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कही-सुनी (25 SEPT-2022) : संजय शुक्ला बनेंगे वन विभाग के मुखिया ?

रवि भोई की कलम से


कहा जा रहा है कि 1987 बैच के आईएफएस संजय शुक्ला का वन विभाग का मुखिया बनना लगभग तय है और अगले हफ्ते आदेश निकल जाएगा। श्री शुक्ला इस पद पर करीब आठ महीने ही रहेंगे, लेकिन विभाग प्रमुख तो विभाग प्रमुख होता है, समय चाहे कितना भी मिले। श्री शुक्ला अभी राज्य लघु वनोपज संघ के प्रबंध संचालक हैं। अब लघु वनोपज संघ के प्रबंध संचालक का पद भी उनके पास रहता है या किसी दूसरे की लाटरी लगती है, इस पर कयासबाजी चल रही है। 1985 बैच के आईएफएस राकेश चतुर्वेदी 30 सितंबर को पीसीसीएफ और वन विभाग के मुखिया पद से रिटायर हो जाएंगे। राकेश चतुर्वेदी ने वन विभाग के मुखिया के तौर पर अच्छी पारी खेली है। अब रिटायरमेंट के बाद कौन सा पद मिलता है, उस पर सभी की नजर है। राकेश चतुर्वेदी के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और वन मंत्री मोहम्मद अकबर से काफी अच्छे संबंध हैं, इस कारण उन्हें पोस्ट रिटायरमेंट पद मिलना तो तय माना जा रहा है। कुछ महीने पहले राकेश चतुर्वेदी को रिटायरमेंट के बाद पर्यावरण संरक्षण मंडल का अध्यक्ष बनाए की खबर चली थी। अभी अपर मुख्य सचिव आवास एवं पर्यावरण सुब्रत साहू पर्यावरण संरक्षण मंडल के अध्यक्ष हैं।

अफसर या डकैत

कन्हर नदी पर बन रहे अमवार डेम के भू अर्जन और विस्थापन की करीब नौ करोड़ राशि को डकारने वाले जल संसाधन विभाग के अफसर संजय कुमार ग्रायकर को सरकार ने निलंबित कर दिया है।कहते है जल संसाधन विभाग के संभाग क्रमांक 2 रामानुजगंज में तैनात प्रभारी कार्यपालन अभियंता संजय कुमार ग्रायकर ने सेल्फ चेक के जरिए सरकारी धन को व्यक्तिगत खातों में फर्जी भुगतान कर दिया। मामला अभी करीब नौ करोड़ का बताया जा रहा है,लेकिन खोदा-खादी करने पर यह आंकड़ा कई गुना बढ़ सकता है। कहा जा रहा है कि जल संसाधन विभाग में सरकारी खजाने पर डाका डालने वाले अफसरों की फेहरिस्त है। सरकारी खजाने से अपने नाम 18 करोड़ की हेराफेरी करने वाला एक अफसर संविदा में चांदी काट रहा है और सीना तानकर चल रहा है। 15 करोड़ हजम करने वाला भी कंबल ओढ़कर घी पी रहा है। सरकार 15 करोड़ खाने वाले की जांच तो करवा रही है, लेकिन जांच रिपोर्ट आते-आते तो सिर से पानी निकल ही जाएगा। सरकार जागी है, एक को दबोचा है। उम्मीद है कि जल संसाधन के और भी मगरमच्छ जल्द पकड़े जाएंगे।

भतपहरी का टूटा सपना

सरकार की भृकुटि तनी और कई अफसरों से जूनियर होते हुए भी लोक निर्माण विभाग के प्रमुख अभियंता की कुर्सी पर बैठे विजयकुमार भतपहरी अर्श से फर्श पर आ गए। अधिकृत तौर से कहा जा रहा है कि प्रदेश में ख़राब सड़कों के चलते भतपहरी की कुर्सी गई और उन्हें प्रमुख अभियंता की जगह मंत्रालय में ओएसडी (विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी) बना दिया गया। सरकार ने कमलेश कुमार पीपरी को नया प्रभारी प्रमुख अभियंता बनाया है। कहते हैं विजयकुमार भतपहरी ने अपने रिटायमेंट तक प्रमुख अभियंता बनने का सपना बुन लिया था। इसके लिए कैबिनेट से प्रमुख अभियंता के दो पद मंजूर करवा लिए थे और जल्द डीपीसी भी होने वाली थी। एक पद भतपहरी और एक पद पीपरी के खाते में आने वाला था। कई मामलों में चर्चित भतपहरी अपनी टोपी पर कलगी लगवाने से पहले ही खेत रहे और पीपरी की किस्मत चमक गई। चर्चा है कि भतपहरी को उनका गुणा-भाग खा गया। इसके चलते मुख्यमंत्री और लोक निर्माण विभाग के मंत्री दोनों ही उनसे नाराज हो गए।

भाजपा का मुद्दा छीना मुख्यमंत्री ने

कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने एक नवंबर से समर्थन मूल्य पर धान खरीदी का ऐलान कर भाजपा का हाट मुद्दा छीन लिया। कहते हैं धान खरीदी के मुद्दे पर भाजपा बड़ा आंदोलन की योजना बना रही थी, उससे पहले ही मुख्यमंत्री ने दांव चल दिया। चर्चा है कि अब भाजपा किसानों का एक-एक दाना धान खरीदने के लिए सरकार पर दबाव बनाएगी। अभी एक एकड़ में 15 क्विंटल धान खरीद की लिमिट है। छत्तीसगढ़ में 2023 में विधानसभा चुनाव है और राज्य में किसान-धान दोनों ही बड़े चुनावी मुद्दे होने की वजह से कांग्रेस और भाजपा दोनों ही इन दोनों मुद्दे में आगे निकलने की होड़ में लगे हैं। किसानों को नहीं साध पाने से 2018 का विधानसभा चुनाव हारने का दर्द अब भी भाजपा नेताओं की जुबान पर आ जाता है। इस कारण भाजपा किसानों के मसले उठाने से चूकना नहीं चाहती। किसानों को कांग्रेस अपना बड़ा वोट बैंक मानकर चल रही है, ऐसे में कांग्रेस इस मसले में कोई चूक नहीं करना चाहती है। सरकार ने इस बार 110 लाख मीट्रिक टन धान खरीदी का लक्ष्य रखा है।

भाजपा में अग्रवालों की दावेदारी

कहते हैं विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए भाजपा में अग्रवालों की दावेदारी बढ़ गई है। विधानसभा के लिए अग्रवाल दावेदारों में पहले से ही रायपुर दक्षिण विधानसभा से बृजमोहन अग्रवाल, बिलासपुर से अमर अग्रवाल, कसडोल से गौरीशंकर अग्रवाल हैं। भाजपा में प्रवेश के साथ ही अब रायगढ़ से विजय अग्रवाल और बसना विधानसभा से संपत अग्रवाल भी दावेदार बन गए हैं। 2018 में टिकट नहीं मिलने के कारण विजय अग्रवाल और संपत अग्रवाल बागी होकर विधानसभा चुनाव लड़े थे, जिसके चलते भाजपा के अधिकृत उम्मीदवारों को झटका लग गया था। कहा जा रहा है कि इन घोषित दावेदारों के अलावा कई अघोषित अग्रवाल दावेदार भी हैं। इनकी संख्या तीन दर्जन से ज्यादा बताई जा रही है। खबर है कि 2018 के चुनाव में आधा सैकड़ा अग्रवाल दावेदारों ने पार्टी से टिकट की मांग की थी। अब देखते हैं 2023 के विधानसभा चुनाव में क्या समीकरण बनता है ? फिलहाल तो भाजपा की राजनीति ओबीसी केंद्रित दिखाई पड़ रही है।

मुख्यमंत्री सचिवालय में एक और आईएएस जल्द

मुख्यमंत्री सचिवालय में अपर मुख्य सचिव सुब्रत साहू के अलावा सिद्धार्थ कोमल परदेशी, डॉ. एस. भारतीदासन, अंकित आनंद और डी.डी सिंह सचिव हैं। खबर है कि मुख्यमंत्री सचिवालय में जल्द ही एक और आईएएस की पदस्थापना सचिव या विशेष सचिव के तौर पर होने वाली है। मुख्यमंत्री सचिवालय में पदस्थ सचिवों के पास मुख्यमंत्री के सचिवालय के काम के अलावा दीगर महत्वपूर्ण विभाग भी हैं। मुख्यमंत्री सचिवालय में नए आने वाले आईएएस के पास भी दूसरे विभाग रहेंगे।

जिला भाजपा में बदलाव अगले हफ्ते तक

कहा जा रहा है कि नवरात्र और दीवाली के बीच भाजपा कई जिला इकाइयों में बदलाव कर नए चेहरों को मौका देगी। रायपुर जिला भाजपा में भी बदलाव की चर्चा है। प्रदेश इकाई में परिवर्तन के बाद पार्टी जिला इकाइयों को भी गतिशील और मजबूत करना चाहती है। कई जिला इकाइयों में गुटबाजी भी हावी है। परिवर्तन कर गुटबाजी को भी खत्म करना चाहती है। कहते हैं प्रदेश इकाई में बदलाव से पार्टी के कार्यकर्ता चार्ज हुए हैं। पहले चरण में प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव और नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल ने संयुक्त बस्तर दौरा कर कार्यकर्ताओं में जोश भरा है। माना जा रहा है कि जिलों में नई टीम के गठन से 2023 के चुनाव के लिए पार्टी को जमीन मजबूत करने में आसानी होगी।

अलग-थलग पड़े अमित जोगी

ऐसा लग रहा है अब अमित जोगी अलग-थलग पड़ गए हैं। धर्मजीत सिंह के निष्कासन के बाद जोगी कांग्रेस में अब पहचान वाला नेता कोई बचा नहीं है। विधायक प्रमोद शर्मा का भी ढुलमुल चल रहा है। मरवाही उपचुनाव के समय से ही प्रमोद शर्मा बगावती मूड में नजर आ रहे हैं। वे मौके के इंतजार में दिखते हैं। अजीत जोगी के निधन के बाद से ही धर्मजीत सिंह जोगी कांग्रेस में असहज थे और अमित से पटरी नहीं बैठ रही थी। जोगी कांग्रेस में लोग अजीत जोगी और अपनी कुछ मजबूरियों के कारण जुड़े थे। लगता है अमित जोगी इसको नहीं समझ पा रहे हैं। जोगी परिवार के लिए अब कांग्रेस का रास्ता भी खुलता नजर नहीं आ रहा है। दिग्गजों या पहचान वाले नेता को दरकिनार कर अमित जोगी कितने दिन चलते हैं, यह अब देखना है। एक बात साफ़ है कि अमित जोगी के लिए रास्ता चुनौती और काँटों भरा दिख रहा है।


(-लेखक, पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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