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छत्तीसगढ़ में सीमेंट उद्योगों पर चौतरफा मार – राजेंद्र ठाकुर

छत्तीसगढ़ में सीमेंट उद्योग इन दिनों बुरे दौर से गुजर रहे हैं। एक तो कच्चेमाल की कीमतों और परिवहन लागत में लगातार बढ़ोतरी हो रही है, उसके मुकाबले सीमेंट के दाम नहीं बढ़ रहे हैं, तो दूसरी तरफ सरकारी विभागों के उलझाव ने सीमेंट उद्योग को तोड़कर रख दिया है। भारी घाटे और कीमतों में कमी के चलते पिछले साल यहां का इमामी सीमेंट बिक गया। इमामी सीमेंट को न्यूवोको विस्टास कॉरपोरेशन लिमिटेड और निरमा समूह ने ख़रीदा।

कहा जा रहा है कि अन्य राज्यों के मुकाबले में छत्तीसगढ़ में सीमेंट की कीमत काफी कम है। छत्तीसगढ़ में सीमेंट की कीमत प्रति बोरी 250-270 रूपये है, वहीँ पडोसी राज्य महाराष्ट्र में कीमत 310-340 , मध्यप्रदेश में 290 -320 , ओडिशा में 280-300,आँध्रप्रदेश में 320-340 रुपये प्रति बोरी है तो हरियाणा -पंजाब में 350 -370 और उत्तरप्रदेश में 340-360 रुपये की दर से सीमेंट बिक रही है। कहा जा रहा है छत्तीसगढ़ में पिछले दस वर्षों से सीमेंट की दरें स्थिर बनी हुई हैं। दूसरी समस्या यहां मांग और आपूर्ति में भारी अंतर का भी है, जितना उत्पादन और माल की सप्लाई हो रही है, उस अनुपात में मांग नहीं है।

भारत सरकार द्वारा अधोसंरचना निधि में पर्याप्त राशि नहीं देने और बुनियादी ढांचागत क्षेत्र धन आबंटित न करने की वजह से भी सीमेंट की मांग में गिरावट आई है। केंद्र सरकार ने वर्तमान वित्तीय वर्ष में शायद ही कोई नई बुनियादी ढांचा परियोजना शुरू की है। पिछले वर्ष की पहली छमाही की तुलना में इस साल के पहले छह माह में सीमेंट की खपत में लगभग 14 फीसदी की गिरावट देखी गई है। इसका भी सीमेंट उद्योग पर बुरा असर पड़ा है। अभी सीमेंट उद्योग केवल 60 फीसदी क्षमता का उपयोग कर रहा है। पूरी क्षमता का इस्तेमाल न होने के कारण सीमेंट उद्योगों में में तरलता का संकट और वित्तीय तनाव भी पैदा हो गया है। खासकर छोटे सीमेंट उद्योग भारी आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं।

सीमेंट उद्योग कोर सेक्टर में आता है। सीमेंट उद्योग के संचालन के लिए भारी पूंजी लगाने के साथ ज्यादा जमीन की भी जरुरत पड़ती है। सीमेंट प्लांट में उत्पादन और उसे निरंतर चलने के लिए लगातार निवेश की आवश्यकता होती है। सीमेंट प्लांट में कच्चेमाल के साथ बिजली और खनन का खर्च भी बड़ा होता है। इसके अलावा परिवहन के लिए डीजल व्यय और रेलवे से ढुलाई भी बड़ी लागत है। इन सभी की कीमतों में लगातार वृद्धि हो रही है। वहीँ सीमेंट पर 28 फीसदी जीएसटी ने इस उद्योग को हिला कर रख दिया है।

कहते हैं पूंजी संकट और खपत की कमी से जूझ रहे सीमेंट उद्योग पर राज्य सरकार के कुछ विभाग मसलन पर्यावरण व प्रदूषण नियंत्रण, विद्युत मंडल और श्रम विभाग भी नजरें टेढ़ी किये हुए हैं। कभी किसी वजह से नोटिस भेज देते हैं तो कभी जाँच पड़ताल के नाम पर टीम धमक जाती है। बताया जाता है कि पर्यावरण को लेकर सभी सीमेंट उद्योगों को नोटिस भेजा गया है। सीमेंट उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि कोर सेक्टर के इस उद्योग के लिए राज्य में माहौल तो अनुकूल नहीं दिखाई पड़ रहा है। सीमेंट प्लांट स्थानीय स्तर पर विकास में योगदान देते हैं और प्रशासन के निर्देशों का पालन करते हैं, फिर भी कुछ भी मीन-मेख निकालकर प्रबंधन के लिए मुसीबत पैदा करने से सीमेंट उद्योगों में निराशा फ़ैल रही है। कहा जा रहा है कि कोरबा, जांजगीर-चांपा, सूरजपुर, रायगढ़ और अंबिकापुर जिले में कोयले पर अतिरिक्त उगाही की ख़बरों ने सीमेंट उद्योग की लागत और बढ़ा दी है।

सीमेंट उद्योग का देश के आधारभूत संरचना के विकास और रोजगार के अवसर पैदा में अहम भूमिका होती है।देश के जीडीपी में भी सीमेंट उद्योगों का बड़ा योगदान है। सीमेंट उद्योगों के कारण कई और सहायक उद्योग भी विकसित होते हैं। सीमेंट उद्योगों के संचालन के लिए अनुकूल माहौल नहीं होगा तो अतिरिक्त पूंजी निवेश का फायदा नहीं होगा। कॉरोनकाल में जिस तरह निर्माण उद्योग प्रभावित हुए हैं ,ऐसे समय में सरकार और संबंधित विभागों का सहयोग और संरक्षण नहीं मिला तो आने वाले दिनों में राज्य के कुछ और सीमेंट प्लांट में ताला लटकने की खबर आ सकती है। छत्तीसगढ़ देश का बड़ा सीमेंट उत्पादक राज्य है। यहां नौ बड़ी सीमेंट कंपनियों के 14 प्लांट हैं, जिनकी वार्षिक उत्पादन क्षमता करीब 260 लाख टन है। देश की कुल जरूरत का 20 फीसद सीमेंट का उत्पादन छत्तीसगढ़ में होता है। यहाँ लाफार्ज, अंबुजा, ग्रासिम और अल्ट्राटेक के सीमेंट प्लांट बलौदाबाजार में स्थित हैं। इसके अलावा जेके लक्ष्मी, श्रीसीमेंट और एसीसी भी है। राज्य में लाइम स्टोन की प्रचुरता के कारण सीमेंट उद्योग काफी लगे हैं। सीमेंट प्लांट चलेंगे, तो राज्य सरकार को जीएसटी और दूसरे तरह के राजस्व भी मिलेंगे और लोगों को रोजगार भी मिलेगा। बंद होने पर सरकार और लोगों दोनों को नुकसान होगा।

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