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राज्य योजना आयोग: छत्तीसगढ़ में शहरी विकास और प्रबंधन टास्क फोर्स की बैठक में दिए गए अहम सुझाव

रायपुर। छत्तीसगढ़ के शहरी क्षेत्रों के व्यवस्थित विकास को लेकर यहां छत्तीसगढ़ राज्य योजना आयोग के कार्यालय में शहरी विकास और प्रबंधन टास्क फोर्स समिति की बैठक आयोजित की गई. बैठक में राज्य के शहरों के सतत् और व्यवस्थित विकास और इन कार्यों में आने वाली चुनौतियों पर विस्तृत विचार-विमर्श किया गया. इस अवसर पर विशेषज्ञ पैनल और टास्क फोर्स के सदस्य उपस्थित थे. बैठक में राज्य के शहरों में व्यवस्थित और संतुलित विकास, शहरीकरण की गतिशीलता और रोजगार संभावनाओं में वृद्धि के संबंध में अहम सुझाव दिए गए.

गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ राज्य योजना आयोग के द्वारा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ के नारे को साकार करने के उद्देश्य से और वैश्विक महामारी कोविड-19 की वजह से उत्पन्न चुनौतियों के मद्देनजर राज्य का सतत् विकास और रणनीतिक दिशा प्रदान करने के लिए मई में 14 टास्क फोर्स का गठन किया गया है. छत्तीसगढ़ राज्य योजना आयोग के सदस्य डॉ. के. सुब्रमण्यम की अध्यक्षता में शहरी विकास और प्रबंधन टास्क फोर्स समिति गठित की गई है.

टास्क फोर्स की बैठक में प्रो. अमिताभ कुंडू, महबूब रहमान और वर्गीस कुंजप्पी ने शहरीकरण की गतिशीलता और शहरी रोजगार की संरचना पर चर्चा की और इससे जुड़े कुछ मुद्दों पर प्रकाश डाला. बैठक में जानकारी दी गई कि यद्यपि पिछली शताब्दी में छत्तीसगढ़ और भारत के बीच शहरीकरण के स्तर में अंतर काफी कम हो गया है, फिर भी केवल 23 प्रतिशत लोग शहरी क्षेत्रों में रह रहे हैं. आधे से ज्यादा शहरी लोग छह जिलों में हैं.

इसके अलावा, 2001-11 के दौरान, सरकार द्वारा आदिवासी आबादी के उच्च प्रतिशत वाले पिछड़े जिलों में लगभग 75 नए वैधानिक शहर घोषित किए गए हैं. यह राज्य सरकार की संतुलित शहरीकरण नीति का परिणाम है. छत्तीसगढ़ में आसपास के राज्यों के कुशल प्रवासियों और वापस लौटने वाले प्रवासियों को अवसर प्रदान करने की जबरदस्त क्षमता है. आने वाले कुछ दशकों में अन्य राज्यों से पूंजी और कुशल जनशक्ति को आकर्षित करने के लिए राज्य के भविष्य के विकास की संभावना का संकेत देते हैं.

पवन कुमार गुप्ता ने मौजूदा बंदोबस्त योजना – मास्टर प्लान, सिटी प्लान को लागू करने में आने वाली कठिनाइयों और संतुलित शहरी विकास के लिए रणनीतियों पर चर्चा की. उन्होंने सुझाव दिया कि राज्य में समावेशी शहरी विकास या तो मौजूदा शहरी क्षेत्रों या शहरों के आसपास के विकास क्षेत्रों को बढ़ावा देकर किया जा सकता है. इन कार्यों में भूमि अधिग्रहण और भूमि पूलिंग, बुनियादी ढांचा विकास जैसी चुनौतियां भी है. उन्होंने तत्काल मास्टर प्लान लागू करने और रायपुर, दुर्ग और राजनांदगांव क्षेत्र के बढ़ते शहरी क्षेत्र की दीर्घकालिक आवश्यकताओं के लिए राज्य द्वारा विकास क्षेत्र की पहचान करने का सुझाव दिया. उन्होंने उन सभी यूएलबी (राष्ट्रीय राजमार्ग, राज्य राजमार्ग और प्रमुख जिला सड़कों) के चरणबद्ध विकास की सिफारिश की.

गुप्ता ने कहा कि छत्तीसगढ़ की ग्रामीण संस्कृति और विरासत को खोए बिना शहरों का विकास किया जाए. उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ की विरासत के अन्वेषण के लिए स्थलों के जीर्णाेद्धार और उनके रखरखाव का सुझाव देते हुए विरासत क्षेत्रों के निर्माण, कला और शिल्प बाजारों सहित सांस्कृतिक और वाणिज्यिक सुविधाओं के विकास पर भी जोर दिया.

प्रो. दीपेंद्र नाथ दास ने छत्तीसगढ़ में सतत शहरी बुनियादी ढांचे के विकास में आने वाली कठिनाइयों के बारे में चर्चा की. प्रो. दास ने केंद्र और राज्य प्रायोजित योजनाओं का विश्लेषण किया. उन्होंने शहरों में सेवा स्तर के बेंचमार्क में सुधार और राजस्व सृजन और वृद्धि के लिए विभिन्न उपायों का भी सुझाव दिया. उन्होंने सिफारिश की कि शहरों की स्थिरता और सतत विकास के लिए बुनियादी ढांचे की रखरखाव में आने वाली लागत को वसूल किया जाना चाहिए.

डॉ. पार्थ मुखोपाध्याय ने कहा कि छत्तीसगढ़ में शहरीकरण ज्यादातर राजमार्गों पर केंद्रित है और छत्तीसगढ़ के शहरों में रोजगार संरचना का व्यापक अंतर है. उन्होंने अपनी प्रस्तुति में यह बताया कि कस्बों को अधिक निवेश की आवश्यकता है क्योंकि छोटे शहरों में राजस्व क्षमता सीमित है. राज्य में छोटे शहरों और यूएलबी की वित्तीय बाधाओं के संदर्भ में, उन्होंने मौजूदा यूएलबी में आर्थिक माहौल में सुधार के लिए केन्द्र सरकार की शहरीकरण को बढ़ावा देने वाली योजनाओं का लाभ उठाने का सुझाव दिया.

उन्होंने कहा कि सभी आवश्यक नागरिक बुनियादी ढांचे और सेवाओं के साथ मलिन बस्तियों को रहने योग्य आवास में बदलने के लिए ओडिशा के जागा मिशन जैसे कार्यक्रम शुरू किये जाने चाहिए. उन्होंने कहा कि छोटे शहरों के परिवहन और क्षेत्रीय संपर्क के लिए छोटी बसों और अन्य परिवहन के साधनों का उपयोग किया जाना चाहिए.

 

 

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