० साल्ही मोड़ पर एकजुट होकर आगे की रणनीति के लिए की चर्चा
अम्बिकापुर/रायपुर।जिले के उदयपुर तहसील में स्थित राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (आरआरवीयूएनएल) की परसा ईस्ट कांता बासन (पीईकेबी) कोयला खदान में उत्पादन बंद होने की कगार पर है। जिसे देख खदान में नौकरी तथा अन्य रोजगार कर रहे स्थानीय ग्रामीणों को अब एक बार फिर रोजगार जाने चिंता सताने लगी है। जिसकी बहाली के लिए उन्होंने एक बार फिर आंदोलन करने का मन बना लिया है। ग्राम परसा, बासन, साल्ही, फतेहपुर, घाटबर्रा, तारा, जनार्दनपुर सहित नौ ग्रामों के ग्रामीणों ने आज साल्ही मोड़ पर एकत्रित होकर आगे की रणनीति पर चर्चा की। उन्होंने खदान चालू रखने के लिए शासन और प्रशासन से मांग की है, वहीं इसके पूरी न होने पर अपने आंदोलन को उग्र करने की चेतावनी भी दी है।
ग्रामीणों ने कहा की पिछले एक साल से हम सभी ने पीईकेबी खदान के विस्तारण के लिए चाही गई जरूरी जमीन उपलब्ध कराने के लिए राजस्थान और छत्तीसगढ़ राज्य के मुख्यमंत्रीयों सहित शासन और प्रशासन से मदद की गुहार लगा रहे हैं लेकिन इसकी सुनवाई अब तक नहीं हुई है। नतीजतन अब हमारे सामने नौकरी और रोजगार का संकट खड़ा हो चला है। आंदोलन में शामिल ग्राम जनार्दनपुर के विनोद पोंर्ते सहित अन्य ग्रामीण जो पीईकेबी खदान में कार्यरत हैं उनकी ठेका कंपनीयों ने अपनी मशीनों की शिफ्टिंग शुरू कर दी है। अब चूंकि मशीन ही नहीं रहेगी तो जाहीर सी बात है कि विनोद सहित उसके अन्य साथियों को अपनी नौकरी जारी रखने की चिंता तो होगी ही। काशीराम जिन्होंने अपनी जमीन देकर खदान में नौकरी कर अपने परिवार के साथ खुशी खुशी जीवन यापन कर रहे थे अब उनको भी नौकरी की चिंता सताने लगी है। काशीराम बताते हैं कि, “मैंने अपनी जमीन इस खदान के लिए दी थी और इसके बदले में मुझे बासन में घर तथा खदान में नौकरी मिली है। खदान कम से कम 30 वर्षों तक चलनी है, अब अगर खदान आगे नहीं चलेगी तो मैं अपने परिवार का पालन पोषण कैसे करूंगा, मैं तो अब कोई अन्य रोजगार भी नहीं कर पाऊँगा हूँ।“
दरअसल छत्तीसगढ़ में सरगुजा जिले के उदयपुर विकास खण्ड में राजस्थान के आरआरवीयूएनएल को पीईकेबी कोयला खदान का आवंटन 2007 में हुआ था में कोयले का उत्पादन विगत दस वर्षों से किया जा रहा है। इस खदान के प्रारंभ होने से खदान प्रभावित परिवारों के अलावा आसपास के स्थानीय लोगों की रोजी रोटी चलती है। वहीं क्षेत्र में जरूरी मूलभूत सुविधाओं के लिए कई तरह के विकासात्मक कार्य भी संचालित हैं। इसके बावजूद प्रदेश में किसी न किसी के निज स्वार्थ और राजनीतिकरण की वजह से खदान के लिए चाही गई जमीन शासन प्रशासन द्वारा अभी तक उपलब्ध नहीं करायी जा सकी है। जिसके परिणाम स्वरूप अब कोल माइनिंग कंपनी द्वारा ठेका कंपनियों के साथ साथ कर्मचारियों की छटनी भी शुरू कर दी गई है। इसका खामियाजा स्थानीयों को भुगतना पड़ रहा है।
घाटबर्रा के रमेश यादव जो की खदान में पिछले पाँच सालों से नौकरी कर रहे हैं ने बताया कि, “चुंकि खदान के सुचारू रूप से संचालन एवं विस्तारण के लिए जमीन की आवश्यकता है, किन्तु कुछ एनजीओ द्वारा पैसे के बल पर देश विदेश की मीडिया को यहां लाकर गलत जानकारी देकर हमारी इस एकमात्र परियोजना को बंद कराने की कोशिशें की जा रही हैं। जबकि सच्चाई यह है कि यदि समय पर जमीन उपल्ब्ध नहीं करवाई गई तो हजारों लोगों की रोजी-रोटी छिन जायेगी एवं चल रहे विकास कार्य भी ठप हो जाएंगे।“
“खदान के बंद होने से कंपनी द्वारा उपलब्ध कराई जा रही सभी निःशुल्क सुविधायें बंद हो जायेंगी, जिससे हमारे परिवार को शिक्षा, स्वास्थ्य व पेयजल जैसे संकटो का सामना करना पड़ेगा। इसलिए हम सभी ग्रामवासी आज परसा ईस्ट केते बासेन कोयला खदान के संचालन हेतु तत्काल जमीन उपलब्ध करवाने एवं परसा खदान जल्द शुरु कराने हेतु छत्तीसगढ़ प्रदेश तथा राजस्थान राज्य के मुख्यमंत्री जी से मांग की है ताकि पुरानी खदान से हमारी नौकरी चलती रहे। वहीं नए खदान के प्रभावितों को जल्द से जल्द नोकरी मिले।“ ग्राम तारा के शिवरतन सिंह ने कहा।
गौरतलब है कि राजस्थान सरकार की पीईकेबी कोल ब्लॉक को केंद्र तथा राज्य सरकार की सभी जरूरी अनुमति मिलने के बावजूद राज्य के वानिकी विभाग द्वारा खदान के लिए जरूरी जमीन उपलब्ध नहीं कराया जा सका है। इसका कारण प्रदेश सरकार की कोई मजबूरी है या फिर चुनावी वर्ष की कोई रणनीति? लेकिन ग्रामीणों की मंसा अब अपनी नौकरी बचाने के लिए आर पार की लड़ाई करने की हो चुकी है।