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BJP का UCC ड्राफ्ट तैयार : एक से अधिक शादी करने पर जेल, मुस्लिम लड़कियों को भी मिला तलाक देने का अधिकार

समान नागरिक संहिता का मसौदा तय करने के लिए गठित कमेटी ने शुक्रवार को सीएम पुष्कर सिंह धामी को अपनी रिपोर्ट सौंप दी। कमेटी ने पत्नी को तलाक के लिए पति के समान अधिकार देने की सिफारिश की है।

सूत्रों के अनुसार, कमेटी ने पति-पत्नी के लिए तलाक के कारण और आधार एक समान करने की सिफारिश की है। वहीं, कमेटी की अन्य सिफारिशोें में बहु विवाह पर रोक, विवाह पंजीकरण अनिवार्य करने, सभी धर्मों की लड़कियों के लिए विवाह की न्यूनतम उम्र 18 साल करने के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहने के लिए स्वघोषणा शामिल हैं। 5 फरवरी से होने वाले विधानसभा सत्र में सरकार यूसीसी बिल पेश करेगी।

बहु विवाह पर रोक

कमेटी ने पति या पत्नी के रहते दूसरी शादी यानि बहु विवाह पर रोक लगाने की सिफारिश की है। सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय के मुताबिक अभी मुस्लिम पर्सनल लॉ में बहुविवाह करने की छूट है लेकिन अन्य धर्मो में एक पति-एक पत्नी का नियम बहुत कड़ाई से लागू है। बांझपन या नपुंसकता जैसा उचित कारण होने पर भी हिंदू, ईसाई, पारसी के लिए दूसरा विवाह अपराध है, जिसके लिए सात वर्ष की सजा हो सकती है।

लिव इन रिलेशनशिप

कमेटी ने लिव इन रिलेशनशिप को भी नियमित करने की सिफारिश की है। जोड़ों को लिव इन में रहने की स्वघोषणा करनी पड़ेगी, यदि लड़की या लड़का शादी की उम्र से पहले लिव इन में रहते हैं तो अभिभावकों को सूचना देनी होगी। जन सुनवाई के दौरान युवाओं ने लिव इन को नियमित करने की मांग उठाई थी। खासकर लिव इन से पैदा होने वाले बच्चे के अधिकार इससे सुरक्षित रह सकेंगे। साथ ही लिव इन की स्वघोषणा से कानूनी वाद भी कम हो सकेंगे।

यूसीसी कमेटी ने पति-पत्नी के लिए तलाक के कारण और आधार एक समान करने की भी सिफारिश की है। अभी पति जिस आधार पर तलाक ले सकता है, उसी आधार पर अब पत्नी भी तलाक की मांग कर सकेगी।

सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय के मुताबिक तीन तलाक अवैध घोषित होने के बावजूद मुस्लिम समाज की कुछ प्रथाओं में तलाक का आधार बताने की बाध्यता नहीं है। अन्य धर्मों में केवल न्यायालय के माध्यम से ही विवाह-विच्छेद किया जा सकता है। हिंदू ईसाई पारसी दंपति आपसी सहमति से भी मौखिक तलाक का अधिकार नहीं है। व्याभिचार के आधार पर कुछ समुदायों में मर्द पत्नी को तलाक दे सकता है लेकिन इस आधार महिला तलाक की मांग नहीं कर सकती। कम उम्र में विवाह के आधार पर हिंदू धर्म में विवाह विच्छेद हो सकता है लेकिन पारसी, ईसाई और मुस्लिम में संभव नहीं है। कमेटी की प्रमुख सिफारिशों में बहु विवाह पर रोक, विवाह पंजीकरण अनिवार्य किए जाने, सभी धर्मों की लड़कियों के लिए विवाह की न्यूनतम उम्र 18 साल करने के साथ ही लिव इन रिलेशनशिप में रहने के लिए स्वघोषणा शामिल है।

विवाह पंजीकरण अनिवार्य होगा

सूत्रों के अनुसार, कमेटी ने सभी के लिए विवाह पंजीकरण भी अनिवार्य करने पर जोर दिया है, यानि विवाह के तय समय के भीतर इसका पंजीकरण करवाना होगा। इससे उत्तराधिकार, विरासत जैसे विवादों का खुद समाधान का रास्ता खुल जाएगा। विवाह पंजीकरण का प्रावधान हालांकि पहले से ही है, अब इसे अनिवार्य कर दिया जाएगा।

लड़कियों की शादी 18 वर्ष से पहले नहीं

कमेटी ने लड़कियों के लिए विवाह की उम्र 18 करने और लड़कों के लिए 21 वर्ष यथावत रखने की सिफारिश की है। जनसुनवाई में कमेटी के सामने लड़कियों और महिला संगठनों ने उच्च शिक्षा की जरूरत को देखते हुए लड़कियों की विवाह की उम्र बढ़ाकर लड़कों के समान 21 वर्ष करने की मांग की थी। अलबत्ता अब सभी धर्मों की लड़कियों के लिए विवाह की न्यूनतम उम्र 18 साल हो जाएगी। अभी मुस्लिम लड़कियों की वयस्कता की उम्र निर्धारित नहीं है, माहवारी शुरू होने पर लड़की को निकाह योग्य मान लिया जाता है। इस प्रावधान के लागू होने से बाल विवाह खत्म हो सकता है।

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