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बाहरी तत्वों द्वारा प्रस्तावित रैली का सरगुजा वासियों ने किया पुरजोर विरोध, कलेक्टर से तत्काल रोक लगाने, की मांग

ग्रामीणों ने कहा खदान शुरू होने से है खुशी की लहर,  रैली की खबर से बन रहा डर और भय का माहौल, शांति व्यवस्था बिगड़ने की जताई पूरी संभावना
सरगुजा जिले के कोयला खनन क्षेत्र के ग्राम घाटबर्रा, परसा, साल्ही, हरिहरपुर, जनार्दनपुर, तारा और फतेहपुर के ग्रामीणों ने कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक समेत अन्य अधिकारियों को पत्र लिख कर तथाकथित एनजीओ की प्रस्तावित रैली पर तत्काल रोक लगाने की मांग की है। बड़ी संख्या में ग्रामीणों ने अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) को अपने हस्ताक्षर युक्त पत्र लिखकर कहा है कि, “कुछ बाहरी असामाजिक तत्व और तथाकथित गैर सरकारी संगठनों के द्वारा खनन के विरोध में एक रैली निकाली जा रही है, जिस पर तुरंत रोक लगायी जानी चाहिए।” ग्राम साल्हि के बुद्धिमान सिंह पोर्ते, जनार्दनपुर के समयलाल पोर्ते, परसा के ओमप्रकाश, ग्राम फत्तेपुर के केश्वर सिंह पोर्ते इत्यादि सहित सैकड़ों ग्रामीणों ने अपने हस्ताक्षरित पत्र में लिखा है कि  रैली की खबर से ग्रामीणों में डर और भय पैदा हो गया है, जिस कारण शांति-व्यवस्था के बिगड़ने की पूरी संभावना है।
पत्र में ग्रामीणों ने यह भी लिखा है कि यह क्षेत्र काफी शांतिप्रिय रहा है और कुछ बाहरी तत्व और गैर सरकारी संगठन अपने स्वार्थ के लिए कोयला परियोजना का दुष्प्रचार कर रहे हैं और बाहरी लोगों को यहां आमंत्रित कर भोले-भाले ग्रामीणों को बहला-फुसला रहे हैं। इसके अलावा ये लोग आपस में फूट डालकर विवाद पैदा कर रहे हैं। इन सब से अशांति का वातावरण पैदा हो रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि इसी दुष्प्रचार के कारण कुछ दिनों पूर्व खनन परियोजना का कार्य रुक गया था, जिससे हजारों लोग बेरोजगार हो गए थे और उनके सामने रोजी-रोटी की बड़ी समस्या आ गई थी। अभी दोबारा जब से कोल परियोजना शुरू हुई है, क्षेत्र के लोगों में खुशी की लहर है। सभी लोग रोजगार पाने की उम्मीद में है। यहां संचालित परसा ईस्ट और केते बासेन खुली खदान परियोजना से आसपास के 5000 से अधिक ग्रामीण प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप रोजगार प्राप्त है। इस परियोजना की बदौलत ही वे सभी लाभान्वित और खुशहाल हैं तथा उनके क्षेत्र का विकास हो रहा है। इसलिए इस रैली पर रोक लगाए जाने की सख्त जरूरत है। ग्रामीणों ने इस पत्र की प्रतिलिपि जिला कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक, उदयपुर के तहसीलदार और थाना प्रभारी को भेजी है।

मेधा पाटकर के बाद अब लिसिप्रिया को लेकर आये आंदोलनकारी, कौन है ये लिसिप्रिया ?

तथाकथित गैर सामाजिक संगठन को स्थानीय लोगो का सहयोग न मिलने से अभियान ढीला पड़ रहा है तो पिछले दिनों मेधा पाटकर को करोड़ो रुपये खर्च कर लाया गया था। वहीं अब एक बार पुनः एक और तथाकथित पर्यावरण कार्यकर्ता लिसिप्रिया कंगुजम को खदान विरोधी गतिविधियों में शिरकत करने आमंत्रित किया है। लिसीप्रिया पिछले कुछ सालों में सोशल मीडिया में पर्यावरण संरक्षण के अलावा भी कुछ मुद्दों को लेकर चर्चा में हैं। लिसीप्रिया के पिता कंगूजम कनर्जित उर्फ डॉ. के. के सिह अभी कानून के शिकंजे में है। जिनको राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय स्तर पर भूकंप पीड़ितों के नाम से कई सेमीनार के नाम पर अवैध तरीके से लाखों की वित्तीय उगाही के मामले में आरोप सिद्ध होने पर दिल्‍ली पुलिस की स्‍पेशल सेल और मणिपुर पुलिस के संयुक्‍त ऑपरेशन में गिरफ्तार किया गया। अपनी बेटी लिसीप्रिया को उसके पिता ने शरू से ही एक ऐसा चेहरा बनाया जिसके द्वारा दुनिया को वह ये बता सके की दोनों पिता और बेटी पर्यावरण संरक्षण के लिये कार्य करते हैं जिससे उनपर आसानी से लोग विश्वास कर उनके आयोजनों में आएं और उनके इस दिखावटी पर्यावरण संरक्षण मुहीम में पैसे डोनेट करें। नेपाल के एक छात्र ने वर्ष 2020 में केस दर्ज कराया था। उस छात्र का आरोप था कि के के सिंह ने उसे अपने संगठन अंतरराष्ट्रीय युवा समिति को पैसे देने के लिए धोखा दिय था। इसके बाद से लिसीप्रिया की लोकप्रियता कम हुई और लोगों को उसके मनसूबों पर शक हुआ कि क्या  विदेशी फंड के लिए एक कठपुतली की तरह काम करती हैं।
पहले ही हसदेव बचाओ आंदोलन पर आरोप है की तथाकथित ऐक्टिविस्ट लोगों को गलत आँकड़े बता सोशल मीडिया में खर्चीला अभियान चलाकर गुमराह कर रहे है साथ ही आंदोलन की फंडिंग पर भी कई आरोप है की विदेशी शक्तियाँ इस आंदोलन को चला रही है और  लिसीप्रिया की हसदेव आंदोलन में एंट्री कुछ उसी ओर इशारा कर रही है।जलवायु परिवर्तन का मुद्दा उनके लिए केवल दिखावा है। बाहरी देश पर्यावरण संरक्षण के नाम पर भारत देश के ऊपर कई आरोप लगाते है और देश में ऐसे रिमोट कंट्रोल वाले पर्यावरण ऐक्टिविस्ट खड़ा करते है जिससे भारत देश के विकास की रफ़्तार को धीमा किया जाए। वहीं मेधा पाटकर अब खदान बंद होने से स्थानीय लोगों के बेरोजगार हो जाने के बाद सरगुजा क्षेत्र में पुनः कदम नहीं रखा है।
उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों बिलासपुर हाई कोर्ट की एक बेंच ने परसा ईस्ट केते बासेन (पीईकेबी) खदान के दूसरे चरण को आगे बढाने की प्रक्रिया को अपनी मंजूरी देते हुए  राजस्थान सरकार की महत्वपूर्ण खनन परियोजना के खिलाफ अभियान चलाने वाले तत्वों की एक अन्य संयुक्त याचिका को खारिज कर दिया है। ऐसे में सवाल ये है कि जब सरकार, मंत्रालय और अब अदालत भी इस बहुप्रतीक्षित परियोजना के सभी जरुरी मंजूरियों को जायज बता रही है, तब तथाकथित पर्यावरविद अपनी रोटी सेकने में क्यों लगे हैं ?  इससे पहले मेधा पाटकर जैसे प्रोफेशनल एक्टिविस्ट ने जून के अंत में रायपुर और सरगुजा का दौरा किया और एक बड़े कार्बन फुटप्रिंट का हवाला देते हुए, राजस्थान सरकार के पीईकेबी ब्लॉक का विरोध किया। आलोचकों के विरोध में,राजस्थान को 15 अगस्त को खनन परियोजना को रोकना पड़ा था, जिससे राजस्थान में बिजली संकट की स्थिति पैदा हो गई थी। इस बार लिसीप्रिया हसदेव आंदोलन को लेकर चर्चा का विषय बनी हैं। बीते दिनों 4 अक्टूबर को लिसीप्रिया ने एक ट्वीट करके छत्तीसगढ़ में अपने आगमन और कोयला खनन के विरोध में एक पदयात्रा करने की बात कही। इस तरह तथाकथित एक्टिविस्ट गलत आंकड़े बताकर लोगों को गुमराह करते हैं और मोटी फंडिंग के साथ विदेशी ताकतें इस आंदोलन को चला रही हैं।
गौरतलब है कि लिसीप्रिया कंजुगम की हसदेव क्षेत्र में प्रस्तावित रैली की घोषणा से इलाके में ग्रामीणों द्वारा भारी विरोध किया जा रहा है।
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