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Bhadrapad Purnima : भाद्रपद पूर्णिमा व्रत की तारीख और पूजा विधि, जानें चंद्रग्रहण के दौरान कैसे करें पूजा

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हर महीने पूर्णिमा तिथि का शास्त्रों में विशेष महत्व बताया गया है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की व्यक्ति पर सदैव कृपा बनी रहती है। साथ ही इस दिन स्नान दान और व्रत का विशेष महत्व है। भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि पर इस बार चंद्रग्रहण लगने जा रहा है। आइए जानते हैं भाद्रपद माह का पूर्णिमा व्रत कब है। साथ ही जानें पूजा का मुहूर्त और विधि।



कब है भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि
6 सितंबर को मध्य रात्रि में रात 1 बजकर 42 मिनट से पूर्णिमा तिथि का आरंभ होगा और 7 सितंबर को रात 11 बजकर 39 मिनट पर पूर्णिमा तिथि समाप्त शास्त्रों के अनुसार, जब शाम के समय पूर्णिमा तिथि है तो उस दिन पूर्णिमा व्रत करना शास्त्र सम्मत होता है। ऐसे में भाद्रपद पूर्णिमा तिथि का व्रत 7 सितंबर रविवार के दिन किया जाएगा। साथ ही इस दिन चंद्र ग्रहण भी है।

7 सितंबर को चंद्रग्रहण के दौरान कैसे रखें पूर्णिमा का व्रत
बता दें कि 7 सितंबर के दिन चंद्रग्रहण सुबह में 8 बजकर 58 मिनट से मध्यरात्रि 1 बजकर 25 मिनट तक लगेगा। ऐसे में चंद्रग्रहण लगने से 9 घंटे पहले सूतक काल आरंभ हो जाएगा। ऐसे में जो लोग पूर्णिमा का व्रत करेंगे वह 7 सितंबर को सुबह 12 बजकर 57 मिनट से पहले ही अपनी पूजा कर लें क्योंकि, इस समय से सूतक काल का आरंभ हो जाएगा। हालांकि, शाम के समय चंद्रमा को अर्घ्य आप दे सकते हैं क्योंकि, इस दिन चंद्रमा को दूध के साथ अर्घ्य दिया जाता है और सूतक काल में मूर्ति का स्पर्श करने की मनाही की जाती है। वहीं, चंद्रग्रहण का समय रात 8 बजकर 58 मिनट से मध्यरात्रि 1 बजकर 25 मिनट तक रहेगा। आप इससे पहले ही अपना पूजा पाठ कर लें।

पूर्णिमा व्रत पूजा विधि
० इस दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठे। इसके बाद सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का संकल्प लें।
० इसके बाद ईशान कोण में एक लकड़ी की चौकी रखें और उसपर पीले रंग का वस्त्र बिछाएं। इसके बाद लक्ष्मी नारायण की प्रतिमा स्थापित करें।
० इसके बाद सबसे पहले भगवान को तिलक करें और घी की दीपक जलाएं और रोली, चंदन, धूप आदि अर्पित करें।
० इसके बाद पूर्णिमा व्रत कथा का पाठ करें। फिर लक्ष्मी नारायण की आरती करें और अंत में भगवान को भोग लगाकर। प्रसाद को बांटे।
० पूजा समाप्त होने के बाद चंद्रमा को कच्चा दूध डालकर अर्घ्य दें। इसके बाद व्रत का पारण कर लें। लेकिन, इन सबसे बीच ध्यान रखें कि आप चंद्रग्रहण शुरु होने से पहले ही पारण करें।