रवि भोई की कलम से
कहते हैं निगम-मंडलों में नियुक्ति की आस में अब भाजपा के कई नेताओं और कार्यकर्ताओं के चेहरे मुरझाने लगे हैं। राज्य में करीब तीन दर्जन निगम-मंडल हैं। पिछले दिनों एक-दो आयोग में अध्यक्ष की नियुक्ति से दावेदारों के चेहरे खिले थे और उम्मीद जगी थी कि नवरात्रि में उनकी किस्मत चमकेगी,पर नवरात्रि बीत जाने के बाद भी निगम-मंडल और आयोगों में नियुक्ति की कतार नहीं लगी। चर्चा है कि प्रदेश उपाध्यक्ष स्तर के एक-दो पदाधिकारियों को सदस्य का झुनझुना पकड़ा देने से वरिष्ठों का उत्साह काफूर हो गया है। बताते हैं कुछ नेता और कार्यकर्ता तो अब गुस्से में आ गए हैं और कहने लगे हैं निगम-मंडल और आयोग में नियुक्ति करना है तो ठीक नहीं तो ठीक। यही हाल मंत्रिमंडल विस्तार का भी है। रह-रहकर कैबिनेट विस्तार की हवा चलती है और फिर बंद हो जाती है। बताते हैं विस्तार की हवा बहना बंद होने से मंत्री पद के दावेदार विधायकों की नींद उड़ जाती है।
साय के राज में सुपर सीएम की तलाश
छत्तीसगढ़ में डॉ रमन सिंह की सरकार में अमन सिंह को सुपर सीएम कहा जाता था तो भूपेश बघेल की सरकार में सौम्या चौरसिया को। अमन सिंह भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी थे। सौम्या चौरसिया डिप्टी कलेक्टर थी। मुख्यमंत्री सचिवालय वरिष्ठ और कनिष्ठ आईएएस अफसरों के होने के बाद भी रमन सरकार में अमन सिंह का और भूपेश सरकार में सौम्या चौरसिया का अलग ही दबदबा था। विष्णु देव साय की सरकार में आईएएस पी. दयानंद, आईपीएस राहुल भगत, आईएएस बसवराजू एस मुख्यमंत्री के सचिव हैं, तो उमेश कुमार अग्रवाल, डॉ सुभाष राज, हितेश बघेल समेत कई ओएसडी भी हैं। साय सरकार में अब तक किसी अफसर के भारी पावरफुल होने की खबर नहीं आई है, ऐसे में लोग विष्णुदेव साय की सरकार में भी सुपर सीएम की तलाश में लग गए हैं। कहते हैं राहुल भगत और उमेश अग्रवाल विष्णुदेव साय के साथ पहले भी काम कर चुके हैं। साय जब केंद्रीय राज्य मंत्री थे, तब राहुल भगत उनके सचिव थे।
‘चर्चा’ वाले मंत्री और सचिव
इन दिनों छत्तीसगढ़ में हर फ़ाइल में ‘चर्चा’ लिखने वाले एक मंत्री जी और उनके सचिव की बड़ी चर्चा है। कहते हैं मंत्री महोदय फाइलों को सीधे-सीधे निपटाने की जगह हर फाइल में चर्चा लिख देते हैं। खबर है कि यही हाल उनके विभाग के सचिव साहब का भी है। वे भी नीचे के अफसरों से चर्चा किए बिना फ़ाइल ऊपर भेजते नहीं हैं। ‘चर्चा’ के फेर में फाइलें अटकी रहती है। मजेदार बात है, मंत्री जी पहली बार सरकार में शामिल हुए हैं और सचिव महोदय भी पहली बार स्वतंत्र रूप से विभाग चला रहे हैं। मंत्री जी और सचिव महोदय दोनों ही नए जमाने के हैं, फिर ‘चर्चा’ का ब्रेक क्यों लगाते हैं, लोगों को समझ नहीं आ रहा है। चर्चा के चक्कर में लोगों को अपने काम के लिए ज्यादा चक्कर लगाने पड़ रहे हैं, विभाग के अधिकारी और कर्मचारी भी माथा पकड़ने लगे हैं। लोग कहने लगे हैं अनुभव का मुकाबला नहीं है।
रायपुर दक्षिण के लिए भाजपा नेताओं की रेस
कहते हैं कांट-छाँट के बाद रायपुर दक्षिण की टिकट के लिए भाजपा के दो नेताओं में जबर्दस्त संघर्ष की स्थिति है। कहा जा रहा है कि इन दो नेताओं में से किसी एक को पार्टी रायपुर दक्षिण विधानसभा सीट से उपचुनाव लड़ा सकती है। खबर है कि टिकट के लिए भाजपा के जिन दो नेताओं में संघर्ष की स्थिति बनी हुई है, उनमें एक सांसद बृजमोहन अग्रवाल के समर्थक हैं तो दूसरे नेता को संगठन का समर्थन है। वैसे इन दो नेताओं के नाम टॉप पर चलने के बाद भी दूसरे दावेदार हताश नहीं हुए हैं। दो-तीन लोग तो वरदहस्त के बिना ही दौड़ में बने हैं। माना जा रहा है कि महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव के साथ रायपुर दक्षिण विधानसभा में उपचुनाव हो जाएगा। उम्मीद की जा रही है कि यहां उपचुनाव की घोषणा अगले हफ्ते तक हो जाएगी।
‘दलाली’ में मस्त ई.ई. साहब
कहते हैं राजधानी में सिंचाई विभाग में पदस्थ एक कार्यपालन अभियंता ( ई. ई.) परियोजनाओं और सिंचाई सुविधाओं के विकास को छोड़कर ‘दलाली’ में लगे रहते हैं। कहा जा रहा कि ई.ई. साहब को ‘दलाली’ का खून लग गया है। चर्चा है कि कांग्रेस की सरकार में भी ई.ई. साहब ‘दलाली’ में मशगूल रहते थे, भाजपा की सरकार में भी वही कर रहे हैं। खबर है कि ई.ई. साहब ने ‘दलाली’ के काम को अंजाम देने के लिए एक अलग ठिकाना भी बना रखा है। इस कारण ई.ई. साहब सरकारी दफ्तर में कम और ठिकाने में ज्यादा पाए जाते हैं। हवा है कि ई.ई. साहब सिंचाई विभाग में ट्रांसफर-पोस्टिंग से लेकर ठेकों में भी जोर लगाते हैं।
क्या छत्तीसगढ़ को भूल गए कांग्रेस के राज्यसभा सांसद ?
छत्तीसगढ़ के पांच राज्यसभा सांसदों में चार कांग्रेस के हैं। फूलोदेवी नेताम को छोड़कर तीन अन्य राजीव शुक्ला, के टी एस तुलसी और रंजीत रंजन का छत्तीसगढ़ से सीधा संबंध नहीं है। छत्तीसगढ़ के कोटे से ये राज्यसभा पहुँच गए हैं। कहते हैं गाहे -बगाहे रंजीत रंजन के छत्तीसगढ़ आने की खबर यहां के लोगों को मिल जाती है, पर राजीव शुक्ला और के टी एस तुलसी का आगमन ही नहीं हो रहा है। राज्य में कांग्रेस की सरकार रहते तक तो सांसदों का आना -जाना लगा रहा। सरकार के जाने के साथ शायद वे छत्तीसगढ़ को भूल गए। कुछ साल पहले तक शंकर नगर रोड़ में के टी एस तुलसी का बोर्ड दिखता था। अब वह भी नजर नहीं आता। लोग सवाल उठा रहे हैं कि सांसद राज्य का दौरा ही नहीं करेंगे तो यहां की समस्याओं से कैसे अवगत होंगे और यहां की जनता की बात संसद में कैसे उठाएंगे ?
सकते में छत्तीसगढ़ के पुलिस अफसर
महादेव सट्टा मामले में कर्ताधर्ता सौरभ चंद्राकर की गिरफ्तारी से छत्तीसगढ़ के कई राजनेता,पुलिस अधिकारी और कर्मचारी सकते में बताए जाते हैं। सरकार महादेव सट्टा की जाँच सीबीआई के हवाले कर दी है। महादेव सट्टा मामले में राज्य के कई नेताओं और पुलिस अफसरों के नाम सामने आए हैं। कहते हैं सौरभ चंद्राकर अभी इंटरपोल के कब्जे में है। इंटरपोल उसे भारतीय पुलिस के सुपुर्द करेगा। इसके बाद आगे की कार्रवाई बढ़ेगी। कहा जा रहा है कि सौरभ चंद्राकर के बयान पर कई नेताओं और अफसरों का भविष्य टिका है।
निजी विवि विनियामक आयोग के अध्यक्ष के लिए दौड़
छत्तीसगढ़ निजी विश्वविद्यालय विनियामक आयोग के अध्यक्ष के पद के लिए एक दर्जन से अधिक दावेदार बताए जाते हैं। कहते हैं कि अध्यक्ष पद के लिए तीन-चार रिटायर्ड कुलपति ने भी आवेदन किया है। कुछ रिटायर्ड प्राचार्य भी दौड़ में हैं। आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति राज्यपाल को करनी है। इसके लिए सरकार प्रस्ताव भेजती है। आयोग के अध्यक्ष के पद पर शिक्षाविद को ही नियुक्त किए जाने का प्रावधान है, इस कारण इस पद के लिए रिटायर्ड कुलपति और प्राचार्यों की कतार लग गई है।
(लेखक पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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