जगदलपुर। कांकेर जिले में रहने वाले अजय ने बचपन से ही अपनी विरासत में सीखे कला को आगे बढ़ाने का फैसला कर लिया था, जिसके बाद अपने पिता व माता से सीखे कलाओं को जेल में बंद कैदियों को सीखने के साथ ही उन्हें जिंदगी जीने की राह दिखाई।जिसका परिणाम यह निकला की बुधवार को दिल्ली के राष्ट्रपति भवन में आयोजित कार्यक्रम में शामिल होने के साथ ही राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने के द्वारा उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जिसके बाद पूरे कांकेर में खुशी की लहर छा गई.
अजय मंडावी के बारे में परिजनों ने बताया की 2005 से जेल में बंद कैदियों को काष्ठ कला सीखा रहे अजय मंडावी कांकेर शहर के निवासी है। 400 से अधिक कैदियों को उन्होंने काष्ठ कला सिखाई आत्म निर्भर बनाया, लकड़ी पर कलाकारी करते हुए इन्होंने बाइबल,भगवत गीता, राष्ट्रगीत, राष्ट्रगान, प्रसिद्ध कवियों की रचनाएं को उकेरने का काम किया, अजय कुमार का पूरा परिवार आज किसी न किसी कला से जुड़ा हुआ है। कहीं न कहीं उन्हें यह कला विरासत में मिली है। बताया जाता है कि उनके पिता मिट्टी की मूर्तियां बनाने का काम करते थे जबकि उनकी मां सरोज मंडावी पेंटिंग का काम किया करती थीं, इतना ही नहीं उनके भाई विजय मंडावी एक अच्छे राजनेता व मंच संचालक भी हैं, कांकेर के जेल में 200 से अधिक बंदी आज काष्ठ कला में काफी हृद तक पारंगत हो चुके हैं जो कि अजय मंडावी की मेहनत है।
आज उस क्षेत्र के बंदी भी इस बात को मानते हैं कि यह कला नहीं बल्कि एक तपस्या है, काष्ठ कला ने बंदी नक्सलियों के विचारों को पूरी तरीके से बदल कर रख दिया है। जिसके चलते भारत के राष्ट्रपति श्रीमती द्रोपदी मुर्मुने ने 5 अप्रैल को राष्ट्रपति भवन नई दिल्ली में दूसरे नागरिक अलंकरण समारोह में वर्ष 2023 के लिए 55 पद्म पुरस्कार प्रदान किए।
जिनमे कांकेर के अजय मंडावी को पद्रश्री सम्मान से नवाजा गया है। बताया जा रहा अजय कुमार अभी दिल्ली में ही है, और 8 अप्रैल को कांकेर लौटेंगे,