पटना। देश की सबसे मशहूर लोकगायिक शारदा सिन्हा अब हमारे बीच नहीं रहीं। लेकिन, उनकी आवाज हमेशा जिंदा रहेंगी। दिवाली से छठ महापर्व तक उनकी ही गीत हर घर, गली और छठ घाटों पर गूंजतीं रहती हैं। मंगलवार देर रात दिल्ली एम्स में उन्होंने अंतिम सांस ली तो यूपी-बिहार ही नहीं पूरे देश में शोक की लहर दौर पड़ी। महज 72 साल की उम्र में ही उनका जाना किसी बड़े सदमे से कम नहीं है। उनके बेटे अंशुमान सिन्हा की मानें बिहार कोकिला मल्टीपल मायलोमा जैसी गंभीर बीमारी से पीड़ित थीं। यह कैंसर का एक प्रकार हैं। 2017 से ही वह इस बीमारी से जूझ रही थीं। लेकिन, अपनी बीमारी को सार्वजनिक नहीं किया। हमेशा लोगों के बीच हंसते हुए अपनी आवाज देती रहीं।
आंतरिक लड़ाई लड़ने में कमजोर हो गईं
अंशुमान सिन्हा के अनुसार, 2017 से शारदा सिन्हा मल्टीपल मायलोमा से लड़ रही थीं। हम परिवार के लोग इस बात को जानते हैं। उनकी इच्छा थी कि मेरी व्यक्तिगत पीड़ा को सार्वजनिक नहीं की जाए। उन्हें क्या तकलीफ है, इस बात की व्याख्या करके काम करना, उन्हें पसंद नहीं। पिता जी (ब्रजकिशोर सिन्हा) के देहांत के बाद उनका मनोबल टूट गया। उन्हें बड़ा झटका लगा। वह पूरी तरह से टूट गईं। इस कारण वह आंतरिक लड़ाई लड़ने में कमजोर हो गईं। पिताजी के श्राद्ध खत्म होने के ठीक बाद हमलोग उनके स्वास्थ्य की रूटीन जांच के लिए दिल्ली आए। इसी दौरान उनकी बीमारी में तेजी से बढ़ोतरी होने लगी। इसलिए डॉक्टर की सलाह पर उन्हें एम्स में भर्ती करवाया गया। कुछ दिन स्थिति ऐसी हुई अस्पताल में जंग लड़ते-लड़ते उनकी सांसें थम गईं।
जानिए, क्या होता है कि मल्टीपल मायलोमा
टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल, मुंबई में काम कर चुके बिहार के प्रसिद्ध कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉक्टर बीपी सिंह के अनुसार, मल्टीपल मायलोमा कैंसर का एक प्रकार है। मरीज के हड्डियों, गुर्दे और शरीर की स्वस्थ लाल और सफेद रक्त कोशिकाओं और प्लेटलेट्स बनाने की क्षमता को प्रभावित कर देता है। इसका पूरी तरह से इलाज नहीं हो सकता है। लेकिन, इसकी स्थितियों और लक्षणों का इलाज कर सकते हैं और इसकी प्रगति को धीमा कर सकते हैं। मल्टपल मायलोमा यह सफेद रक्त कोशिका में बनता है। दरअसल, स्वस्थ कोशिकाएं एंटीबॉडी प्रोटीन बनाकर संक्रमण से लड़ने में मदद करती है। एंटीबॉडी रोगाणुओं को खोजती है और उन पर हमला करती हैं। मल्टीपल मायलोमा में, कैंसरयुक्त प्लाज्मा कोशिकाएं अस्थि मज्जा में बनती हैं। कैंसर कोशिकाएं स्वस्थ रक्त कोशिकाओं को अस्थि मज्जा से बाहर निकाल देती हैं। इस कारण कैंसर कोशिकाएं ऐसे प्रोटीन बनाती हैं जो ठीक से काम नहीं करते। धीरे-धीरे यह शरीर को कमजोर कर देता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी आने लगी है। मरीज की तबीयत बिगड़ने लगती है।