जगत के नाथ, भगवान जगन्नाथ श्री कृष्ण का ही एक नाम है। आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को जो भक्त श्री जगन्नाथ जी के साथ बलभद्र और सुभद्रा जी को रथ पर विराजमान कर यात्रा करते हुए देखते हैं या फिर जगन्नाथ जी के रथ को अपने हाथों से खींचते हैं, संकीर्तन करते हैं, जयघोष करते हुए स्तुति करते हैं, भगवान नाम स्मरण करते हुए नृत्य करते हैं, उन्हें माता के गर्भ में निवास करने का दुःख कभी नहीं भोगना पड़ता, यानि कि वह जन्म-मरण के बंधन से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त करते हैं। इसी भक्ति- भावना के साथ जगन्नाथ जी का रथ असंख्य भक्तों द्वारा खींचा जाता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पुष्य नक्षत्र, नक्षत्रों का राजा है, जिसके कारण पुष्य नक्षत्र के समय किया गया कार्य अक्षय फल प्रदान करता है, रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र होने पर रवि पुष्य योग का सृजन होता है। इस वर्ष 7 जुलाई 2024 को रथयात्रा महोत्सव के दिन पुष्य नक्षत्र का संचरण दिन-रात होने के कारण इस महोत्सव में सम्मिलित होने वाले भक्त जन्म-जन्मान्तर के पापों पर निःसंदेह विजय पाऐंगे। रथ यात्रा में सम्मिलित होकर की गई सेवा भक्ति भक्तों के भाग्य में लिखे कष्टों को कम करती है।
पूजा विधि – जगन्नाथ पुरी में होने वाली रथ यात्रा में जो भक्त शामिल नहीं हो पाते, वे अपने नगर, ग्राम में उसी प्रकार रथ यात्रा का आयोजन कर पुण्य के भागी बनते हैं। इस दिन भगवान श्री बलराम जी, कृष्णजी तथा सुभद्रा देवी की पूजा अवश्य करनी चाहिये। भीगी हुई मूंग, मटर और चना आदि तथा ताम्बूल, फल, नैवेद्य भगवान पर अर्पण करें। इस दिन भगवान की मूर्ति के समीप कीर्तन करना चाहिए, ब्राह्मणों को भोजन कराकर अपनी श्रद्धा के अनुसार दान देकर आशीर्वाद लेना कदापि न भूलें।