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नवरात्रि के 9 दिन क्यों नहीं खाते प्याज-लहसुन? राहु-केतु से जुड़ी है इसके पीछे की पौराणिक कथा

शारदीय नवरात्रि (Shardiya Navratri) के शुभ दिनों की शुरुआत हो चुकी है. आज नवरात्रि का तीसरा दिन (Navratri Third Day) है. आज के दिन मां चंद्रघटा की पूजा (Chandraghanta Puja) की जाती है. मां दुर्गा (Maa Durga) को प्रसन्न करने के लिए भक्त नवरात्रि में व्रत (Navratri Vrat) रखते हैं और पूजा-पाठ कर मां की अराधना करते हैं. ताकि मां को प्रसन्न किया जा सके. इस दौरान व्रत रखने वाले लोग सिर्फ फलाहार या व्रत के दौरान खाए जाने वाले अनाज का ही सेवन करते हैं. लेकिन जो लोग व्रत नहीं रखते वे भी इन दिनों में मांस, मदिरा और प्याज-लहसुन आदि से दूर रहते हैं. आइए जानते हैं कि नवरात्रि या किसी भी अन्य पूजा के समय प्याज-लहसुन खाने की मनाही क्यों होती है.

भोजन की श्रेणियां

हिंदू परंपरा में किसी भी पूजनीय कार्य के दौरान घर में प्याज और लहसुन बनाने की मनाही होती है. इसके पीछ एक मुख्य कारण है. इसे जानने से पहले ये समझ लें कि भोजन को 3 श्रेणियों में बांटा गया है.

1.  सात्विक: मन की शांति, संयम और पवित्रता जैसे गुण
2. राजसिक: जुनून और खुशी जैसे गुण
3. तामसिक: अंहकार, क्रोध, जुनून और विनाश जैसे गुण

प्याज और लहसुन तामसिक प्रवृत्ति के भोजन में आते हैं. पौराणिक शास्त्रों के अनुसार प्याज-लहसुन जुनून, उत्तजेना और अज्ञानता को बढ़ावा देते हैं. इसके कारण अध्यात्म के मार्ग पर चलने में रुकावट आती है. इसलिए कहा जाता है कि नवरात्रि के दिनों में व्रत नहीं भी कर रहे लोगों को भी राजसिक और तामसिक भोजन से दूर रहना चाहिए. इस दौरान केवल सात्विक भोजन करने की सलाह दी जाती है.

इससे शरीर में आती है सुस्ती

धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि प्याज और लहसुन खाने से शरीर में गर्मी आती है, जिससे मन में कई प्रकार की इच्छाओं का जन्म होता है. वहीं इन 9 दिनों में देवी की अराधना करने के लिए अध्यात्मिक ऊर्जा की जरूरत होती है, लेकिन प्याज आदि खाने से व्यक्ति पूजा-पाठ के रास्ते से भटक जाता है. इतना ही नहीं, व्रत के समय सोना भी मना होता है और प्याज आदि खाने के बाद सुस्ती आती है, जिससे व्यक्ति को नींद आने लगती है. इसी कारण नवरात्रि के दौरान प्याज और लहसुन नहीं खाना चाहिए.

राहु-केतु से जुड़ी है पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन से निकले अमृत को भगवान विष्णु जब देवताओं में बांट रहे थे तो दो राक्षस राहु-केतु भी वहां आकर बैठ गए. भगवान विष्णु ने उन्हें भी देवता समझ कर अमृत की बूंदे दे दीं. लेकिन उन्हें तभी सूर्य और चंद्रमा ने बताया कि यह दोनों राक्षस हैं. लेकिन तब तक भगवान उनके मुंह में अमृत की बूंद दे चुके थे. ये बात सुनते ही भगवान विष्णु जी ने उन दोनों के सिर धड़ से अलग कर दिए. उस समय तक उनके शरीर में अमृत नहीं पहुंचा था, इसलिए वो उसी समय जमीन पर गिरकर नष्ट हो गए. लेकिन उनके मुख में अमृत पहुंच चुका था इसलिए उनके मुख अमर हो गए.

जब भगवान विष्णु ने उनके सिर काटे थे तो उनके सिर से अमृत की कुछ बूंदे जमीन पर गिर गई थीं, जिनसे प्याज और लहसुन उपजे थे क्योंकि इन दोनों सब्जियों की उत्पत्ति अमृत की बूंदों से हुई है. इसलिए यह बीमारियों को नष्ट करने में अमृत के समान है. लेकिन राक्षसों के मुख से गिरने के कारण इनमें तेज गंध होती है और इन्हें अपवित्र माना जाता है और यही कारण है कि इन्हें भगवान के भोग में इस्तेमाल नहीं किया जाता. कहते हैं कि जो प्याज और लहसुन खाता है उसका शरीर राक्षसों की तरह मजबूत हो जाता है. इतना ही नहीं, बुद्धि और विचार भी दूषित हो जाते हैं.

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