दलाई लामा की हिंदी जीवनी ‘अनश्वर’ का विमोचन, इतिहास में दर्ज हुईं कई अनसुनी कहानियाँ
दिल्ली। प्रसिद्ध दार्शनिक, चिंतक, राजनेता और लेखक डॉ. कर्ण सिंह ने शनिवार को दलाई लामा की हिंदी में पहली मौलिक और प्रामाणिक जीवनी ‘अनश्वर’ का विमोचन किया। जीवनी की पहली प्रति भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. मुरली मनोहर जोशी को भेंट की गई। नई दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में हुए एक ऐतिहासिक कार्यक्रम में गेशे दोर्जी दमदुल दलाई लामा के प्रतिनिधि के रूप में उपस्थित रहे। समारोह में कई नामचीन पत्रकार, साहित्यकार, छात्र, दलाई लामा के अनुयायी मौजूद थे। दलाई लामा की इस जीवनी को मशहूर पत्रकार और लेखक डॉ. अरविंद यादव ने लिखा है।
अपने संबोधन में डॉ. कर्ण सिंह ने कहा कि ‘अनश्वर’ हिंदी साहित्य की एक बड़ी उपलब्धि है। उन्होंने दलाई लामा के साथ अपने अनुभव साझा किए और बताया कि 1956 में नेहरू जी ने उनका परिचय दलाई लामा से कराया था। यही दोनों की पहली मुलाकात थी। तब से आज तक दोनों के बीच मित्रता बनी रही है।
डॉ. कर्ण सिंह ने लेखक अरविंद यादव की जमकर तारीफ की और जीवनी को हिंदी साहित्य के लिए एक साहसिक और लंबे समय से प्रतीक्षित योगदान बताया।
पत्रकारों से बातचीत करते हुए डॉ. कर्ण सिंह ने कहा, “अरविंद यादव ने पूरी जीवनी हिंदी में लिखकर अद्भुत साहस दिखाया है। वे कई वर्षों से इस पर काम कर रहे थे और आज इसके पूरा होने से मैं बहुत खुश हूँ।”
उन्होंने दलाई लामा की लंबी आयु और स्वस्थ जीवन की कामना की।
उन्होंने कहा, “मैं चाहता हूँ कि यह पुस्तक सभी हिंदी पुस्तकालयों तक पहुँचे, ताकि लोग इसे पढ़ें और उनके बारे में अधिक जान सकें… मैं कामना करता हूँ कि वे अनेक वर्षों तक स्वस्थ रहें और करुणा, शांति और अहिंसा का उनका संदेश हमारे देश में फैलता रहे।”
डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने कहा कि दलाई लामा की शिक्षाएँ बहुत सरल हैं, जीवन को बदलने वाली हैं। उन्होंने इस जीवनी को आने वाली पीढ़ियों के लिए एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ करार दिया।
पूर्व केंद्रीय मंत्री व भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष पद्मविभूषण डा. मुरली मनोहर जोशी ने कहा कि दलाई लामा विभिन्न योग विधाओं और आत्मीय शक्तियों के ज्ञाता हैं। चीन ने अपनी आक्रामक नीतियों से न केवल दलाईलामा को निर्वासित होने पर मजबूर किया, बल्कि तिब्बत के लोगों का भी दमन किया और उनकी सांस्कृतिक पहचान को मिटाने की कोशिशें कीं। डा. जोशी ने कहा कि चीन की ओर किए जा स रहे अत्याचारों के कारण तिब्बत के लोगों को अपना देश छोड़कर भारत न के विभिन्न राज्यों में शरण लेनी पड़ी। उन्होंने भारत और चीन और भारत नीति में अंतर बताते हुए कहा कि भारत ने कभी किसी धर्म या व्यक्ति को हानि नहीं पहुंचाई। डॉ जोशी ने कहा कि तिब्बत फिर खड़ा होगा।गेशे दोर्जी दमदुल ने कहा कि डॉ. अरविंद यादव ने बहुत मेहनत की है और ईमानदारी से यह जीवनी लिखी है। उन्होंने भारत और तिब्बत के लंबे आध्यात्मिक रिश्ते को भी उजागर किया है।
दलाई लामा ने अपने संदेश में कहा, “तिब्बत में मेरे जन्म और बचपन से लेकर मेरे निर्वासन तक के जीवन को किताबों के रूप में लाते हुए डॉ. अरविंद यादव ने अहिंसा और संवाद के ज़रिए समस्या के निदान के सिद्धान्त के प्रति तिब्बती लोगों की प्रतिबद्धता को उजागर किया है। उन्होंने तिब्बती धर्म, संस्कृति और परंपराओं की रक्षा के साथ-साथ मानवीय मूल्यों और सांप्रदायिक सद्भावना को बढ़ावा देने के लिए की जा रही मेरी कोशिशों पर प्रकाश डाला है। इन किताबों के माध्यम से प्राचीन भारतीय ज्ञान-भंडार को बढ़ावा देने के प्रति मेरी प्रतिबद्धता को विशिष्ट रूप से दर्शाया है। साल 2022 में हमारी मुलाक़ात के दौरान किए गए वायदे को बख़ूबी निभाने और मेरे जीवन पर किताबों की शृंखला लिखने के लिए मैं उनका तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ। उनकी ये किताबें तिब्बत के गौरवशाली इतिहास, समृद्ध धरोहर और तिब्बती लोगों के मौजूदा संघर्ष के बारे में लोगों में जागरूकता लाने में मददगार साबित होगी।”
‘अनश्वर’ एक ऐसा ग्रंथ है, जो केवल एक महापुरुष की जीवनी ही नहीं, बल्कि करुणा, साहस और आध्यात्मिकता की एक अमर-गाथा है। इस जीवनी के ज़रिये अनेक ऐसे तथ्य पहली बार सार्वजनिक हुए हैं, जिनका अब तक किसी पुस्तक या रिपोर्ट में उल्लेख नहीं हुआ। कई घटनाएँ, जो इतिहास के पन्नों में दर्ज ही नहीं थीं, पहली बार इस जीवनी के माध्यम से उजागर हुईं। यह जीवनी केवल एक उत्कृष्ट साहित्यिक कृति नहीं, बल्कि तिब्बती बौद्ध धर्म और आधुनिक विश्व इतिहास का एक अद्भुत दस्तावेज़ है। इसमें चीन के तिब्बत पर आक्रमण के बाद तिब्बती बौद्धों के संघर्ष, अपने धर्म, संस्कृति, भाषा, चिकित्सा प्रणाली और कला को बचाने के उनके अदम्य प्रयासों का मार्मिक चित्रण है।
लेखक ने तीन साल के गहन शोध और दुर्लभ स्रोतों के अध्ययन के बाद यह कृति लिखी है। इसमें यह भी बताया गया है कि कैसे एक साधारण परिवार में जन्मे एक बालक की पहचान दलाई लामा के रूप में हुई, कैसे इस बालक ने मठ में शिक्षा-दीक्षा ली, कैसे तिब्बत को राजनीतिक और धार्मिक नेतृत्व प्रदान किया, कैसे चीन के दुराक्रमण के बाद तिब्बत छोड़ा और भारत में शरण ली, और फिर कैसे अपने राष्ट्र की संस्कृति, कलाओं, भाषा, आदि को बचाने के लिए संघर्ष किया, और कामयाबी हासिल की। इस किताब में यह भी बताया गया है कि वे कैसे विश्व के सबसे लोकप्रिय आध्यात्मिक नेता के रूप में उभरे, जिनका संदेश सीमाओं से परे, समस्त मानवता के लिए है।यह पुस्तक दलाई लामा के जीवन-संघर्ष, उनके करुणामय विचारों और तिब्बत की आत्मा के पुनर्जागरण की कथा है। यह एक ऐसी जीवनी है, जो इतिहास भी है, दर्शन भी और प्रेरणा का स्रोत भी।
डॉ.अरविंद यादव की यह किताब अंग्रेज़ी और कई भारतीय भाषाओं में भी प्रकाशित होगी।




