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भारत बंद पर कैबिनेट मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने साधा निशाना, कहा- ‘विपक्ष बंजर जमीन पर खेती करने की कोशिश में है’

नई दिल्ली: किसान संगठनों के द्वारा बुलाए गए भारत बंद और विपक्षी राजनीतिक दलों के द्वारा भारत बंद को दिए जा रहे हैं समर्थन पर केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने पलटवार किया है. उन्होंने कहा कि यह राजनीतिक दल से कुछ गिने-चुने किसानों को गुमराह कर राजनीतिक रोटियां सेंकना चाह रहे हैं. ऐसे विपक्षी राजनीतिक दल किसानों के कंधों पर रखकर बंदूक चलाने की कोशिश कर रहे हैं जबकि देश के बड़ी संख्या में किसान केंद्र सरकार की नीतियों के साथ में हैं और वह इन राजनीतिक दलों के बहकावे में नहीं आ रहे.

केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि जो किसान नेता तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की बात कर रहे हैं वह शुरुआत से कहते आ रहे हैं कि एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य खत्म हो जाएगी. मंडिया बंद हो जाएगी और उनकी जमीन पर कब्जा कर लिया जाएगा. लेकिन हकीकत इससे उलट है, मोदी सरकार ने फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी बढ़ाया है, नई मंडीयां खोली जा रही हैं और किसानों की जमीन जबरन छीनने जैसी कहीं कोई बात तक नहीं है.

विपक्षी राजनीतिक दलों की राजनीतिक जमीन बंजर हो चुकी है- मुख्तार अब्बास

मुख्तार अब्बास नकवी ने आगे कहा कि, विपक्षी राजनीतिक दल कुछ किसानों का इस्तेमाल कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने का काम कर रहे हैं. क्योंकि ऐसे सभी विपक्षी राजनीतिक दलों की राजनीतिक जमीन बंजर हो चुकी है और अब वह किसानों के कंधे पर बंदूक रखकर अपनी बंजर पड़ी जमीन को सींचने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि विपक्षी राजनीतिक दलों को इसमें भी कोई कामयाबी नहीं मिलेगी क्योंकि मोदी सरकार में देश में बड़ी संख्या में किसानों को लेकर जो योजनाएं चलाई जा रही हैं उनका सीधा फायदा देश के किसानों को मिल रहा है. इसी वजह से गिने चुने किसानों को छोड़कर बड़ी संख्या में किसान मोदी सरकार के साथ है.

11 महीने से चल रहा किसानों का आंदोलन

गौरतलब है कि तिरु कृषि कानूनों की वापसी को लेकर किसान संगठन पिछले करीब 11 महीने से दिल्ली से सटी सीमा पर प्रदर्शन कर रहे हैं और मांग यही है कि केंद्र सरकार तीनों कृषि कानूनों को रद्द करें. हालांकि केंद्र सरकार और किसान संगठनों के बीच पिछले साल दिसंबर और इस साल के जनवरी महीने के दौरान एक दर्जन बार बातचीत भी हुई और बैठकें भी हुई लेकिन बात नहीं बनी. उसके बाद से ही फिलहाल सरकार और किसान संगठनों के बीच किसी भी तरह का संवाद नहीं हुआ है और गतिरोध जारी है.

किसान संगठन एक तरफ तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं तो सरकार साफ कर चुकी है कि तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने का सवाल ही नहीं उठता। हालांकि किसानों की तरफ से जो संदेह जाहिर किए जा रहे हैं उनको लेकर सरकार लगातार स्पष्टीकरण जारी करती रही है.

 

 

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