कोरोना संक्रमण ने भारतीय परिवारों का कर्ज का बोझ बढ़ा दिया है. आरबीआई के ताजा आंकड़ों के मुताबिक चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में भारतीय परिवारों पर कर्ज बढ़ कर जीडीपी के 37.1 फीसदी तक पहुंच गया. वहीं इस दौरान परिवार की बचत घट कर 10.4 फीसदी के नीचे चली आई. आरबीआई ने कहा कि महामारी की वजह से लाखों लोग बेरोजगार हुए हैं, जबकि बड़ी तादाद में लोगों के वेतन में कटौती हुई है. इस वजह से लोगों को अधिक कर्ज लेना पड़ा है या फिर उन्होंने अपनी बचत से इन खर्चों को पूरा किया है. आंकड़ों के मुताबिक कुल कर्ज बाजार में परिवार की हिस्सेदारी सालाना आधार पर 1.30 फीसदी बढ़ कर 51.5 फीसदी पर पहुंच गई.
कोरोना ने लोगों की बचत पर भी करारी चोट गई है. देश में घरेलू बचत दर काफी घट गई है. देश में प्रति परिवार अब बचत करने की रफ्तार धीमी हो गई है. घरेलू बचत दर अब घट कर 10.4 फीसदी के प्री-कोविड स्तर पर आ गई है. वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में यह 21 फीसदी थी लेकिन अब दूसरी तिमाही में घट कर लगभग आधी यानी 10.4 फीसदी पर आ गई.
आरबीआई के एक आर्टिकल में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में कोविड की वजह से लोगों की घरेलू बचत काफी बढ़ गई थी. हाउसहोल्ड डिपोजिट और उधारी में भी बढ़ोतरी हुई थी. हालांकि करेंसी और म्यूचुअल फंड में उनकी होल्डिंग घटी थी. आरबीआई के मुताबिक जैसे-जैसे खपत बढ़ रही है वैसे-वैसे लोगों की बचत में कमी आ रही है. लोगों की ओर से बैंकों और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों से कर्ज उठाने की वजह से परिवारों में बचत में गिरावट आई है.
घरेलू खपत में बढ़ोतरी के और खुले खर्च में बढ़ोतरी के साथ ही बचत दर में गिरावट आने लगी है. आरबीआई का कहना है कोरोना काल में भले ही घरेलू बचत दर में बढ़ोतरी हुई है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि लोग अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए बचत कर रहे हैं. कोरोना काल में बेरोजगारी बढ़ने और आमदनी की कमी की वजह से लोगों की खर्च करने की क्षमता घटी है. इसलिए लोगों के पास ज्यादा पैसा बचा है. इसलिए घरेलू बचत दर में बढ़त दिख रही है. आरबीआई के एक आर्टिकल में प्राइवेटाइजेशन , एसेट मोनेटाइजेशन, इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए लंबे समय तक फाइनेंशियल फंडिंग पर नई पहल और बैंकिंग प्रणाली में फंसे हुए कर्ज (एनपीए) की सफाई और मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र को बढ़ावा देने जैसे सुधार के उपायों को मध्यावधि में वृद्धि को गति मिलेगी.