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कही-सुनी (23 JUNE 24): छत्तीसगढ़ की राजनीति के केंद्र में बिलासपुर

रवि भोई की कलम से

कहा जा रहा है कि बिलासपुर छत्तीसगढ़ की राजनीति का अब केंद्र बिंदु बन गया है। बिलासपुर के सांसद तोखन साहू केंद्र में मंत्री हैं, तो बिलासपुर जिले के लोरमी से विधायक अरुण साव राज्य में उप मुख्यमंत्री हैं। दोनों साहू समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं। अब प्रदेश की राजनीति में तोखन साहू और अरुण साव साहू समाज के दो बड़े नेता माने जाने लगे हैं। प्रदेश भाजपा की राजनीति में अब तक बिलासपुर से बड़े नेताओं में अमर अग्रवाल और धरमलाल कौशिक की गिनती होती थी। अमर अग्रवाल तक़रीबन डेढ़ दशक तक राज्य में मंत्री रहे हैं। जनसंघ के जमाने के नेता स्व. लखीराम अग्रवाल के बेटे होने के कारण अमर अग्रवाल की पहचान अलग है। अब वे केवल विधायक हैं। इस कारण प्रोटोकॉल में तोखन साहू और अरुण साव से नीचे हो गए हैं, जबकि माना जाता है कि तोखन साहू की जीत में बड़ी भूमिका अमर अग्रवाल की है। वे बिलासपुर लोकसभा के क्लस्टर प्रभारी थे।बिलासपुर के नेताओं में धरमलाल कौशिक भी बड़ा नाम हुआ करता था। अब वे विधायक ही हैं। धरमलाल कौशिक विधानसभा अध्यक्ष, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष रहे हैं।

रायपुर दक्षिण के लिए उपचुनाव कब ?

बृजमोहन अग्रवाल के इस्तीफे के बाद रायपुर दक्षिण विधानसभा सीट को रिक्त घोषित कर दिया गया है। विधानसभा सचिवालय ने सीट रिक्त होने की सूचना चुनाव आयोग को भेज दिया है। अब चुनाव तारीख की घोषणा आयोग को करनी है। माना जा रहा है कि सितंबर-अक्टूबर में रायपुर दक्षिण के लिए उपचुनाव हो सकते हैं। भले रायपुर दक्षिण के चुनाव के लिए अभी तारीख की घोषणा नहीं हुई है,लेकिन भाजपा में दावेदारों की होड़ लग गई है। पूर्व सांसद सुनील सोनी के साथ भाजपा के कई पूर्व विधायक और भाजपा के वरिष्ठ नेता दक्षिण से भाग्य आजमाना चाहते हैं। भाजपा के कई नेता टिकट की जुगाड़ में लग गए हैं। कहते हैं भाजपा से जहां रायपुर दक्षिण में चुनाव लड़ने वालों की होड़ लगी है, वहीं कांग्रेस में केवल दो ही नाम चल रहे हैं। कुछ लोगों का कहना है कि बृजमोहन अग्रवाल दक्षिण से लगातार आठ बार विधायक रहे हैं, ऐसे में उनसे प्रत्याशी चयन पर राय ली जा सकती है। बृजमोहन अग्रवाल अपने परिवार के किसी सदस्य या विश्वासपात्र व्यक्ति का नाम सुझा सकते हैं।

अजय सिंह पर बिलासपुर के नेता की कृपा

सरकार ने 1983 बैच के रिटायर्ड आईएएस अजय सिंह को छत्तीसगढ़ राज्य का निर्वाचन आयुक्त बना दिया है। अजय सिंह राज्य के मुख्य सचिव भी रह चुके हैं और अभी छत्तीसगढ़ योजना आयोग के उपाध्यक्ष हैं। अजय सिंह मूलतः छत्तीसगढ़ के निवासी हैं और मुंगेली जिले के एक गांव के रहने वाले हैं। कहते हैं कि मुंगेली जिले के होने के कारण भाजपा के एक नेता ने अजय सिंह को राज्य निर्वाचन आयुक्त बनवाने में कृपा बरसाई। अजय सिंह दूसरे रिटायर्ड मुख्य सचिव हैं, जो राज्य निर्वाचन आयुक्त की जिम्मेदारी संभालेंगे। रिटायर्ड मुख्य सचिव शिवराज सिंह भी राज्य निर्वाचन आयुक्त रह चुके हैं। राज्य निर्वाचन आयुक्त का पद काफी दिनों से तदर्थवाद पर चल रहा था। चर्चा है कि राज्य निर्वाचन आयुक्त के लिए कई दावेदार थे। एक वर्तमान संभागायुक्त भी दौड़ में थे। इनके आलावा कई रिटायर्ड आईएएस भी राज्य निर्वाचन आयुक्त के लिए जोड़-तोड़ में लगे थे। लाटरी अजय सिंह की लगी।

चार मंत्रियों को संगठन की खरी-खरी

कहते हैं पिछले दिनों एक बैठक में संगठन के एक बड़े पदाधिकारी ने प्रदेश के चार मंत्रियों को खरी-खरी बात कही और उन्हें कामकाज तथा व्यवहार सुधारने की नसीहत भी दी। कहा जा रहा है कि ये चारों मंत्री पांच महीने में ही सुर्ख़ियों में आ गए हैं। एक मंत्री के बारे में खबर है कि कांग्रेसियों से ही घिरे रहते हैं। इसको लेकर भाजपा के कार्यकर्ताओं में गुस्सा है, तो कुछ मंत्री अपने पीए-पीएस के कारण चर्चा में हैं। इन मंत्रियों में से कुछ पुराने लोगों को या फिर विवादों में रहे लोगों को अपने स्टाफ में रख लिया है। अब देखते हैं संगठन के पदाधिकारी के नसीहत के बाद मंत्रियों के रुख में क्या बदलाव आता है।

रेणुका सिंह का गुस्सा

21 जून को योग के कार्यक्रम में मनेन्द्रगढ़ के कलेक्टर-एसपी की गैर-मौजूदगी से भरतपुर-सोनहत की विधायक रेणुका सिंह भड़क उठीं और उनको लेकर सार्वजनिक बयान भी दीं। कहा जा रहा है कि कलेक्टर बीमार होने के कारण योग करने नहीं पहुंचे और एसपी देर रात तक एक केस सुलझाने में लगे थे, इस कारण वे योग के कार्यक्रम में शरीक नहीं हो पाए। रेणुका सिंह के मुख्य आथित्य वाले योग कार्यक्रम में कलेक्टर और एसपी के मातहत अधिकारी मौजूद थे, पर कलेक्टर-एसपी की अनुपस्थिति विवाद और चर्चा का विषय बन गया है। सवाल भी उठ ,रहा है कि क्या कलेक्टर-एसपी या उनके मातहतों ने विधायक को वस्तुस्थिति से अवगत कराया था या नहीं ? रेणुका सिंह भले अभी केवल विधायक हैं, पर पहले केंद्र और राज्य में मंत्री रही हैं, ऐसे में अनदेखी करना, शायद उनको नागवार गुजरा। अब देखते हैं सरकार क्या कदम उठाती है ?

अंततः बृजमोहन का मंत्री पद से इस्तीफा

रिकार्ड मतों से रायपुर का सांसद चुने जाने के बाद बृजमोहन अग्रवाल ने पहले विधायक फिर मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। बृजमोहन पहली बार विधायक चुने जाने के बाद ही पटवा मंत्रिमडल में मंत्री बन गए थे। रमन मंत्रिमंडल में 15 साल मंत्री रहे। रायपुर दक्षिण से आठ बार के विधायक बृजमोहन अग्रवाल साय मंत्रिमंडल में शिक्षा मंत्री थे। बिना विधायक के भी छह माह तक मंत्री रहने के उनके बयान से वे सुर्ख़ियों में आ गए और कयासों का बाजार गर्म हो गया था।बृजमोहन के संसदीय सचिव रहे तोखन साहू सांसद बनने के साथ मंत्री भी बन गए, पर बृजमोहन की लाटरी नहीं लगी। कहा जा रहा है कि बृजमोहन भले मंत्री नहीं बन पाए,पर केंद्र की राजनीति में अहम रहेंगे। न तो उनकी वरिष्ठता को नाकारा जा सकता है और न उनके संपर्कों को।चर्चा है कि बृजमोहन को संगठन में कोई बड़ा पद मिल सकता है। अब देखते हैं क्या होता है ?

साय मंत्रिमंडल का विस्तार जुलाई में संभव

चर्चा है कि छत्तीसगढ़ की विष्णुदेव साय सरकार के मंत्रिमंडल का विस्तार जुलाई के पहले हफ्ते में हो सकता है। बृजमोहन अग्रवाल के इस्तीफे के बाद साय मंत्रिमंडल में दो पद रिक्त हो गए हैं। 22 जुलाई से विधानसभा का मानसून सत्र प्रस्तावित है, ऐसे में माना जा रहा है कि सत्र के पहले मंत्रिमंडल का विस्तार कर लिया जाएगा। कयास लगाया जा रहा है कि मंत्रिमडल से एकाध मंत्री को ड्राप किया जा सकता है। विस्तार के बाद मंत्रियों के विभाग में फेरबदल की संभावना भी है। मंत्री बनने की कतार में कई विधायक हैं। पुराने के साथ नए विधायक भी समीकरण बैठाने में लगे हैं,पर कहा जा रहा है कि फैसला दिल्ली से ही होगा।

गवर्नर का कार्यकाल अगले माह तक

छत्तीसगढ़ के राज्यपाल विश्वभूषण हरिचंदन का कार्यकाल अगले महीने खत्म हो रहा है। दिल्ली में नए गवर्नरों की नियुक्ति को लेकर सुगबुगाहट शुरू हो गई है। इस कारण छत्तीसगढ़ में भी नए गवर्नर पर कयास शुरू हो गए हैं। विश्वभूषण हरिचंदन को जुलाई 2019 में आंध्रप्रदेश का गवर्नर नियुक्त किया गया था। इसके बाद फ़रवरी 2023 में उनका तबादला छत्तीसगढ़ कर दिया गया। आंध्रप्रदेश और छत्तीसगढ़ का कार्यकाल मिलाकर 24 जुलाई को उनके पांच साल की अवधि पूरी हो जाएगी। तीन अगस्त 1934 को जन्मे विश्वभूषण हरिचंदन पांच बार ओडिशा विधानसभा के लिए चुने गए। ओडिशा में मंत्री भी रहे।

(लेखक पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
(डिस्क्लेमर – कुछ न्यूज पोर्टल इस कालम का इस्तेमाल कर रहे हैं। सभी से आग्रह है कि तथ्यों से छेड़छाड़ न करें। कोई न्यूज पोर्टल कोई बदलाव करता है, तो लेखक उसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। )

 

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