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छत्तीसगढ महाविद्यालय में एक दिवसीय व्याख्यानमाला का आयोजन

रायपुर।शासकीय जे. योगानंदम छत्तीसगढ महाविद्यालय के इतिहास परिषद द्वारा एक दिवसीय व्याख्यानमाला को आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. अमिताभ बनर्जी ने की। उन्होंने कहा कि विद्यार्थी महाविद्यालय के विकास में हमेशा सकारात्मक भूमिका अदा करेंगे और महाविद्यालय का नाम रोषन करेंगें। व्याख्यानमाला में मुख्य वक्ता के रूप में संयुक्त संचालक उच्च शिक्षा डॉ. डी. एस. जगत और संयुक्त संचालक जनसंपर्क धनंजय राठौर थे।

डॉ. डी. एस. जगत ने छत्तीसगढ राज्य के निर्माण किस तरह से हुआ और कैसे कैसे प्रयास किए गए। उन्होने छत्तीसगढ राज्य की स्थापना हेतु जनआकाक्षाओं को सर्वोपरि बताते हुए कहा कि इसके लिए अत्यंत व्यवस्थित आंदोलन जनता ने किया। उन्होंने बताया कि 2 नवंबर 1861 को मध्य प्रांत का गठन हआ, इसकी राजधानी नागपुर थी। मध्यप्रांत में छत्तीसगढ़ एक जिला था। सन 1862 में मध्य प्रांत में पाँच संभाग बनाये गये जिसमें छत्तीसगढ़ एक स्वतंत्र संभाग बना, जिसका मुख्यालय रायपुर था, जिसके साथ ही छत्तीसगढ़ में 3 जिलों (रायपुर, बिलासपुर, संबलपुर) का निर्माण भी हुआ।

डॉ. जगत ने बताया कि सन् 1918 में पंडित सुंदरलाल शर्मा ने छत्तीसगढ़ राज्य का स्पष्ट रेखा चित्र अपनी पांडुलिपि में खींचा अतः इन्हें छत्तीसगढ़ का प्रथम स्वप्नदृष्टा व संकल्पनाकार कहा जाता है। सन् 1924 में रायपुर जिला परिषद ने संकल्प पारित करके पृथक छत्तीसगढ़ राज्य की माँग की। सन् 1939 में कांग्रेस के त्रिपुरी अधिवेशन में पंडित सुंदरलाल शर्मा ने पृथक छत्तीसगढ़ की माँग रखी। सन् 1946 में ठाकुर प्यारेलाल ने पृथक छत्तीसगढ़ माँग के लिए छत्तीसगढ़ शोषण विरोध मंच का गठन किया जो कि छत्तीसगढ़ निर्माण हेतु प्रथम संगठन था। उन्होने कहा कि सन् 1947 स्वतंत्रता प्राप्ति के समय छत्तीसगढ़ मध्यप्रांत और बरार का हिस्सा था। सन् 1953 में फजल अली की अध्यक्षता में भाषायी आधार पर राज्य पुनर्गठन आयोग के समक्ष पृथक राज्य की माँग की गई। सन् 1955 रायपुर के विधायक ठाकुर रामकृष्ण सिंह ने मध्य प्रांत के विधानसभा में पृथक छत्तीसगढ़ की माँग रखी जो की प्रथम विधायी प्रयास था।

डॉ. जगत ने बताया कि सन् 1956 में डॉ. खूबचंद बघेल की अध्यक्षता में छत्तीसगढ़ महासभा का गठन राजनांदगाँव जिले में किया गया। इसके महासचिव दशरथ चौबे थे। इसी वर्ष मध्यप्रदेश के गठन के साथ छत्तीसगढ़ को मध्यप्रदेश में शामिल किया गया। सन् 1967 में डॉक्टर खूबचंद बघेल ने बैरिस्टर छेदीलाल की सहायता से राजनांदगाँव में पृथक छत्तीसगढ़ हेतु छत्तीसगढ़ भातृत्व संघ का गठन किया जिसके उपाध्यक्ष द्वारिका प्रसाद तिवारी थे। सन् 1976 में शंकर गुहा नियोगी ने पृथक छत्तीसगढ़ हेतु छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा का गठन किया। उन्होंने बताया कि सन् 1983 में शंकर गुहा नियोगी के द्वारा छत्तीसगढ़ संग्राम मंच का गठन किया गया। पवन दीवान द्वारा पृथक छत्तीसगढ़ पार्टी का गठन किया गया। एक मई 1998 को मध्यप्रदेश विधान सभा में छत्तीसगढ़ निर्माण के लिए शासकीय संकल्प पारित किया गया।

डॉ. जगत ने बताया कि 25 जुलाई 2000 को लालकृष्ण आडवाणी द्वारा लोकसभा में विधेयक प्रस्तुत किया गया। 31 जुलाई 2000 विधेयक लोकसभा में पारित किया गया। 3 अगस्त 2000 राज्यसभा में विधेयक प्रस्तुत किया गया और 9 अगस्त 2000 को राज्यसभा में पारित किया गया। इसे 25 अगस्त 2000 तत्कालीन राष्ट्रपति के आर नारायण ने मध्यप्रदेश राज्य पुर्नगठन अधिनियम का अनुमोदित किया। एक नवंबर 2000 भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 के तहत छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना हुई, छत्तीसगढ़ देश का 26 वाँ राज्य बना।
संयुक्त संचालक जनसंपर्क धनंजय राठौर ने भारतीय राष्ट्रवाद के उदय पर विस्तृत रूप से अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने भारत में राष्ट्रवाद के उदय के सात मुख्य कारण हैं। राजनीतिक, आर्थिक और प्रशासनिक एकता, पश्चिमी शिक्षा का प्रभाव, परिवहन साधनों का विकास, सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन, मीडिया, समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं का विकास, यूनाइटेड किंगडम द्वारा दुरुपयोग की गई राजनीति और भारत के बाहर राष्ट्रीय आंदोलन को बताया ।

श्री राठौर ने बताया कि भारत के लम्बे इतिहास में, आधुनिक काल में, भारत में अंग्रेजों के शासनकाल मे राष्ट्रीयता की भावना का विशेषरूप से विकास हुआ। भारत में अंग्रेजी शिक्षा के प्रसार से एक ऐसे विशिष्ट वर्ग का निर्माण हुआ जो स्वतन्त्रता को मूल अधिकार समझता था और जिसमें अपने देश को अन्य पाश्चात्य देशों के समकक्ष लाने की प्रेरणा थी। पाश्चात्य देशों का इतिहास पढ़कर उसमें राष्ट्रवादी भावना का विकास हुआ। इसका तात्पर्य यह नहीं है कि भारत के प्राचीन इतिहास से नई पीढ़ी को राष्ट्रवादी प्रेरणा नहीं मिली है। उन्होने बताया कि भारत में राष्ट्रवादी विचारधारा का अंकुर सत्रहवीं शताब्दी के मध्य से उगने लगा था किन्तु यह धीरे- धीरे विकसित होता रहा और अन्त में पूर्ण हो गया। अतः भारतीय राष्ट्रीय जागृति का काल उन्नीसवीं शताब्दी का मध्य मानना उचित ही होगा। भारत में राष्ट्रवाद के जन्म के कारण जो राष्ट्रीय आन्दोलन प्रारम्भ हुआ वह विश्व में अपने आप में एक अनूठा आन्दोलन था भारत में राजनीतिक जागृति के साथ-साथ सामाजिक तथा धार्मिक जागृति का भी सूत्रपात हुआ। वास्तव मे सामाजिक तथा धार्मिक जागृति के परिणामस्वरूप राजनितिक जागृति का उदय हुआ।
ब्रह्म समाज, आर्य समाज, रामकृष्ण मिशन एवं थियोसोफिकल सोसायटी आदि विशेषरूप से उल्लेखनीय हैं, जिसके प्रवर्तक क्रमशः राजा राममोहन राय, स्वामी दयानन्द, स्वामी विवेकानन्द, एवं श्रीमती एनी बेसेन्ट आदि थे। इन सुधारकों ने भारतीयों में आत्मविश्वास जागृत किया तथा उन्हें भारतीय संस्कृति की गौरव गरिमा का ज्ञान कराया, उन्हें अपनी संस्कृति की श्रेष्ठता के बारे में पता चला। इन महान व्यक्तियों में राजा राम मोहन राय को भारतीय राष्ट्रीयता का अग्रदूत कहा जा सकता है। उन्होंने समाज तथा धर्म मे व्याप्त बुराईयों को दूर करने हेतु अगस्त 1828 ई0 मे ब्रह्म समाज की स्थापना की। राजा राम मोहन राय ने सती प्रथा, छुआ-छूत जाति मे भेदभाव एवं मूर्ति पूजा आदि बुराईयों को दूर करने का प्रयास किया। उनके प्रयासो के कारण आधुनिक भारत का निर्माण सम्भव हो सका। पाश्चात्य शिक्षा से भारत को हानि की अपेक्षा लाभ अधिक हुआ। इससे भारत में राष्ट्रीय चेतना जागृत हुई अतः दृष्टि से पाश्चात्य शिक्षा भारत के लिए एक वरदान सिद्ध हुई।

श्री राठौर ने बताया कि प्रसिद्ध समाचार पत्रों में संवाद्कौमुदी, बाम्बेसमाचार (1882), बंगदूत (1831), गस्तगुफ्तार (1851), अमृतबजारपत्रिका (1868), ट्रिब्यून (1877), इण्डियन मिरर, हिन्दू, पैट्रियाट, बंगलौर, सोमप्रकाश, कामरेड, न्यु इण्डियन केसरी, आर्य दर्शन एवं बन्धवा आदि के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इनके माध्यम से राष्ट्रवादी तत्त्वों को सत्त प्रेरणा और प्रोत्साहन मिलता रहा। भारतीय साहित्यकारों ने भी देश की भावना को जागृत करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। बंकिमचन्द्र चटर्जी ने ‘वन्देमातरम्’ के रूप मे देशवासियों को राष्ट्रीय गान दिया। इनसे भारतीयों में देश-प्रेम की भावना जागृत हुई। मराठी साहित्य में शिवाजी का मुगलों के विरुद्ध संघर्ष विदेशी सत्ता के विरुद्ध संघर्ष बताया गया। हेमचन्द्र बैनर्जी ने अपने राष्ट्रीय गीतों द्वारा स्वाधीनता की भावना को प्रोत्साहन दिया। बिपिन चन्द्र पाल लिखते है, ”राष्ट्रीय प्रेम तथा जातीय स्वाभिमान को जागृत करने में श्री हेमचन्द्र द्वारा रचित कविताएँ अन्य कवियों की ऐसी कविताओं में कहीं अधिक प्रभावोत्पादक थी।“

श्री राठौर ने कहा कि अंग्रेजों के आर्थिक शोषण के विरुद्ध भारतीय जनता में असन्तोष था। वह इस शोषण से मुक्त होना चाहती थी। इसलिए भारतीयों ने राष्ट्रीय आन्दोलन में सक्रियरूप से भाग लेना प्रारम्भ कर दिया। लार्ड लिटन (1876 – 1880) की प्रतिक्रियावादी नीति के कारण राष्ट्रीय असन्तोष आरम्भ हुआ। परिणामस्वरूप भारत में राष्ट्रीयता की भावना का जन्म हुआ। इस अवसर पर डॉ. राजेश शुक्ला डॉ. साहसी, डॉ. मोनिका, डॉ. अरूणा, डॉ.निशा शर्मा, डॉ. रजनी यदु, डॉ. अनूप परसाई, डॉ. माना जैन, डॉ. विनीता स्वर्णकार, डॉ. शिल्पी शुक्ला, डॉ. जया गुप्ता,डॉ. सविता वर्मा, डॉ. शोभना सेन, महाविद्यालय प्राघ्यापक और सयहायक प्राघ्यापक सहित विद्यार्थी बडी संख्या में उपस्थित थे।

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