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कृषि कानूनों पर सरकार का दावा- बार-बार किसानों को समझाने की कोशिश की, पीएम मोदी ने 25 से ज्यादा बार जिक्र किया

नई दिल्ली: आंदोलन कर रहे किसानों की तरफ से कई बार ये कहा गया कि सरकार ने नए कृषि कानूनों को बनाने से पहले उनकी सलाह नहीं ली, उनसे बात नहीं की. सरकार का दावा है कि इन कृषि सुधार कानूनों को लेकर सरकार ने बहुत पहले से ही चर्चा शुरू कर दी थी, इस चर्चा में कृषि क्षेत्र से जुड़े तमाम लोगों को शामिल किया गया. ये कैसे हुआ और सरकार की तरफ से क्या-क्या कदम उठाए गए, यहां बताते हैं.

केंद्र के जिन कृषि कानूनों के खिलाफ किसान सड़कों पर है, उन्हें लेकर सरकार ने एक बार नहीं बार-बार किसानों को समझाने की कोशिश की है, अगर ये कहा जाए कि पिछले कुछ महीनों में पूरी सरकार किसानों तक पहुंचने और उन्हें समझाने में लगी है तो कुछ गलत नहीं होगा.

क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी खुद लगातार किसानों को भरोसा दिला रहे हैं कि नए कानून उनके हित में हैं. गृह मंत्री अमित शाह ने कई किसान नेताओं से मुलाकात की. केंद्र सरकार के तीन मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, पीयूष गोयल और सोम प्रकाश लगातार किसान नेताओं से बात कर रहे हैं. किसानों की तरफ से बातचीत का रास्ता छोड़ने के बाद भी कृषि मंत्री पिछले दो दिनों में दो बार किसानों को बातचीत का न्योता दे चुके हैं.

कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने कहा, सरकार चाहती है कि किसान आंदोलन का रास्ता छोड़ बातचीत के जरिए मामले को हल करने की कोशिश करे. जब ये कानून नहीं बने थे तब भी सरकार लगातार किसानों को ये समझाने में लगी थी कि नए कानूनों में किसानों के खिलाफ कोई बात नहीं है, खुद प्रधानमंत्री मोदी इन कानूनों को लेकर हर भ्रम को दूर करते रहे हैं.

वहीं कृषि कानूनों पर पीएम मोदी ने कहा है कि यह विधेयक किसानों के लिए रक्षा कवच बन कर आए हैं. साथियों नए कृषि सुधारों से किसानों को नए विकल्प और नए कानूनी संरक्षण ही तो दिए गए हैं. पहले तो मंडी के बाहर हुए लेनदेन ही गैरकानूनी माने जाते थे. ऐसे में छोटे किसानों के साथ अक्सर धोखा होता था, विवाद होते थे. क्योंकि छोटा किसान तो मंडी पहुंच ही नहीं पाता था. अब ऐसा नहीं है अब छोटे से छोटा किसान भी मंडी से बाहर हुए हर सौदे को लेकर कानूनी कार्रवाई कर सकता है.

अलग अलग जगहों पर दिए अपने भाषणों से लेकर मन की बात जैसे कार्यक्रम में पीएम मोदी ने बार बार किसानों को समझाने की कोशिश की. बीते दिनों हुए कृषि सुधारों ने किसानों के लिए नई संभावनाओं के द्वार भी खोले हैं. कृषि सुधार कानूनों के एलान के बाद से प्रधानमंत्री मोदी अलग अलग मंचों पर 25 से ज्यादा बार इसके बारे में बात कर चुके हैं. यानी हर हफ्ते कम से एक बार प्रधानमंत्री मोदी ने इन कानूनों के बारे में बात की है.

15 अगस्त को लालकिले के प्राचीर से लेकर बिहार चुनाव तक पीएम मोदी ने इन कानूनों के बारे में बताया. प्रधानमंत्री ने अपने भाषणों में तीनों कृषि कानूनों के हर पहलू को समझाया. कानूनों को लेकर किसानों की आशंकाओं को दूर करने की कोशिश की.

वहीं कृषि मंत्री और कृषि मंत्रालय की तरफ से ये कोशिश कानून बनाने की प्रक्रिया के समय से ही शुरू हो गयी थी. कृषि मंत्रालय ने इन कानूनों को लेकर कृषि क्षेत्र के जानकारों से लेकर विभाग के पूर्व अधिकारियों से व्यापक चर्चा की, कई किसानों और मंडी के अधिकारियों से भी फीडबैक लिया, फॉर्मर प्रोड्यूसर ऑर्गनाइजेशन से लेकर कई किसान संगठनों से सुझाव लिए. कृषि मंत्री ने कहा, ‘हमने बहुत सोच समझ कर ये कानून बनाया.’

कृषि कानूनों को अमली जामा पहनाने से पहले ही सरकार ने किसानों तक पहुंचने की कोशिशें शुरू कर दी थीं, छोटे-छोटे और दूर दराज के किसानों को इन कानूनों और कृषि क्षेत्र में सुधार की सही जानकारी देने के लिए सरकार की तरफ से वेबिनार और ट्रेनिंग सेशन्स का आयोजन किया गया

कानून आने के 4 महीने पहले यानी जून में ही केंद्र सरकार की तरफ से 708 वेबिनार और ट्रेनिंग सेशंस का आयोजन किया गया, इनके जरिए सरकार ने 21 हजार 231 किसानों को नए कानूनों के बारे में जानकारी दी. इसी तरह जुलाई में 873 वेबिनार और ट्रेनिंग सेशन के माध्यम से 26 हजार 196 किसानों को जानकारी दी गयी. अगस्त में 852 सेशन हुए, सितंबर में 840 सेशन.

अक्टूबर में यानी कानून आने के बाद 36 हजार 102 वेबिनार और ट्रेनिंग सेशन हुए, उनके जरिए 27 लाख 7 हजार 977 किसानों को कानूनों के बारे में बताया गया. नवंबर में 64 लाख से ज्यादा किसानों के लिए 97 हजार 679 सेशन हुए. इस तरह पिछले 6 महीनों में सरकार ने 1 लाख 37 हजार 54 वेबिनार और ट्रेनिंग सेशन कर के 92 लाख से ज्यादा किसानों तक अपनी बात पहुंचाई.

इसके अलावा अक्टूबर के महीने में किसानों को कानूनों की जानकारी से जुड़े 2.23 करोड़ SMS भी भेजे गए. सरकार ये सब सिर्फ इसलिए कर रही है जिससे किसी भी किसान के मन में कोई भ्रम न रहे, कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने खुद कई किसान समूहों से बात की और उसके बाद आंदोलनकारी किसान नेताओं के साथ हुई हर बैठक में शामिल रहे.

अब सवाल है कि जब सरकार कानून बनाने की प्रक्रिया शुरू होने से लेकर अब तक लगातार किसानों के संपर्क में है, उनके सुझावों को सुन रही हैं, सुझावों के आधार पर कानून में बदलाव के लिए भी तैयार है तो फिर किसान संगठनों की जिद और अड़ियल रवैए का मकसद क्या है?

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