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यमुना रोये, गंगा रोये, रोये सारी नदियां

दिल्ली में छठ पर्व पर सफेद फैन में नहाती महिलाओं को देखकर यमुना की दुर्दशा दुनिया के सामने आयी लेकिन देश का सर शर्म से नीचे नहीं झुका. देश के लिए यमुना हो या गंगा या कोई दूसरी नदी का विद्रुप स्वरूप शर्म की वजह बन ही नहीं पाया है क्योंकि सियासत ने शर्म की चादर कब की उतार कर फेंक दी है. देश की पावन नदियाँ अपावन होकर मर रहीं हैं, लेकिन उन्हें बचाने वाला को नहीं है.

यमुना में प्रदूषण कोई नया मुद्दा नहीं है, लेकिन नदियों का प्रदूषण न कभी सियासी मुद्दा बना और न नदियों से प्रेम करने वाले लोग इस मुद्दे को लेकर सत्ता बदल पाए. लोग अपने आपको नहीं बदल पा रहे हैं तो सत्ता क्या ख़ाक बदलेंगे. यमुना देश की सबसे पावन माने जाने वाली गंगा की सगी बहन है. गंगोत्री से निकलने वाली गंगा की सहेली यमुना 20,955 फीट ऊँचे ग्लेशियर से नीचे उतरकर मैदान में आती है जन कल्याण के लिए किन्तु जमीन पर आते ही यमुना का चीरहरण शुरू हो जाता है. 1376 किलोमीटर लम्बे आंचल वाली यमुना 141,399 वर्ग किलोमीटर लम्बे क्षेत्र को तृप्त करती है.

हमारे यहां नदियाँ पश्चिम की तरह सिर्फ नदियाँ नहीं बल्कि जीवट संज्ञा हैं. उनके जनक हैं,भाई-बहन हैं. जैसे यमुना सूर्य की ही पुत्री मानी जाती है, उसे यम की बहन कहा जाता है, लेकिन इसके बावजूद भूलोक में आकर यमुना हो गंगा अनाथ हो जाती हैं. यमुना देश के अनेक राज्यों की सीमाओं से होती हुई, अनेक सहायक नदियों से हाथ मिलाती हुई प्रयागराज में संगमित होती है. लेकिन यहां तक आते-आते उसकी जो दुर्दशा होती है उसे आप दिल्ली में देख सकते हैं. यमुना का सूर्य पुत्री होना या यम की बहन होना उसके किसी काम नहीं आता जबकि यमुना देश के 57 करोड़ लोगों की सेवा करती है. देश की राजधानी दिल्ली की पानी की 70 फीसदी जरूरत इसी यमुना से होती है फिर भी किसी को युना की फ़िक्र नहीं है.

दिल्ली में जैसा राजनीतिक प्रदूषण है वैसा ही प्रदूषण यमुना में दिखाई देता है. दिल्ली की सीमाओं में प्रवेश करते ही ड़स्रजनों, नाले यमुना में जहर घोलना शुरू कर देते हैं, ये जानते हुए भी की ये जहर दिल्ली में यमुना को ही नहीं मारता बल्कि दिल्ली में रहने वाले लोगों की जान का भी दुश्मन बनता है. हैरानी की बात ये है कि केवल दो फीसदी यमुना यानी करीब 22 किलोमीटर नदी ही दिल्ली से होकर गुजरती है, लेकिन यमुना में अस्सी फीसदी प्रदूषण का सबब यह गंदगी ही है। हर दिन राजधानी के 18 बड़े नाले 35 करोड़ लीटर से अधिक गंदा पानी और असंशोधित सीवेज सीधे नदी में डाला जा रहा है। यदि पूरी यमुना दिल्ली से गुजरती तो यमुना का क्या होता, आप कल्पना कर सकते हैं.

देश पर राज करने वाली दिल्ली ने यमुना को नावदान समझ रखा है. इस महानगर और आसपास का जितने भी तरह का अपशिष्ट हो सकता है पूरी अशिष्टता के साथ यमुना के गर्भ में भर दिया जा रहा है. दिल्ली की देखादेखी नोएडा, मथुरा, आगरा, इटावा, औरैया और फिरोजाबाद भी यमुना में जहर घोलने में पीछे नहीं रहना चाहते. यमुना सिसकती है, कराहती है, उसाँसें भरती है, आंसू बहाती है लेकिन किसी को कुछ न दिखाई देता है और न सुनाई देता है, और अंत में यही बीमार यमुना प्रयागराज में चुपचाप संगम में जाकर विलीन हो जाती है. यहाँ मृतप्राय यमुना को पूजने का ढोंग पूरा देश करता है.

यमुना देश के उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, हिमाचल, राजस्थान और मध्यप्रदेश से जैसे-तैसे बछर आगे बढ़ती है लेकिन अकेले दिल्ली में उसे घेरकर मार दिया जाता है, जबकि दिल्ली में उसका कैचमेंट क्षेत्र मात्र 0 .4 फीसदी है. भारतीय वेदो और पुराणों में यमुना को लेकर असंख्य कथाएं हैं, लेकिन आज उनका जिक्र करने का कोई औचित्य नहीं है क्योंकि हिंदुत्व का ज्वार पैदा करने वाली आज की सरकार तक यमुना को मरने से नहीं बचा पा रही. क्योंकि यमुना न राम मंदिर की तरह मतदाताओं के ध्रुवीकरण के काम आती है और न उसके नाम पर धार्मिक भवानों का शोषण किया जा सकता है.

अभिलेख बताते हैं कि बीसवीं सदी के आरम्भ में यानि १९०९ में यमुना का ज एकदम निर्मल था, उसके तटों पर पीले रंग की बालू निकलती थी. लेकिन आज यमुना देश की सर्वाधिक प्रदूषित नदी है. सरकार ने मरती यमुना को बचने के लिए सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद जापान से 700 करोड़ रूपये का ऋण भी लिया लेकिन यमुना को नहीं बचना था सो नहीं बची. यमुना को प्रदूषण को बचाने के लिए दिल्ली सरकार ने 1800 करोड़ की एक सीवेज योजना बनाई लेकिन सारा प्लान कागजी साबित हुआ. देश की जनता प्रदूषित यमुना को मरने से बचने के लिए संगठित होने के बजाय जहरीला फैन उगलती यमुना में ही खड़े होकर डूबते सूर्य की आराधना कर अपने-अपने घर लौट गयी और बेचारी यमुना देखती रह गयी.

देश का दुर्भाग्य ये है कि यहां न गंगा को भगीरथ मिल रहा है और न यमुना को उसके पिता सूर्य और भाई यम बचाने आ रहे हैं, गंगा की तरह यमुना भी पापियों के पाप धोते-धोते थक गयी है. आइये आप और हम यमुना को दम तोड़ते हुए चुपचाप देखें, उसे श्रृद्धांजलि अर्पित करें. उन तमाम छोटी-बड़ी नदियों का श्राद्ध भी करें जो अकाल मौत मर चुकी हैं, या मरती जा रहीं हैं. आप देखिये आपके आसपास कहीं न कहीं, कोई न कोई नदी छटपटाकर मर रही होगी. याद रखिये कि नदियां हमारी माँ हैं.
@राकेश अचल

 

 

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