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हाल के वर्षों में शुगर पर इतनी ज्यादा क्यों हो रही चर्चा? जानें इससे जुड़े मिथक और सच्चाई

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शुगर हमेशा से फिटनेस और स्वास्थ्य के केंद्र में विवाद का कारण रहा है. हमारे शरीर पर शुगर सेवन के प्रभाव से संबंधित कई राय पाई जाती हैं. लेकिन सच्चाई ये है कि शुगर के इर्द गिर्द मिथक बेहद प्रचलित हैं. मिसाल के तौर पर ये सुनना आम है कि शुगर का सेवन आपको मोटा बना सकता है, या डाइटबिटीज हो सकती है. ये भी कहा जाता है कि मिठाई खाने से आपका दांत सड़ जाएगा या आपकी इम्यूनिटी कमजोर हो जाएगी, क्योंकि ये आपकी सेहत के लिए खराब है.

शुगर पर इन दिनों बहुत ज्यादा क्यों छिड़ी हुई बहस?

लेकिन क्या ये सच हैं, या सिर्फ अफवाह की बात? हालांकि, इसके काफी ऐतिहासिक सबूत हैं कि शुगर दांत खराब, दिल की बीमारी और मोटापा भी होने का कारण रहा है. हैरानी की बात नहीं है कि ज्यादातर लोग शुगर की साधारण मात्रा खाने के बाद भी दोषी महसूस करने लगते हैं. ऐसे लोग भी हैं जो सोचते हैं कि शुगर को डाइट से पूरी तरह हटा दिया जाना चाहिए, हालांकि ये गलत धारणा है. शुगर के बारे में खास गलतफहमियों को दूर किया जाना चाहिए.

अलग-अलग धारणा में कैसे बिठा सकते हैं सामंजस्य?

शुगर को सामान्य मात्रा में नियमित डाइट के तौर पर खाया जाना ठीक है. बहरहाल, आपको आप चाहे जो कुछ भी सुनते हों या बताया जाता हो, थोड़ी मिठास समस्या नहीं है. शुगर महज कार्बोहाइड्रेट्स की शक्ल है जो ईंधन के तौर पर काम करता है और आपके शरीर को ऊर्जा देता है. हाल के वर्षों में शुगर ने काफी शोहरत हासिल कर ली है. सेलेब्रिटीज शुगर के बुरे प्रभाव पर उपदेश और बच्चों को मिठाइयों से दूर रहने की नसीहत देते हुए सुने जाते हैं. कुछ मिथक लोकप्रिय संस्कृति का हिस्सा बन गए हैं और हकीकत के तौर पर मशहूर हो गए हैं.

निष्कर्ष- अंत में आपको याद दिलाना जरूरी है कि किसी भी चीज की ज्यादती शरीर के लिए ठीक नहीं है. इसलिए, बहुत ज्यादा शुगर खाने से निश्चित तौर पर स्वास्थ्य की कई दिक्कतों को न्योता मिलेगा. लेकिन ग्लूकोज शरीर के लिए जरूरी है, क्योंकि ये ऊर्जा उपलब्ध कराता है. ये लगभग असंभव होने के साथ-साथ अपनी डाइट से शुगर को हटाना अव्यवहारिक भी है, क्योंकि आलू से लेकर फलों और रेशेदार फूड्स में हाई ग्लाइसेमिक इंडेक्स होता है. आपको सिर्फ अपने शुगर सेवन को निर्धारित लेवल तक रोकने की जरूरत है. एक व्यस्क रोजाना 5-8 चम्मच शुगर के बीच कुछ भी खा सकते हैं.

 

 

 

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