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अदाणी फाउंडेशन ने विश्व आदिवासी दिवस का किया आयोजन“गोदना” नामक एक विशेष पत्रिका का विमोचन

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० मिलुपारा में 34 आदिवासी विद्यार्थियों का हुआ सम्मान



रायगढ़। रायगढ़ जिले के तमनार ब्लॉक स्थित ग्राम मिलुपारा रीपा गौठान में विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर अदाणी फाउंडेशन द्वारा वर्ष 2024-25 में विभिन्न विद्यालयों और प्रशिक्षण केंद्रों से चयनित 34 आदिवासी विद्यार्थियों को सम्मानित किया गया।

सम्मानित विद्यार्थियों में जवाहर नवोदय विद्यालय, एकलव्य आवासीय विद्यालय और उत्कर्ष विद्यालय से चयनित 27 विद्यार्थी तथा भारतीय खेल प्राधिकरण रायपुर और राज्य प्रशिक्षण केंद्र बिलासपुर से चयनित 7 विद्यार्थी शामिल थे।

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में लैलुंगा की पूर्व विधायक श्रीमती सुनिती सत्यानंद राठिया और तमनार जनपद पंचायत अध्यक्ष जागेश सिदार विशेष रूप से उपस्थित रहे। विशिष्ट अतिथियों में मिलुपारा की जनपद सदस्य श्रीमती नंदिनी मनोज राय, रोडोपाली की सरपंच श्रीमती पंकजनी प्रकाश राठिया, बजरमुड़ा की सरपंच श्रीमती पदमिनी बंशी पोर्ते, भाजपा रोडोपाली मंडल अध्यक्ष सरोज बेहरा, अरुण राय, यादलाल नायक, श्रीमती संतोषी डनसेना, पाता के उपसरपंच राजेश पटेल, पाता की पूर्व सरपंच श्रीमती गीता राठिया, पेलमा के पूर्व सरपंच चक्रधर राठिया, पेलमा जनपद सदस्य प्रतिनिधि सबलसाय राठिया, पेलमा के पूर्व जनपद सदस्य संतोष राठिया, रोडोपाली के पूर्व जनपद सदस्य वेदराम राठिया और गोपाल पटेल सहित अन्य गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।

इस वर्ष विश्व आदिवासी दिवस की थीम आदिवासी संस्कृतियों, भाषाओं और परंपराओं के संरक्षण के महत्व पर केंद्रित रही। कार्यक्रम के दौरान भूमि अधिकार, सामाजिक न्याय और समानता जैसी आदिवासी समुदायों की प्रमुख चुनौतियों पर भी चर्चा की गई।अदाणी फाउंडेशन ने इस अवसर पर क्षेत्र के आदिवासी समाज के विकास के लिए अपने वर्तमान प्रयासों की जानकारी साझा की और आगामी समय में शुरू की जाने वाली नई परियोजनाओं की घोषणा की, जिनका उद्देश्य आदिवासी संस्कृति का संरक्षण और एक सशक्त समाज का निर्माण है।

कार्यक्रम के दौरान अदाणी फाउंडेशन द्वारा “गोंदना” नामक एक विशेष पत्रिका का विमोचन भी किया गया, जिसमें छत्तीसगढ़ की पारंपरिक गोदना कला पर विस्तृत जानकारी दी गई है। यह पत्रिका न केवल आदिवासी समुदाय की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने का प्रयास है, बल्कि गोदना की सामाजिक, धार्मिक और वैज्ञानिक मान्यताओं को भी उजागर करती है। इसमें गोदना और आधुनिक टैटू के अंतर, विभिन्न जनजातियों की गोदना परंपराएँ, और इस कला के माध्यम से आजीविका अर्जित करने वाली महिलाओं की कहानियाँ शामिल हैं।

यह आयोजन न केवल आदिवासी समुदाय की उपलब्धियों को मान्यता देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था, बल्कि उनकी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने की प्रतिबद्धता का भी प्रतीक रहा।