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कही-सुनी (13-NOV 22):छत्तीसगढ़ में भाजपा के नेता-विधायक सकते में

रवि भोई की कलम से

कहते हैं गुजरात में विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण के बहाने चले सफाई अभियान से छत्तीसगढ़ के भाजपा नेता-विधायक भयभीत हैं। भाजपा हाईकमान ने गुजरात में कई पुराने चेहरों को घर बैठाकर नए और सामाजिक पकड़ वालों को जिस तरह उम्मीदवार बनाया है, उसके बाद छत्तीसगढ़ में भी कई पुराने चेहरों की टिकट कटने की संभावना प्रबल हो गई है। कहा जा रहा है कि गुजरात में जिस तरह हाईकमान के दबाव में बड़े -बड़े और दिग्गज नेताओं को चुनाव न लड़ने का ऐलान करना पड़ा, वैसा ही कुछ छत्तीसगढ़ में होने वाला है। माना जा रहा है भाजपा हाईकमान 2023 में हर हाल में राज्य में सत्ता में वापसी चाहती है। इसके लिए वह कोई भी कदम उठाने को तैयार है। 2019 के लोकसभा में यहां पार्टी प्रयोग कर चुकी है। 2018 के विधानसभा चुनाव में करारी हार का दर्द भाजपा हाईकमान अभी तक भुला नहीं सका है। छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव के बाद से विधानसभा चुनाव में चेहरे बदलने की खबर गर्म है। भाजपा हाईकमान ने बिलासपुर में आयोजित हुंकार रैली में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को भेजकर छत्तीसगढ़ में चुनाव प्रचार का शंखनाद कर ही दिया है।

ईडी के अगले कदम का इंतजार

कारोबारी सूर्यकांत तिवारी, निलंबित आईएएस समीर विश्नोई समेत चार लोगों को मनी लांड्रिंग केस में जेल भेजे जाने के बाद लोगों को अब ईडी के अगले कदम का इंतजार है। कहते हैं सूर्यकांत तिवारी की डायरी से ईडी को कई राज मिल गए हैं। डायरी के आधार पर ईडी ने पूछताछ के लिए कोयला के धंधे से जुड़े व्यापारियों को समन जारी कर बुलाया। डायरी के चलते ही कई उद्योगपति और कारोबारी ईडी के निशाने पर आ गए हैं। चर्चा है कि उद्योगपतियों और कारोबारियों के लिए दोधारी तलवार में चलने जैसा हो गया है। कारोबारी सूर्यकांत तिवारी से संबंध और संपर्क से वे न तो इकरार कर पा रहे हैं और न ही नकार पा रहे हैं। इसके चलते राज्य के कई प्रतिष्ठित कारोबारियों को घंटों ईडी के कब्जे में रहना पड़ा। कहा जा रहा है कि आने वाले दिनों में कुछ और कारोबारियों को ईडी पूछताछ के लिए समन भेज सकता है।

भानुप्रतापपुर के लिए प्रत्याशी की घोषणा अगले हफ्ते

माना जा रहा है कि भानुप्रतापपुर विधानसभा उपचुनाव के लिए कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दल सोमवार या मंगलवार तक अपने-अपने प्रत्याशी के नाम की घोषणा कर देंगे। कहा जा रहा है कांग्रेस की तरफ से सावित्री मंडावी का नाम लगभग तय है। भाजपा में ब्रम्हानंद नेताम या गंभीर सिंह में कश्मकश है। भाजपा प्रदेश चुनाव समिति की बैठक शनिवार को हुई। इस बैठक में राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिवप्रकाश भी शामिल हुए। ‘आप’ यहां नए चेहरे को उतार सकती है। आरक्षण के मुद्दे पर आदिवासी समाज की नाराजगी के बीच हो रहे उपचुनाव में कई दांवपेंच भी नजर आ रहे हैं। आदिवासियों के लिए आरक्षित इस सीट में गोंडवाना समाज गांव-गांव से नामांकन भरने का आव्हान कर रहा है, वहीँ भानुप्रतापपुर को जिला बनाने की भी मांग उठ रही है। उपचुनाव के चलते जिला बने खैरागढ़ की तरह भानुप्रतापपुर की किस्मत खुलती है या नहीं, यह समय बताएगा। चुनाव परिणाम कुछ भी निकले ,भाजपा यहां पूरी ताकत लगाएगी। कहा जा रहा है कि भानुप्रतापपुर उपचुनाव के चलते ही सरकार ने विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर राज्य में आदिवासियों के लिए आरक्षण 32 फीसदी का दांव चलने जा रही है। भानुप्रतापपुर उपचुनाव के लिए मतदान पांच दिसंबर को है और विधानसभा का विशेष सत्र एक और दो दिसंबर को है।

अगला मुख्य सूचना आयुक्त कौन ?

अब चर्चा चल पड़ी है कि छत्तीसगढ़ का अगला मुख्य सूचना आयुक्त कौन होगा ? रिटायर्ड आईएएस एम के राउत 11 नवंबर को मुख्य सूचना आयुक्त के पद से रिटायर हो गए। सूचना आयुक्त अशोक अग्रवाल का कार्यकाल भी 22 नवंबर को समाप्त हो जाएगा। इसके बाद सूचना आयोग में पत्रकार बिरादरी के मनोज त्रिवेदी और धनवेन्द्र जायसवाल सूचना आयुक्त के तौर पर रहेंगे। कहा जा रहा है नए मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति तक दोनों हो आयोग को चलाएंगे। माना जा रहा है कि नए मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति जल्दी नहीं होनी है। अब सरकार पर निर्भर है कि मुख्य सूचना आयुक्त किसी रिटायर्ड आईएएस को बनाती है या आईपीएस अथवा रिटायर्ड हाईकोर्ट जज को। कई राज्यों में रिटायर जज और आईपीएस मुख्य सूचना आयुक्त रह चुके हैं। कुछ राज्यों में अभी हैं , लेकिन छत्तीसगढ़ में रिटायर्ड आईएएस ही अब तक मुख्य सूचना आयुक्त रहे हैं। पीसीसीएफ के पद से रिटायर होने के बाद अभी राकेश चतुर्वेदी को कोई पद नहीं मिला है। उम्मीद की जा रही है कि उन्हें सरकार सूचना आयोग में कोई पद दे सकती है।

वकील साहब का जमीन पर जोर

शहर के एक प्रतिष्ठित वकील आजकल जमीन के खेल में दो-दो हाथ करने के कारण चर्चा में हैं। कहते हैं कुछ साल पहले तक वकालत में इनका नाम चलता था। इनको वकालत का धंधा विरासत में मिला था। वकालत में इनकी पुरानी पीढ़ी का नाम चलता था। पर ये वकील साहब पुरानी पीढ़ी की साख को छोड़कर वकालत से ज्यादा जमीन के कारोबार में लग गए हैं। कहते हैं वकील साहब की नजर विवादस्पद जमीनों पर ज्यादा रहती है। उन्हें जमीनों की अल्टी-पल्टी में भी सिद्धहस्त माना जाता है। खबर है कि वकील साहब को साख से ज्यादा पैसे का मोह हो चला है।

जलवेदार जनपद सीईओ

कहते हैं जांजगीर-चांपा जिले के जनपद की सीईओ के कामकाज का तरीका और जलवे पूरे इलाके में चर्चा का विषय है। कहा जाता है जनपद की सीईओ अपने हिसाब से हांकती है और नेतागिरी में भी माहिर है। एक सरपंच को सरपंच संघ का अध्यक्ष बनवा दिया और उस सरपंच की गाड़ी को अपने लिए इस्तेमाल के लिए किराये पर ले लिया। खबर है कि इसके एवज में वह सरकारी खजाने से करीब 22 हजार मासिक किराये देती है और करीब 18 हजार रुपए डीजल पर खर्च करती है। लोगों का कहना है यह सब कागजों पर भुगतान होता है। सीईओ से नाराज लोगों ने शनिवार को भेंट-मुलाक़ात कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से लंबी-चौड़ी शिकायत की है। अब देखते हैं सालों से उस जनपद में जमे सीईओ का बाल बांका होता है या नहीं। खबर है कि सीईओ को अपनी शिकायत का आभास हो गया था, जिसके चलते वह छुट्टी पर चली गई।

केबल संचालक को सरकारी सुरक्षा

एक जमाना था, जब अतिविशिष्ठ और प्रतिष्ठित लोगों को ही सरकारी सुरक्षा मिलती थी, लेकिन आजकल सरकारी सुरक्षा फैशन हो गया है। कोई भी अपनी जान का खतरा बताकर सरकारी सुरक्षा लेने की जुगाड़ में रहता है। पहले कुछ लोग निजी सुरक्षा गार्ड रख लिया करते थे, लेकिन निजी गार्ड से वह मान-प्रतिष्ठा प्रदर्शित नहीं होती, जितनी सरकारी गार्ड से होती है। कहते हैं प्रतिष्ठा प्रदर्शित करने के लिए एक केबल संचालक ने भी येन-केन प्रकारेण सरकारी सुरक्षा हासिल कर ली है। आमतौर पर केबल के धंधे को बाहुबल वाला काम माना जाता है। बाहुबलियों को सरकारी सुरक्षा मिल जाय, तो फिर क्या कहने ? उनकी तो चांदी ही चांदी है।

कलेक्टरों पर गाज की अटकलें

कहते हैं इस महीने कुछ जिलों के कलेक्टरों पर गाज गिर सकती है। नए जिले सारंगढ़ के कलेक्टर को हटाकर जिस तरह नई पदस्थापना की, उसको देखते हुए सरकार चर्चित कलेक्टरों को बदल सकती है। रायगढ़ की कलेक्टर रानू साहू फिलहाल ईडी के निशाने पर है, ऐसे में सरकार उन्हें वहीँ बनाए रखती है या बदलती है, इस पर भी लोगों की नजर है। लंबे समय से कलेक्ट्री कर रहे अफसरों में फेरबदल की संभावना व्यक्त की जा रही है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार और पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक हैं। )
(डिस्क्लेमर – कुछ न्यूज पोर्टल इस कालम का इस्तेमाल कर रहे हैं। सभी से आग्रह है कि तथ्यों से छेड़छाड़ न करें। कोई न्यूज पोर्टल कोई बदलाव करता है, तो लेखक उसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। )
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