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कांग्रेस के वकीलों का सोनिया से मोह भंग  : नीरज मिश्रा

नेशनल हेराल्ड और  गुड़गांव भूमि सौदे के मामले में कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी का पूरा परिवार कानूनी उलझनों में उलझा हुआ है। सोनिया गांधी, राहुल गांधी और  रॉबर्ट वाड्रा  जांच या अदालतों का सामना कर रहे हैं। इसके बावजूद गांधी परिवार सभी कांग्रेसी वकील सांसदों को दरकिनार करके चल रहे हैं।  यह समझ से परे और उत्सुकता का विषय भी है कि आखिर कांग्रेस से जुड़े दिग्गज वकील सोनिया परिवार के रक्षक क्यों नहीं बन रहे हैं ? मोदी सरकार के कृषि बिल और नीट मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के मसले पर कांग्रेस के वकील नेताओं ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। विपक्ष दलों ने इस बारे में कोर्ट जाने के सुझाव के बाद भी कदम न उठाना, कहीं न कहीं गड़बड़ झाला लगता है।

कांग्रेस में राष्ट्रीय ख्यातिनाम  वकीलों की फौज है और राज्यसभा में दिग्गज वकीलों से कांग्रेस का कोटा भरा है, जिसमें  कपिल सिब्बल, पी चिदंबरम, केटीएस तुलसी, आनंद शर्मा, विवेक तन्खा, सलमान खुर्शीद और अभिषेक सिंघवी जैसे कई नाम हैं । ये सभी पिछले छह वर्षों से विभिन्न अदालतों में गांधी परिवार का बचाव करते आ रहे हैं। चूंकि कांग्रेस अब कुछ ही राज्यों में सत्ता में रह गई है।  आमतौर पर इनकों क्षेत्रीय नेताओं का हक़ काटकर और गिने-चुने मुख्यमंत्रियों की सिफारिश पर राज्य सभा भेजा जाता रहा है , फिर भी उनका इस तरह मुंह मोड़ना नया राजनीतिक संकेत है।  गुलाम नबी आज़ाद के नेतृत्व में पिछले महीने सोनिया गाँधी को पत्र लिखने वाले 23 नेताओं में से कुछ वकील सांसद भी शामिल थे।  इस पत्र के बाद कांग्रेस में बवाल मच गया और पत्र लिखने वालों को कटघरे में भी खड़ा  कर दिया गया।

 इसके बाद संगठन में बड़ा बदलाव किया गया , जिसमें सिब्बल, शर्मा, तन्खा और सिंघवी का ताज छीन लिया गया। उन्हें कोई जिम्मेदार पद पर नहीं रखा गया, जबकि उनमें से कोई प्रवक्ता, संसद में उप नेता और कानूनी प्रकोष्ठ के प्रमुख की भूमिका में रह चुका था।

कांग्रेस में इन प्रतिष्ठित वकीलों की मौजूदगी से अब तक  न केवल गाँधी परिवार को ही फायदा मिला, बल्कि पार्टी को भी कहीं न कहीं लाभ हुआ है। सिब्बल, सिंघवी और तन्खा की तिकड़ी ने कई मामलों में कांग्रेस के लिए संजीवनी का काम किया, वह भी ऐसे समय में जब अदालत के अधिकांश महत्वपूर्ण फैसले सरकार के पक्ष में जा रहे थे। ऐसी तिकड़ी ने हाल ही में जयपुर उच्च न्यायालय  में बहुजन समाज पार्टी के विधायकों के दलबदल केस में गहलोत सरकार को बचाया था। इसके बाद भी पार्टी के शीर्षस्थ नेतृत्व से दूरी को  खतरनाक रास्ता ही कहा जा सकता है। इस बीच विवेक तन्खा ने  एक ट्वीट किया था।  यह ट्वीट था   “अरुणाचल से उत्तराखंड तक, कर्नाटक से महाराष्ट्र तक, यह टीम कांग्रेस के वकीलों की कहानी है, किसी भी पार्टी से ईर्ष्या” कांग्रेस के भीतर सत्ता संघर्ष के बीच।” 25  अगस्त को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक के बाद कपिल सिब्बल ने भी ट्वीट किया था. ट्वीट था –  ” किसी पोस्ट के बारे में नहीं। यह मेरे देश के बारे में है जो सबसे ज्यादा मायने रखता है। “

सोनिया द्वारा घोषित नई कार्यकारिणी में सलमान खुर्शीद, चिदंबरम और मनीष तिवारी शामिल हैं। पार्टी के  23 सदस्यों द्वारा लिखे पत्र के बारे में केवल सलमान खुर्शीद ने कुछ नहीं कहा था। चिदंबरम ने पत्र का समर्थन करते हुए कुछ मुद्दे भी उठाये थे। मनीष तिवारी पूरी तरह आज़ाद के साथ थे, लेकिन पर्यवेक्षकों का मानना था कि  तिवारी का इस्तेमाल किया गया। सिंघवी पूरी तरह चुप्पी साधे हुए हैं।  चिदंबरम और सिंघवी दोनों ही आलाकमान से बेहद कटे हुए हैं। सिंघवी को प्रवक्ता के पद से हटा दिया गया है। हालांकि अब जरूर सिंघवी को कांग्रेस शासित राज्यों में कृषि बिल संशोधन की जिम्मेदारी दे दी गई है। कांग्रेस शासित राज्य केंद्र सरकार के कृषि बिल को मानने की जगह अलग से कानून लाने की बात कर रहे हैं।    चिदंबरम भी अपने बुरे दिनों में पार्टी से अधिक सहयोग की उम्मीद करते थे , लेकिन वैसा सहयोग नहीं मिला।  इस कारण दुखी हैं।

राहुल और सोनिया दोनों नेशनल हेराल्ड मामले में  फिलहाल जमानत पर हैं। राहुल के खिलाफ भ्रष्टाचार से लेकर मानहानि तक के 15-16 केस चल रहे  हैं। राबर्ट  वाड्रा हरियाणा में भूमि अधिग्रहण के मामलों से जूझ रहे हैं और अहमद पटेल पहले ही पीएमएलए मामले में ईडी द्वारा 27 घंटे की पूछताछ का सामना कर चुके हैं। पार्टी के वरिष्ठ वकीलों की  टीम के सक्रिय समर्थन के बिना कांग्रेस अपना रास्ता खो सकती है और नेता संकट में फंस सकते हैं। इसके लिए भाजपा को दोष नहीं दिया जा सकता।

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