Shardiya Navratri from 3rd October : 3 अक्टूबर से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो रही है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस बार शारदीय नवरात्रि में माता रानी का वाहन पालकी होगा. यदि नवरात्रि, गुरुवार या शुक्रवार से शुरू हों, तो माता रानी पालकी में आती हैं.
नवरात्रि का प्रारंभ जब रविवार या सोमवार के दिन से होता है, तो मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आती हैं. यदि नवरात्रि, गुरुवार या शुक्रवार से शुरू हों, तो माता रानी पालकी में आती हैं. वहीं, नवरात्रि की शुरुआत अगर मंगलवार या शनिवार से होती है, तो मां घोड़े पर सवार होकर आती हैं. नवरात्रि अगर बुधवार से शुरू हो तो माता रानी नौका में सवार होकर आती हैं.
इस वर्ष शारदीय नवरात्रि की शुरुआत गुरुवार के दिन से होगी. ऐसे में माता रानी का वाहन पालकी रहेगा. मान्यताओं के अनुसार नवरात्रि की शुरुआत जब गुरुवार के दिन होती है तो मां की सवारी डोली या पालकी होती है. वहीं माता रानी का वाहन पालकी होना अशुभ संकेत देता है.
पालकी पर आना नहीं माना जाता शुभ
नवरात्रि में मां दुर्गा जब धरती पर डोली या पालकी में आती हैं तो इसे बहुत अच्छा संकेत नहीं माना जाता है इससे अर्थव्यवस्था में गिरावट, व्यापार में मंदी, हिंसा, देश-दुनिया में महामारी के बढ़ने के संकेत मिलते हैं. वैसे तो माता रानी का वाहन शेर है इसलिए मां दुर्गा को शेरावाली मां कहा जाता है. परंतु नवरात्रि में जब मां दुर्गा धरती पर आती है तो उस दिन के हिसाब से उसका वाहन बदल जाता है.
घट स्थापना का शुभ मुहूर्त
इस बार दिनांक 3 अक्टूबर 2024 दिन गुरुवार से शारदीय नवरात्रि प्रारंभ होंगे. इस दिन यदि प्रतिपदा तिथि की बात करें तो 52 घड़ी दो पल अर्थात अगले दिन प्रात: 2:58 बजे तक प्रतिपदा तिथि रहेगी. यदि नक्षत्र की बात करें तो इस दिन हस्त नक्षत्र 23 घड़ी 27 पल अर्थात शाम 3:32 बजे तक है. इस दिन ऐंद्र नामक योग 55 घड़ी 36 पल अर्थात अगले दिन प्रातः 4:24 बजे तक है. पंचांग के अनुसार, 3 अक्टूबर को घट स्थापना का मुहूर्त प्रातः 6 बजकर 15 मिनट से लेकर 7 बजकर 22 मिनट तक होगा. घटस्थापना के लिए कुल 1 घंटा 07 मिनट का समय मिलेगा. इसके अलावा, घट स्थापना अभिजीत मुहुर्त में भी किया जा सकता है. अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 46 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 33 मिनट तक रहेगा, जिसके लिए 47 मिनट का समय मिलेगा.
इस विधि से करें घट स्थापना
नवरात्रि के पहले दिन व्रती द्वारा व्रत का संकल्प लिया जाता है. इस दिन लोग अपने सामर्थ अनुसार 2, 3 या पूरे 9 दिन का उपवास रखने का संकल्प लेते हैं. संकल्प लेने के बाद मिट्टी की वेदी में जौं बोया जाता है. और इस वेदी को कलश पर स्थापित किया जाता है. हिन्दू धर्म में किसी भी मांगलिक काम से पहले भगवान गणेश की पूजा का विधान बताया गया है. अतः सर्वप्रथम गणेश जी का पूजन करना चाहिए. इसलिए इस परंपरा का निर्वाह किया जाता है. कलश को गंगाजल से साफ की गई जगह पर रख दें. इसके बाद देवी-देवताओं का आवाहन करें. कलश में सात तरह के अनाज, कुछ सिक्के और मिट्टी भी रखकर कलश को फूल और आम के पत्तों से सजा लें. इस कलश पर कुल देवी की तस्वीर स्थापित करें या नारियल रखें. दुर्गा सप्तशती का पाठ करें इस दौरान अखंड ज्योति अवश्य प्रज्वलित करें. अंत में देवी मां की आरती करें और प्रसाद को सभी लोगों में बांट दें.