बेरोजगारी ,साम्प्रदायिकता शामिल है और इन तीनों के लिए फिलहाल प्रथमदृष्टया भाजपा ही जिम्मेदार है. भाजपा ने ही बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान अपनी रैलियों में रामलीला के पात्रों को सार्वजनिक रूप से घुमाया. राम का नाम लेकर भाजपा शिष्ट राज्यों में ही अल्पसंख्यक धुनें जा रहे हैं. क्या भाजपा को नहीं लगता कि किसी से जबरन किसी का जयकारा लगवाने से उसकी धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं ?

हंसी इस बात पर आती है कि भाजपा ने जनता की धार्मिक भावनाओं का ठेका तो लिया है लेकिन अपनी शर्तों पर. भाजपा केवल हिन्दू भावनाओं की फ़िक्र करती है, उसे दूसरे धर्मों खासकर इस्लाम धर्म कि अनुयाइयों की भावनाओं से कुछ लेना -देना नहीं है. ईसाई भी उसके लिए महत्वपूर्ण नहीं है, और आजकल तो भाजपा किसान आंदोलन की वजह से सिखों से भी नाखुश है .भाजपा को इन ठठकर्मों से परहेज करना चाहिए. वोट बटोरने कि लिए जनहित कि काम करने की जरूरत है न कि निर्र्र्थक मुद्दों को उछालने की.

चलिए एक क्षण कि लिए मान लीजिये कि भाजपा विधानसभा भवन में नमाज कि लिए कमरा आरक्षित करने कि विधानसभा अध्यक्ष कि फैसले से सहमत नहीं है ,ऐसे में पहले भाजपा को सदन कि भीतर अपना विरोध दर्ज करना चाहिए और यदि तब भी उसे लगता कि बात नहीं बन रही तो अध्यक्ष कि फैसले को अदालत में चुनौती देना चाहिए,न की सड़कों पर हुल्लड़ करना चाहिए. भाजपा को लगता है कि मतदाताओं कि ध्रुवीकरण कि लिए धार्मिक भावनाएं सबसे मुफीद हैं.उन्हें भड़काकर आप अपना उल्लू सीधा कर सकते हैं.

अगर कोई बाबूलाल मरांडी और उनकी पार्टी कि नेताओं ने संविधान पढ़ा है तो क्या वे बता सकते हैं कि देश कि तमाम पुलिस थाना परिसरों,और सरकारी कार्यालयों में धर्म विशेष कि पूजाघर कैसे बनाये गए हैं ? क्या इनके लिए संविधान में व्यवस्था है ?क्या देश में जब-जब कोई मुस्लिम राष्ट्रपति,उप राष्ट्रपति या मुख्य न्यायाधीश बना ,तब क्या उसे अपने सरकारी आवास में नमाज पढ़ने से रोका गया ?मुझे तो याद नहीं आता कि ऐसा कभी हुआ है .भाजपा भूल जाती है की भारत एक विविध संस्कृति,धर्मों और भाषाओँ वाला देश है .यहां सबकी धार्मिक भावनाएं महत्वपूर्ण हैं.कोई भी सरकार धर्म विशेष कि लोगों कि लिए नहीं ,बल्कि आम भारतीयों कि लिए काम करने हेतु चुनी जाती है.

भाजपा को झारखण्ड विधानसभा में नमाज कि लिए कक्ष आरक्षित करने कि फैसले कि खिलाफ अपने प्रदर्शन कि लिए देश से क्षमा मांगना चाहिए. लेकिन इतना साहस भाजपा कि किसी नेता में नहीं हैं ,क्योंकि भाजपा कि ज्यादातर नेता भीतर से ठीक उसी तरह सोचते हैं जिस तरह काबुलीवाला के देश की नयी सरकार वाले सोचते हैं. आज इसी सोच से मुक्ति की आवश्यकता है. धर्म और जाती के नाम पर बयान देने और प्रदर्शन करने वाली अकेली भाजपा नहीं हैं, नन्द कुमार बघेल भी हैं जो एक राज्य के मुख्यमंत्री के पिता हैं. भाजपा वालों से ज्यादा साहसी तो बघेल हैं जिन्होंने अपनी गिरफ्तारी दी और जमानत नहीं ली. वे चाहते तो एक छोटा सा ड्रामा कर जेल जाने के बजाय अपने घर जा सकते थे मेरा तो सुझाव है कि देश के दुसरे सूबे की विधानसभाओं में भी नमाजियों के लिए अलग से कक्ष की व्यवस्था की जाना चाहिए. ऐसा करना असंवैधानिक बिलकुल नहीं है.जो लोग ऐसा नहीं मानते उन्हें समझना भी नामुमकिन है, क्योंकि -तुलसी दास जी पहले ही कह गए हैं कि –

फूलइ फरइ न बेत जदपि सुधा बरषहिं जलद।
मूरुख हृदयँ न चेत जौं गुर मिलहिं बिरंचि सम ||

@ राकेश अचल

 

 

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