अहोई अष्टमी का व्रत करवा चौथ के 4 दिन बाद कार्तिक मास की कृष्ण अष्टमी को रखा जाता है। संतान की दीर्घायु के लिए महिलाएं इस दिन निर्जला व्रत करती हैं और रात को तारों को अर्घ्य देने के बाद अन्न और जल ग्रहण करती हैं। आइए जानते हैं कैसे रखा जाता है यह व्रत, जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि।
अहोई अष्टमी कार्तिक मास की कृष्ण अष्टमी को मनाई जाती है। करवा चौथ पर पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखने वाली महिलाएं अहोई अष्टमी को संतान की दीर्घायु के लिए व्रत करती हैं और अहोई माता की पूजा करती हैं। अहोई अष्टमी का व्रत करवा चौथ के 4 दिन बाद रखा जाता है इसलिए 5 नवंबर को माताएं यह व्रत करेंगी और तारों का उदय होने के बाद उन्हें अर्घ्य देकर व्रत तोड़ेंगी। दीपावली की पूजा से 8 दिन पड़ने वाला यह व्रत उत्तर भारत की महिलाएं सबसे ज्यादा करती हैं। इस दिन बच्चों की अच्छी सेहत, सुंदर भविष्य और दीर्घायु के लिए माताएं निर्जला उपवास करती हैं। आइए आपको बताते हैं अहोई अष्टमी की पूजाविधि, शुभ मुहूर्त और इस दिन महिलाओं को कौन से कार्य करने की मना होती है।
अहोई अष्टमी का शुभ मुहूर्त
कार्तिक मास की कृष्ण अष्टमी का आरंभ 4 नवंबर को आधी रात के बाद 12 बजकर 59 मिनट पर होगा। यानी कि 5 नवंबर की तिथि का आरंभ हो जाएगा और इसका समापन 5 नवंबर को आधी रात के बाद 3 बजकर 18 मिनट पर होगा। इस तरह उदया तिथि के नियमों के अनुसार महिलाओं को अहोई अष्टमी का व्रत 5 नवंबर को मिलेगा। पूजा का शुभ मुहूर्त शाम को 5 बजकर 33 मिनट से 6 बजकर 52 मिनट तक रहेगा। उसके बाद दिन महिलाएं शाम को तारों को अर्घ्य देने के बाद व्रत तोड़ पाएंगी।
अहोई अष्टमी पर बने हैं ये शुभ योग
अहोई अष्टमी पर इस बार सर्वार्थ सिद्धि योग और रवि योग का शुभ संयोग बन रहा है। ऐसी मान्यता है कि इस शुभ योग में व्रत करने से महिलाओं को व्रत का संपूर्ण फल प्राप्त होता है और उनके बच्चे सदैव सुखी, संपन्न और दीर्घायु होते हैं। बच्चों की सभी इच्छाएं अहोई माता पूर्ण करती हैं और उन्हें एक सफल करियर की प्राप्ति होती है।
अहोई अष्टमी की पूजाविधि
अहोई अष्टमी के दिन सुबह व्रत रखने वाली महिलाएं जल्दी उठकर स्नान कर लें। उसके बाद पूजाघर को गंगाजल छिड़ककर पवित्र कर लें। फिर शुभ दिशा देखकर दीवार पर अहोई माता का चित्र बना लें और यदि चित्र नहीं बना सकते हैं और बाजार चित्र लाकर दीवार पर लगा दें। उसके बाद शाम के अहोई माता की पूजा करें और उन्हें हलवा, पूरी का भोग लगाएं। फिर व्रत कथा पढ़ें और फिर तारों के निकलने की प्रतीक्षा करें। फिर तारों को अर्घ्य देने के बाद इस व्रत का पारण करें। अहोई अष्टमी के दिन भगवान शिव और माता पार्वती को दूध भात का भोग लगाना चाहिए और शाम को पीपल के पेड़ पर दीपक जलाना चाहिए।
अहोई अष्टमी पर व्रती महिलाएं भूलकर भी न करें ये कार्य
० अहोई अष्टमी के दिन महिलाएं तांबे के लोटे से भूलकर भी अर्घ्य न दें। अर्घ्य देने के लिए स्टील या फिर चांदी के लोटे का प्रयोग करें।
० अहोई अष्टमी के दिन व्रती महिलाओं को सोना नहीं चाहिए और रात के समय भी जागकर भजन कीर्तन करना चाहिए।
० अहोई अष्टमी के दिन व्रती महिलाओं को सुई, चाकू और अन्य नुकीली चीजों का प्रयोग करने से बचना चाहिए।
० अहोई अष्टमी पर तुलसी के पत्तों को भूलकर भी न तोड़ें।
० अहोई अष्टमी के दिन महिलाएं भूलकर भी मिट्टी को न छुएं। इस दिन मिट्टी से जुड़ा कोई भी काम करने की मनाही होती है। ऐसा करने से बच्चों को नुकसान हो सकता है।
० अहोई अष्टमी के दिन भूलकर भी किसी से झगड़ा न करें और न ही किसी प्रकार के अपशब्दों का प्रयोग करें।