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लद्दाख में लंबे मोर्चे ही नहीं सर्दियों के युद्ध के लिए भी है भारत की तैयारी

नई दिल्ली(एजेंसी): चीन के साथ बीते चार महीने से चल रहे सीमा तनाव के बीच भारत ने न केवल लंबी तैनाती की तैयारी कर ली है, बल्कि चीन के युद्ध हौसलों को पस्त करने के भी पूरे इंतज़ाम कर लिए हैं. उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक चीन के मंसूबों को भांप भारत ने मई 2020 से ही अपनी तैयारी और मोर्चे के लिए मजबूत करना शुरू कर दिया था. इसके चलते भारतीय सेना लद्दाख के पहाड़ों में लंबे मोर्चे के लिए भी तैयार है और ज़रूरत पड़ी तो ठिठुरती सर्दी में युद्ध के लिए भी.

उच्च पदस्थ सैन्य सूत्रों के मुताबिक भारतीय सेना न केवल पूरी तरह से तैयार है, बल्कि पूर्वी लद्दाख के इलाके की कठिन सर्दियों में भी एक पूर्ण युद्ध लड़ने के लिए सक्षम है. इसके लिए ज़रूरी लॉजिस्टिक इंतज़ाम कर लिए गए हैं.

लॉजिस्टिक क्षमताएं दरअसल, अग्रिम मोर्चों तक गतिशीलता या आवाजाही की सहूलियत, सैनिकों के लिए रहने की सुविधाओं और स्वास्थ्य, विशेष राशन, मरम्मत, हीटिंग सिस्टम, उच्च गुणवत्ता वाले हथियार, गोला-बारूद, गुणवत्ता वाले कपड़े आदि से संबंधित है. पूर्वी लद्दाख के इलाके में जहां इस तरह की क्षमताएं पहले से मौजूद थीं और सैनिक केवल प्लग एंड प्ले कर सकते थे. वहीं इस साल मई से चीन के तेवरों में आक्रामता के निशान नज़र आने के बाद से ही भारत ने अपने लॉजिस्टिक तंत्र को मजबूत करना शुरू कर दिया था.

हालांकि भारत की तैयारियों पर आगे बात करें उससे पहले लद्दाख के पहाड़ी इलाके बने मैदाने जंग की तस्वीर को भी जानना ज़रूरी है. लद्दाख के पठारी इलाके में पहाड़ों को हाई से सुपर हाई एल्टीट्यूड के बीच रखा जा सकता है. जहां कई इलाकों में तापमान माइनस 30 से 40 डिग्री सेल्सियस और 40 फुट तक बर्फबारी दर्ज की जाती है. अक्टूबर के बाद से मौसम बेहद ठंडा होने लगता है और नवंबर के महीने में बहुत अधिक बर्फ गिरती है. इसके अलावा विंड चिल फैक्टर सैनिकों के लिए हालात को बेहद मुश्किल बनाता है. बर्फ के कारण सड़कें भी बंद हो जाती हैं.

प्रकृति की इन चुनौतियों के बावजूद, भारत के लिए भरोसा बढ़ाने वाली बात यह है कि भारतीय सैनिकों को शीतकालीन युद्ध का एक बड़ा अनुभव है और वो शॉर्ट नोटिस पर भी तैनाती के लिए मनोवैज्ञानिक रूप से हमेशा तैयार हैं.

एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी के मुताबिक यह तथ्य दुनिया को ज्ञात है, लेकिन भारतीय सेना के ऑपरेशनल लॉजिस्टिक्स क्षमताओं के बारे में कम लोगों को पता है. ऐसे में चीन के ग्लोबल टाइम्स जैसे अखबारों में आ रही मीडिया रिपोर्ट्स में भारत की क्षमताओं में कमी और सर्दियों में न लड़ पाने के बारे में जो कुछ कहा जा रहा है वो महज़ उनका अज्ञान बताता है.

परंपरागत रूप से लद्दाख में जाने के लिए दो मार्ग थे, जो कि जोजिला और रोहतांग दर्रे से होकर जाते हैं. हाल ही में भारत ने दारचा से लेह तक तीसरे सड़क का निर्माण किया, जो न केवल दूरी के हिसाब से छोटी है, बल्कि इसके बंद होने का खतरा भी कम है. वहीं रोहतांग मार्ग पर अटल सुरंग के पूरा होने से रसद-आपूर्ति की लॉजिस्टिक क्षमताएं कई गुना बढ़ जाती हैं.

सूत्रों के मुताबिक अपनी तैयारियों को मजबूत करने की कड़ी में सेना ने लद्दाख को जोड़ने वाले अहम रास्तों पर बर्फ हटाने वाले आधुनिक उपकरण बड़ी संख्या में पहले ही तैनात कर दिया है. इसके चलते नवंबर के बाद मौसम खराब होने पर भी रणनीतिक रास्तों को खुला रखा जा सकेगा. इन तैयारियों के सहारे भारत अपने सैनिकों की रोजमर्रा ज़रूरतों को मुश्किल से मुश्किल हालात में भी पूरा कर सकता है. इसके अलावा, लद्दाख और उसके करीबी इलाकों में बड़ी संख्या में मौजूद हवाई ठिकाने भी भारत की ताकत हैं जो जिनकी मदद से सेना तक ज़रूरी साज़ो समान और रसद को पहुंचाया जा सकता है.

सैन्य सूत्रों के अनुसार भारत ने टैंक और बख्तरबंद वाहनों के लिए विशेष ईंधन, मोबिल आयल से लेकर स्पेयर कल-पुर्जों तक का स्टॉक भर लिया है. अपने सैनिकों ही नहीं रसद आपूर्ति के लिए काम करने वाले याक और खच्चर जैसे जानवरों के लिए खच्चरों के लिए भी खाने-पीने का इंतज़ाम मुकम्मल हो गया है. इसके अलावा सैनिकों के रिहाइशी बैरक भी तैयार जो आरामदायक और गर्म हैं. इनमें सेंट्रल हीटिंग सिस्टम जैसी सुविधाएं लगाई गई हैं.

तैयारियों से वाकिफ एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी के मुताबिक छोटे हथियारों, मिसाइलों और टैंक और तोपखाने के गोला-बारूद सहित विभिन्न प्रकार के ए एम्यूनिशन का भी पर्याप्त स्टॉक किया जा चुका है.

दरअसल, चीन के मीडिया में प्रेपोगंडा के तौर पर नज़र आ रहा प्रचार दरअसल अपना भय छुपाने की कोशिश है. सूत्र बताते हैं कि शारीरिक और मनोवैज्ञानिक रूप से मजबूत भारतीय सैनिकों के मुकाबले चीनी सेना के सैनिक ज्यादातर शहरी क्षेत्रों से हैं जिनके लिए लद्दाख इलाके की कठिन परिस्थितियों में लंबे समय तक तैनाती आसान नहीं होगी.

एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी के मुताबिक यह समझना महत्वपूर्ण है कि भारतीय सेना के पास सियाचिन का अनुभव है जहां चीन के साथ लगी सीमाओं के मुकाबले स्थितियां कहीं अधिक कठिन हैं.

जानकारों का मानना है कि चीन यूं तो हमेशा बिना लड़े युद्धों को जीतने की अवधारणा जताता रहा है. मगर ऐसे में अगर युद्ध के हालात बनते हैं तो उनका मुकाबला युद्धक्षेत्र में पके-प्रशिक्षित, बेहतर तैयार और मनोवैज्ञानिक रूप से कठोर भारतीय सैनिकों से होगा. ज़ाहिर है चीनी रणनीतिकारों को भी इसकी चिंता सता रही होगी. तभी तो चीनी सरकारी मीडिया आए दिन अपनी ताकत के प्रोपोगेंडा में जुटा है.

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