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क्या आप जानते हैं भगवान शिव के पूजन में क्यों नहीं चढ़ाया जाता है कुमकुम

भगवान शिव के पूजन में कुछ चीजें चढ़ाने की सलाह दी जाती है, वहीं कुछ ऐसी चीजें भी हैं जिन्हें इनके पूजन में नहीं चढ़ाया जाता है, अन्यथा पूजन का फल नहीं मिलता है।

भगवान शिव को देवों के देव के रूप में पूजा जाता है और उनके पूजन से भक्तों की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। मान्यता यह है कि शिव पूजन में कुछ विशेष चीजें ही चढ़ानी चाहिए जिससे उनकी कृपा दृष्टि बनी रहे।
मुख्य रूप से शिव पूजन में चन्दन, बेलपत्र और कच्चे चावल चढ़ाए जाते हैं, वहीं कुछ विशेष चीजें शिवलिंग पर न चढ़ाने की सलाह दी जाती है। इन्हीं वस्तुओं में से हैं हल्दी और कुमकुम। अक्सर देखा जाता है कि किसी भी देवी या देवता के पूजन में कुमकुम का इस्तेमाल होता है, लेकिन शिव पूजन में इसे प्रयोग में लाने की मनाही होती है।

दरअसल ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव किसी भी आडम्बर से दूर हैं और उन्हें ऐसी ही चीजें अर्पित की जाती हैं जो भौतिक रूप से ज्यादा जुड़ाव न रखती हों। इसी वजह से शिव जी को भस्म चढ़ाई होती है। आइए ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी जी से जानें इसके ज्योतिष कारणों के बारे में कि शिव पूजन में कुमकुम का इस्तेमाल वर्जित क्यों होता है।

कुमकुम सौंदर्य का प्रतीक है

कुमकुम को सौंदर्य का प्रतीक माना जाता है और इसका जुड़ाव सौभाग्य से होता है। यहां तक कि विवाहित स्त्रियां भी कुमकुम का इस्तेमाल करती हैं और भगवान शिव को वैरागी माना जाता है, इसलिए उनका स्त्रियों से जुड़ी सामग्रियों के साथ कोई संबंध नहीं होता है।

इसी वजह से शिव जी को कुमकुम नहीं चढ़ाई जाती है। इसके साथ ही कुमकुम को स्त्री तत्व माना जाता है इसलिए भी इसे शिवलिंग पर नहीं अर्पित किया जाता है।

कुमकुम हल्दी से बनी होती है

कुमकुम ऐसी सामाग्री है जो हल्दी से बनती है और ज्योतिष में हल्दी को भी शिवलिंग पर चढ़ाने से मना किया जाता है। मान्यता है कि शिवलिंग पर हल्दी चढ़ाने से शिव पूजन का फल नहीं मिलता है और शिव जी नाराज हो सकते हैं।

इसके साथ ही, हल्दी महिलाओं की खूबसूरती बढ़ाने के लिए प्रयोग की जाती है। स्त्री तत्वों से संबंध रखने की वजह से हल्दी शिव जी को प्रिय नहीं है। चूंकि कुमकुम हल्दी से मिलकर बनाया जाता है, इसलिए इसका इस्तेमाल भी शिव पूजन में नहीं किया जाता है।

भगवान शिव को वैरागी माना जाता है
ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव एक वैरागी हैं और उन्हें सांसारिक सुखों या इससे जुड़ी सामग्री से कोई लगाव नहीं है। भगवान शिव एक तपस्वी भी हैं जो सांसारिक सुखों से दूर कैलाश में निवास करते हैं।

इसी वजह से उनके ऊपर कोई भी सौंदर्य की सामग्री न चढ़ाने की सलाह दी सांसारिक सुखों का त्याग कर दिया है, और उन्हें सौंदर्य से जुड़ी वस्तुएं चढ़ाने की प्रथा नहीं है। इसी वजह से कुमकुम का इस्तेमाल शिव पूजन में वर्जित है।

भगवान शिव को संहारक भी माना जाता है

ऐसी मान्यता है कि कुमकुम महिलाएं मस्तक पर सौभाग्य की रक्षा के लिए लगाती हैं और शिव जी को जगकर्ता और संहारक दोनों माना जाता है। इसी वजह से कुमकुम का जुड़ाव शिव जी से नहीं है।

बल्कि उन्हें प्रसन्न करने के लिए चन्दन या भस्म उनके मस्तक पर लगाईं जा सकती है। शिव पूजन में किसी भी ऐसी सामग्री का इस्तेमाल वर्जित है जो सौंदर्य या सांसारिक सुखों से जुड़ी हो। इसी वजह से उन्हें पूजन में भांग, धतूरा चढ़ाया जाता है जो आमतौर पर अन्य स्थानों में इस्तेमाल में नहीं लाया जाता है।

माता पार्वती को चढ़ाया जाता है कुमकुम
जहां एक तरफ शिव पूजन में कुमकुम वर्जित है वहीं माता पार्वती को कुमकुम अवश्य चढ़ाया जाता है। यदि आप ऐसा करती हैं तो माता की कृपा के साथ शिव जी की कृपा दृष्टि भी मिलती है क्योंकि माता पार्वती शिव जी की अर्धांगिनी हैं और उनकी प्रिय सामाग्री कुमकुम है।

इसी वजह से यदि आप शिव पूजन करें तो शिव जी के साथ पार्वती जी का पूजन भी करें और शिव जी को मस्तक पर चंदन का तिलक और माता पार्वती की कुमकुम या हल्दी का तिलक लगाएं।

यहां बताए कुछ विशेष ज्योतिष कारणों की वजह से शिव पूजन में कुमकुम का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।

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