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यहां जानें अहोई अष्टमी की पूजा का सही समय, व्रत के दौरान अवश्य पढ़ें ये व्रत कथा, संतान के दूर होंगे सभी कष्ट

आज यानि 28 अक्टूबर 2021, बृहस्पतिवार के दिन महिलाएं अपनी संतान की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं. इस दिन सूर्योदय के बाद से तारोदय तक महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं. इस दिन अपनी संतान के बेहतर स्वास्थ्य, खुशहाल जीवन और बेहतर भविष्य की कामना करते हुए अहोई माता के लिए व्रत रखती हैं. इस दिन माता पार्वती के अहोई स्वरूप की पूजा-अर्चना की जाती है. माता पार्वती के साथ गणेश जी महाराज की भी पूजा का विधान है. मान्यता है कि इस दिन पूजन के दौरान अहोई अष्टमी की कथा अवश्य पढ़नी-सुननी चाहिए. व्रत कथा सुनने और पढ़ने पर ही व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है. आइए जानते हैं पूजा का सही मुहूर्त और व्रत कथा.

अहोई अष्टमी पूजा मुहूर्त (Ahoi Ashtami Puja Muhurat 2021)

पूजा का शुभ मुहूर्त-  शाम 5 बजकर 39  मिनट से 6 बजकर 56 मिनट

अहोई अष्टमी व्रत कथा (Ahoi Ashtami Vrat Katha)

पौराणिक कथा के अनुसार एक नगर में साहूकार और उसके सात लड़के रहते थे. दिवाली से कुछ दिन पहले साहूकार की पत्नि घर की लीपाई-पोताई के लिए मिट्टी लेने खदान गई. कुदाल से मिट्टी खोदते समय उसे वहां एक सेह की मांद दिखाई दी. जो कि कुदाल से मिट्टी खोदते समय सेह के बच्चे को लग गई थी और सेह का बच्चा मर गया. सेह के बच्चे को मरता देख उसे बहुत दुःख हुआ. लेकिन वे कुछ कर भी नहीं सकती थी इसलिए पश्चाताप करती हुई घर लौट आई. कुछ दिनों बाद उसके एक बेटे का निधन हो गया. फिर अचानक ही उसका दूसरा बेटा और सालभर में तीसरा, चौथा…सातों बेटों की मौत हो गई.

साहूकार की पत्नी ने अपना दुख आस-पड़ोस की महिलाओं से बांटते हुए बताया कि उसने कभी जान-बूझकर कोई पाप नहीं किया. लेकिन, हां एक बार खदान से मिट्टी खोदते समय अनजाने में एक सेह के बच्चे की हत्या हो गई थी. उसके बाद से ही मेरे सातों पुत्रों की मृत्यु हो गई.

पड़ोसनों ने साहूकार की पत्नी से कहा कि यह बात बताकर तुम्हारा आधा पाप नष्ट हो गया है. उन्होंने साहूकार की पत्नी को सलाह दी कि तुम उसी अष्टमी को माता पार्वती की शरण लेकर सेह और सेह के बच्चों का चित्र बनाओ और उनकी आराधना करो. उनसे क्षमा मांगो. भगवान की कृपा से तुम्हारे सभी पाप नष्ट हो जाएगें. साहूकार की पत्नी ने ऐसा ही किया. कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को उपवास और पूजा-अर्चना की. इसके बाद वो हर साल नियमित रूप से ये व्रत रखने लगी. जिसके बाद से सात पुत्रों की प्राप्ति हुई.

 

 

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